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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 10
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - एकवृषः छन्दः - साम्न्युष्णिक् सूक्तम् - वृषरोगनाशमन सूक्त
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    यदि॑ दशवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑ । द॒श॒ऽवृ॒ष: । असि॑ । सृ॒ज । अ॒र॒स: । अ॒सि॒ ॥१६.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदि दशवृषोऽसि सृजारसोऽसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदि । दशऽवृष: । असि । सृज । अरस: । असि ॥१६.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 16; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    पुरुषार्थ का उपदेश।

    पदार्थ

    (यदि) जो तू (दशवृषः) दस [दस बल अर्थात् दान, शील, क्षमा, वीर्य, ध्यान, प्रज्ञा, सेनायें, उपाय, दूत और ज्ञान] से ऐश्वर्यवान् (असि) है, (सृज) [सुख] उत्पन्न कर, [नहीं तो] तू (अरसः) निर्बल (असि) है ॥१०॥

    भावार्थ

    मनुष्य पूर्वोक्त दस प्रकार के बलों के अनुष्ठान से ऐश्वर्यवान् होवें ॥१०॥

    टिप्पणी

    १०−(दशवृषः) दशभिर्बलैरैश्वर्यवान्। दानशीलक्षमावीर्यध्यानप्रज्ञा बलानि च। उपायः प्रणिधिर्ज्ञानं दशबुद्धिबलानि च−इति दश बलानि ॥

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    विषय

    छह से दस तक

    पदार्थ

    १. यदि (घड्वृषः असि) = यदि तुने पाँचों ज्ञानन्द्रियों के साथ एक छठी कर्मेन्दिय को भी सशक्त बनाना है, तो (सृज) = अभी और अधिक शक्ति उत्पन्न कर । इन छह के सशक्त हो जाने पर भी तू (अरस: असि) = अरस ही है, तेरा जीवन रसमय नहीं बन पाया है। २. यदि (सप्तवृषः असि) = यदि तू एक और कर्मेन्दिय को सशक्त बनाकर सात को सशक्त बना पाया है, तो भी तु और अधिक शक्ति उत्पन्न कर, क्योंकि अभी जीवन अरस ही है। ३. (यदि अष्टवृषः असि) = यदि तूने आठ इन्द्रियों को सशक्त बनाया है तो अभी और शक्ति उत्पन्न कर, क्योंकि अभी तू सरस नहीं बना। ४. (यदि नववृषः असि) = यदि नौ इन्द्रियों को भी शक्तिशाली बनाया है तो भी तू अरस ही है, अभी और शक्ति उत्पन्न कर । ५. (यदि दशवृषः असि) = दसों इन्द्रियों को भी तूने शक्तिशाली बनाया है, तो भी और अधिक शक्ति उत्पन्न कर, क्योंकि अभी तू जीवन को सरस नहीं बना पाया है।

    भावार्थ

    पाँचों ज्ञानेन्द्रियों व पाँचों कर्मेन्द्रियों के सशक्त हो जाने पर भी जीवन में सरसता नहीं आती। अभी मन को भी सशक्त बनाना है।

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    भाषार्थ

    (यदि दशवृषः असि) यदि तेरी १० इन्द्रियाँ तुझपर निजविषयों की वर्षा करती हैं, तो (सृज) "ऋतप्रजात ऋतावरी" वृत्ति का सर्जन कर (सूक्त १५), (अरसः) उस ऐन्द्रियिक वर्षा-रस अर्थात् वर्षा-उदक [के प्रभाव] से रहित (असि) तू हो जाएगा।

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    विषय

    आत्मा की शक्ति वृद्धि करने का उपदेश।

    भावार्थ

    (यदि दश-वृषः असि०) यदि दश प्राणों से युक्त है तो भी (सृज, अरसः असि) और अपनी शक्ति को बढ़ा क्योंकि निर्बल है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः। एकवृषो देवता। १, ४, ५, ७-१० साम्न्युष्णिक्। २, ३, ६ आसुरी अनुष्टुप्। ११ आसुरी गायत्री। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Spiritual Strength and Creativity

    Meaning

    If you are strong and virile with ten, wealth, morals, forgiveness, courage, concentration, intelligence, assistants, skill, forces, knowledge, create and contribute to life and the environment, otherwise your life would be just barren, nothing more.

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    Translation

    If you have ten powers, then create (more powers). You are powerless.

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    Translation

    If you possess ten potential powers, use it to success otherwise you are of no use.

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    Translation

    O man, if thou possessest the ten characteristics of charity, character, forgiveness, heroism, contemplation, intellect, army, expediency, messengers and knowledge, enhance thy pleasure, otherwise thou art powerless.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(दशवृषः) दशभिर्बलैरैश्वर्यवान्। दानशीलक्षमावीर्यध्यानप्रज्ञा बलानि च। उपायः प्रणिधिर्ज्ञानं दशबुद्धिबलानि च−इति दश बलानि ॥

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