अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 7
ऋषिः - विश्वामित्रः
देवता - एकवृषः
छन्दः - साम्न्युष्णिक्
सूक्तम् - वृषरोगनाशमन सूक्त
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यदि॑ सप्तवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयदि॑ । स॒प्त॒ऽवृ॒ष: । असि॑ । सृ॒ज । अ॒र॒स: । अ॒सि॒ ॥१६.७॥
स्वर रहित मन्त्र
यदि सप्तवृषोऽसि सृजारसोऽसि ॥
स्वर रहित पद पाठयदि । सप्तऽवृष: । असि । सृज । अरस: । असि ॥१६.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थ
(यदि) जो तू (सप्तवृषः) सात [ऋषियों, पाँच ज्ञानेन्द्रिय मन और बुद्धि] पर समर्थ (असि) है... म० ॥७॥
भावार्थ
मनुष्य जितेन्द्रिय होकर आनन्द प्राप्त करें ॥७॥
टिप्पणी
७−(सप्तवृषः) सप्त ऋषयः षडिन्द्रियाणि विद्या सप्तमी−निरु० १२।३७। सप्त ऋषिषु पञ्चज्ञानेन्द्रियमनोबुद्धिषु समर्थः ॥
विषय
छह से दस तक
पदार्थ
१. यदि (घड्वृषः असि) = यदि तुने पाँचों ज्ञानन्द्रियों के साथ एक छठी कर्मेन्दिय को भी सशक्त बनाना है, तो (सृज) = अभी और अधिक शक्ति उत्पन्न कर । इन छह के सशक्त हो जाने पर भी तू (अरस: असि) = अरस ही है, तेरा जीवन रसमय नहीं बन पाया है। २. यदि (सप्तवृषः असि) = यदि तू एक और कर्मेन्दिय को सशक्त बनाकर सात को सशक्त बना पाया है, तो भी तु और अधिक शक्ति उत्पन्न कर, क्योंकि अभी जीवन अरस ही है। ३. (यदि अष्टवृषः असि) = यदि तूने आठ इन्द्रियों को सशक्त बनाया है तो अभी और शक्ति उत्पन्न कर, क्योंकि अभी तू सरस नहीं बना। ४. (यदि नववृषः असि) = यदि नौ इन्द्रियों को भी शक्तिशाली बनाया है तो भी तू अरस ही है, अभी और शक्ति उत्पन्न कर । ५. (यदि दशवृषः असि) = दसों इन्द्रियों को भी तूने शक्तिशाली बनाया है, तो भी और अधिक शक्ति उत्पन्न कर, क्योंकि अभी तू जीवन को सरस नहीं बना पाया है।
भावार्थ
पाँचों ज्ञानेन्द्रियों व पाँचों कर्मेन्द्रियों के सशक्त हो जाने पर भी जीवन में सरसता नहीं आती। अभी मन को भी सशक्त बनाना है।
भाषार्थ
(यदि सप्तवृषः असि) यदि तेरी ७ इन्द्रियाँ तुझपर निजविषयों की वर्षा करती हैं, तो (सृज) "ऋतप्रजात ऋतावरी" वृत्ति का सर्जन कर (सूक्त १५), (अरसः) उस ऐन्द्रियिक वर्षा-रस अर्थात् वर्षा-उदक [के प्रभाव] से रहित (असि) तू हो जाएगा।
विषय
आत्मा की शक्ति वृद्धि करने का उपदेश।
भावार्थ
(यदि सप्तवृषः असि०) यदि सात प्राणों से युक्त है तो भी और पैदा कर, अभी भी तू निर्बल है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः। एकवृषो देवता। १, ४, ५, ७-१० साम्न्युष्णिक्। २, ३, ६ आसुरी अनुष्टुप्। ११ आसुरी गायत्री। एकादशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Spiritual Strength and Creativity
Meaning
If you are strong and virile with seven, five senses, mind and intelligence, create and contribute something to the world, or stay unfruitful.
Translation
If you have seven powers, then create (more powers). You are powerless.
Translation
If you possess seven potential powers, use it to success otherwise you are of no use.
Translation
O man, if thou hast mastery over five organs of cognition, mind and intellect, enhance thy pleasure, otherwise thou art powerless.
Footnote
Five organs of cognition: Jnan Indriyas.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(सप्तवृषः) सप्त ऋषयः षडिन्द्रियाणि विद्या सप्तमी−निरु० १२।३७। सप्त ऋषिषु पञ्चज्ञानेन्द्रियमनोबुद्धिषु समर्थः ॥
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