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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 9
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६
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    यद॑न्त॒रा प॑रा॒वत॑मर्वा॒वतं॑ च हू॒यसे॑। इन्द्रे॒ह तत॒ आ ग॑हि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । अ॒न्त॒रा । प॒रा॒ऽवत॑म् । अ॒र्वा॒ऽवत॑म् । च॒ । हू॒यसे॑ । इन्द्र॑ ॥ इ॒ह । तत॑: । आ । ग॒हि॒ ॥६.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदन्तरा परावतमर्वावतं च हूयसे। इन्द्रेह तत आ गहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । अन्तरा । पराऽवतम् । अर्वाऽवतम् । च । हूयसे । इन्द्र ॥ इह । तत: । आ । गहि ॥६.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 6; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    राजा और प्रजा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्रः) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (यत्) जबकि (परावतम्) दूर देश (च) और (अर्वावतम्) समीप देश के (अन्तरा) बीच में (हूयसे) तू पुकारा जाता है, (ततः) इसलिये (इह) यहाँ पर (आ गहि) तू आ ॥९॥

    भावार्थ

    जो न्यायी राजा योग्य अधिकारियों द्वारा सब स्थान में प्रजा को पाले, सब लोग उससे प्रीति करें ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(यत्) यदा (अन्तरा) मध्ये। अन्तरान्तरेण युक्ते। पा० २।३।४। इति द्वितीया (परावतम्) दूरदेशम् (अर्वावतम्) समीपदेशम् (च) (हूयसे) आहूतो भवसि (इन्द्रः) (इह) अत्र (ततः) तस्मात् कारणात् (आ गहि) आगच्छ ॥

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    विषय

    हृदय में प्रभु का दर्शन

    पदार्थ

    १. 'परावत्' शब्द दूर देश के लिए आता है-यहाँ पर दयुलोक का संकेत करता है। 'अर्वावत्' समीप देश के लिए आता है-यहाँ यह पृथिवी का संकेत कर रहा है। इन दोनों के अन्तरा-बीच में अन्तरिक्षलोक है। हमारे जीवनों में [अध्यात्म में] मस्तिष्क घलोक है, शरीर पृथिवीलोक है। इन दोनों के बीच में हदय अन्तरिक्षलोक है। हे प्रभो! (यत्) = जब भी (परावतम् अर्वावतं च) = दयुलोक व पृथिवीलोक के (अन्तरा) = बीच में-अन्तरिक्ष में-हृदयान्तरिक्ष में आप (इयसे) = पुकारे जाते हैं तब हे (इन्द्र) = सब शत्रुओं के विद्रावक प्रभो! आप (तत:) = तब (इह आगहि) = हमें यहाँ प्राप्त होइए। २. हृदय में प्रभु का ध्यान करने पर प्रभु हमें प्राप्त होते ही हैं।

    भावार्थ

    हम हृदय में प्रभु का ध्यान करें। यही हमारा प्रभु के साथ मिलकर बैठने का स्थान [सध-स्थ] है। प्रभु-प्राप्ति के दृढ़ व उत्तम निश्चयवाला यह 'सु-कक्ष' कनता है, जिसने प्रभु-प्राप्ति के लिए दृढ़ निश्चय कर लिया है-कमर कस ली है। यही अगले सूक्त का ऋषि है। अन्ततः [चतुर्थ मन्त्र में] यह 'विश्वामित्र' बनता है।

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    भाषार्थ

    (यद्) यतः (परावतम्) पराविद्या और (अर्वावतम्) अपराविद्या से (अन्तरा) रहित, अर्थात् केवल भक्तिपरायण उपासकों द्वारा भी आप (हूयसे) पुकारे जाते हैं, प्रार्थित होते हैं, अतः (इह) इस भक्तिपरायण उपासक में भी (इन्द्र) हे परमेश्वर! आप (आ गहि) प्रकट हूजिए। (ततः) आप सर्वत्र वितत हैं, विस्तृत व्यापक हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    Indra, lord giver of prosperity, invoked from within, from far and from near, come from there, anywhere, take us and bless us with grace.

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    Translation

    O God Almighty, you come here to the devotee from whatever distant region, whatever nearest region and whatever between when you are invoked.

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    Translation

    O God Almighty, you come here to the devotee from whatever distant region, whatever nearest region and whatever between when you are invoked.

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    Translation

    Whatever the place, whether distant, intervening or nearest, whence Thou art called, O Radiant God, comest Thou here to us from thence.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(यत्) यदा (अन्तरा) मध्ये। अन्तरान्तरेण युक्ते। पा० २।३।४। इति द्वितीया (परावतम्) दूरदेशम् (अर्वावतम्) समीपदेशम् (च) (हूयसे) आहूतो भवसि (इन्द्रः) (इह) अत्र (ततः) तस्मात् कारणात् (आ गहि) आगच्छ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাবিষয়োপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্রঃ) হে ইন্দ্র ! [অত্যন্ত ঐশ্বর্যসম্পন্ন রাজন্] (যৎ) যদ্যপি (পরাবতম্) দূর দেশ (চ) এবং (অর্বাবতম্) কাছের দেশের (অন্তরা) মধ্যে/মাঝখানে (হূয়সে) তুমি আহূত হও, (ততঃ) এইজন্য (ইহ) এখানে (আ গহি) তুমি এসো ॥৯॥

    भावार्थ

    যে ন্যায়পরায়ণ রাজা যোগ্য কর্মকর্তাদের দ্বারা সর্বত্র প্রজাদের দেখাশোনা করেন, সবাই তাঁর প্রীতি করে।।৯।।

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    भाषार्थ

    (যদ্) যতঃ (পরাবতম্) পরাবিদ্যা এবং (অর্বাবতম্) অপরাবিদ্যা (অন্তরা) রহিত, অর্থাৎ কেবল ভক্তিপরায়ণ উপাসকদের দ্বারাও আপনি (হূয়সে) আহ্বায়িত হন, প্রার্থিত হন, অতঃ (ইহ) এই ভক্তিপরায়ণ উপাসকের মধ্যেও (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! আপনি (আ গহি) প্রকট হন। (ততঃ) আপনি সর্বত্র বিতত, বিস্তৃত ব্যাপক।

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