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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठः, अथर्वा वा देवता - इन्द्रः, क्षत्रियो राजा छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अमित्रक्षयण सूक्त
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    अ॒यम॑स्तु॒ धन॑पति॒र्धना॑नाम॒यं वि॒शां वि॒श्पति॑रस्तु॒ राजा॑। अ॒स्मिन्नि॑न्द्र॒ महि॒ वर्चां॑सि धेह्यव॒र्चसं॑ कृणुहि॒ शत्रु॑मस्य ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । अ॒स्तु॒ । धन॑ऽपति: । धना॑नाम् । अ॒यम् । वि॒शाम् । वि॒श्पति॑: । अ॒स्तु॒ । राजा॑ । अ॒स्मिन् । इ॒न्द्र॒ । महि॑ । वर्चां॑सि । धे॒हि॒ । अ॒व॒र्चस॑म् । कृ॒णु॒हि॒ । शत्रु॑म् । अ॒स्य॒ ॥२२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयमस्तु धनपतिर्धनानामयं विशां विश्पतिरस्तु राजा। अस्मिन्निन्द्र महि वर्चांसि धेह्यवर्चसं कृणुहि शत्रुमस्य ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । अस्तु । धनऽपति: । धनानाम् । अयम् । विशाम् । विश्पति: । अस्तु । राजा । अस्मिन् । इन्द्र । महि । वर्चांसि । धेहि । अवर्चसम् । कृणुहि । शत्रुम् । अस्य ॥२२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 22; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    संग्राम में जय के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (अयम्) यह (धनानाम्) बहुत प्रकार के धनों का (धनपतिः) धनपति (अस्तु) होवे। (अयम्) यह (राजा) राजा (विशाम्) बहुत प्रजाओं का (विश्पतिः) प्रजापति (अस्तु) होवे। (इन्द्र) हे परमेश्वर ! (अस्मिन्) इस राज्य में (महि=महीनि) बड़े-बड़े (वर्चांसि) तेजों को (धेहि) धारण कर, (अस्य) इसके (शत्रुम्) वैरी को (अवर्चसम्) निस्तेज (कृणुहि) करदे ॥३॥

    भावार्थ

    राजा परमेश्वर के अनुग्रह से पुरुषार्थपूर्वक बहुत धन एकत्र करके प्रजा की रक्षा करे और महाप्रतापी होकर शत्रुओं को वश में रक्खे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(अयम्) (अस्तु) (धनपतिः) धनानां निधीनां पालकः (धनानाम्) बहुविधधनानाम् (विशाम्) बहुप्रजानाम् (विश्पतिः) प्रजापालकः (राजा) (अस्मिन्) राजनि (इन्द्र) हे परमात्मन् (महि) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। इति मह पूजायाम्-इन्। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति शसः सुः। महीनि महान्ति (वर्चांसि) तेजांसि (धेहि) धारय (अवर्चसम्) अतेजस्कम् (कृणुहि) कुरु (शत्रुम्) (अस्य) ॥

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    विषय

    धनानां धनपति: विशां विश्पतिः

    पदार्थ

    १. (अयम्) = यह (राजा) = शासक (धनानां धनपति:) = धनों का खूब ही स्वामी (अस्तु) = हो। इसका कोश खुब बढ़ा हुआ हो। (अयम्) = यह (विशाम्) = प्रजाओं का (विश्पतिः अस्तु) = उत्तम प्रजापालक हो। २. हे (इन्द्र) = सर्वशक्तिमान् प्रभो। (अस्मिन्) = इस राजा में (महि) = महत्त्वपूर्ण (वर्चासि) = शक्तियों को (धेहि)  धारण कीजिए। (अस्य) = इस राजा के (शत्रुम्) = शत्रु को (अवर्चसम् कृणुहि) = नष्ट शक्तिवाला कीजिए।

    भावार्थ

    राजा का कोश खुब बढ़ा हुआ हो। यह प्रजापालन को मुख्य कार्य जाने। यह शक्तिशाली हो, शत्रुओं को निस्तेज करके यह प्रजा का रक्षण करे।

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    भाषार्थ

    (अयम् राजा) यह राजा अर्थात् राष्ट्रपति (धनानाम्) राष्ट्र के धनों का (धनपतिः) धनरक्षक या धनस्वामी (अस्तु) हो, (अयम्) यह (विशाम्) सब प्रजाओं का (विश्पतिः) स्वामी (अस्तु) हो। (इन्द्र) हे सम्राट्! (अस्मिन्) इस राजा में (महि= महान्ति वर्चासि) महातेजों को (धेहि) स्थापित कर, और (अस्य) इसके (शत्रुम्) प्रतिद्वंद्वी को (अवर्चसम् कृणुहि) तू तेजोरहित कर।

    टिप्पणी

    [धनपति:='दान' तथा 'कर' द्वारा प्राप्त राष्ट्रधनों का स्वामी। वर्चासि=सैन्यवर्चस्=सैन्यबल; कोशवर्चस्व: अधिकारवर्चस्व आदि।]

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    विषय

    राजा का स्थापन।

    भावार्थ

    (अयम्) यह क्षत्रिय (धनानाम्) नाना प्रकार के सुवर्ण, रजत, मुक्ता, मणि, प्रबाल आदि धनों का (धन-पतिः) स्वामी (अस्तु) हो। और (अयम् राजा) यह सब का अनुरंजन करने हारा, सब में अधिक प्रकाशमान होकर (विशाम्) सब प्रजाओं का (विश्पतिः) प्रजापति, स्वामी (अस्तु) हो ! हे (इन्द्र) सेनापते ! बलपते ! ऐश्वर्यवन् ! (अस्मिन्) इस में (महि वर्चांसि) बड़े २ तेज, शत्रुओं को विजय करने में समर्थ बल, पराक्रमों का (धेहि) आधान, स्थापन कर। और (अस्य शत्रुम्) इसके शत्रु को (अवर्चसम्) निस्तेज, निर्बल (कृणुहि) कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठोऽथर्वा वा ऋषिः। इन्द्रो देवता। १-७ त्रिष्टुभः। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Social Order

    Meaning

    Let him be the master, protector, promoter and controller of the wealth and resources of the nation. Let him be the ruler of the people over all professional communities. Let him thus be the ruler. Indra, lord of omnipotence and glory of majesty, vest him with great virtues of dignity, power and lustre. And let his enemies be reduced to the lack-lustre status of negative performers down to zero.

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    Translation

    May this man become master of immense riches, (dhaninam dhanapati). May he become glorious (raj) master of the people, popular among them,O resplendent Lord, may you bestow great lustre of his enemies also-on him and make his foes lustreless.

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    Translation

    O Almighty Divinity! may he be master of wealth’s and as King May he be the lord of the people. Grant to him, O Lord! great power and might and make all his troubles deprived of power and vigor.

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    Translation

    Let him be treasure-lord of goodly treasures, let, him as king be master of the people. Grant unto him great power and might, O God, and strip his enemy of strength and vigor.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(अयम्) (अस्तु) (धनपतिः) धनानां निधीनां पालकः (धनानाम्) बहुविधधनानाम् (विशाम्) बहुप्रजानाम् (विश्पतिः) प्रजापालकः (राजा) (अस्मिन्) राजनि (इन्द्र) हे परमात्मन् (महि) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। इति मह पूजायाम्-इन्। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति शसः सुः। महीनि महान्ति (वर्चांसि) तेजांसि (धेहि) धारय (अवर्चसम्) अतेजस्कम् (कृणुहि) कुरु (शत्रुम्) (अस्य) ॥

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