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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 12 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 12/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गरुत्मान् देवता - तक्षकः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सर्पविषनिवारण सूक्त
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    यद्ब्र॒ह्मभि॒र्यदृषि॑भि॒र्यद्दे॒वैर्वि॑दि॒तं पु॒रा। यद्भू॒तं भव्य॑मास॒न्वत्तेना॑ ते वारये वि॒षम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । ब्र॒ह्मऽभि॑: । यत् । ऋषि॑ऽभि: । यत् । दे॒वै: । वि॒दि॒तम् । पु॒रा । यत् । भू॒तम् । भव्य॑म् । आ॒स॒न्ऽवत् । तेन॑ । ते॒ । वा॒र॒ये॒ । वि॒षम् ॥१२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्ब्रह्मभिर्यदृषिभिर्यद्देवैर्विदितं पुरा। यद्भूतं भव्यमासन्वत्तेना ते वारये विषम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । ब्रह्मऽभि: । यत् । ऋषिऽभि: । यत् । देवै: । विदितम् । पुरा । यत् । भूतम् । भव्यम् । आसन्ऽवत् । तेन । ते । वारये । विषम् ॥१२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 12; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    पाप नाश करने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्) जो [ज्ञान] (ब्रह्मभिः) वेद जाननेवाले, ब्राह्मणों करके, (यत्) जो (ऋषिभिः) सन्मार्गदर्शक ऋषियों करके और (यत्) जो (देवैः) व्यवहारकुशल महात्माओं करके (पुरा) पूर्व काल में (विदितम्) जाना गया है। और (यत्) जो (भूतम्) भूत काल में और (भव्यम्) भविष्यत् काल में (आसन्वत्) व्याप्तिवाला है, (तेन) उसी से [हे जीव !] (ते) तेरे (विषम्) विष को (वारये) मैं हटाता हूँ ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य पूर्वज महात्माओं के समान पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर अपने दोषों का नाश करके सुखी होवें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(यत्) ज्ञानम् (ब्रह्मभिः) वेदज्ञैर्ब्राह्मणैः (ऋषिभि) अ० २।६।१। सन्मार्गदर्शकैः (देवैः) व्यवहारकुशलैः (विदितम्) परिज्ञातम् (पुरा) पूर्वकाले (भूतम्) अतीतकाले भवम् (भव्यम्) भविष्यत्कालीनम् (आसन्वत्) कनिन् युवृषितक्षि०। उ० १।१५६। इति आस उपवेशने−कनिन्, मतुप् च। व्याप्तिमत्। अन्यद् गतम्। म० २ ॥

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    विषय

    ब्रह्मभिः ऋषिभिः देवै:

    पदार्थ

    १. (यत्) = जो (ब्रह्मभि:) = वेदज्ञों ने, [वृहि वृद्धौ] शरीर की वृद्धि करनेवालों ने, (यत् ऋषिभिः) = जो तत्त्वद्रष्टा पुरुषों ने, [ऋष=to kill] विष के प्रभाव को नष्ट करनेवालों ने और (यत्) = जो ज्ञान (देवैः) = रोगों को जीतने की कामनावाले [विजिगीषा] पुरुषों ने (पुरा विदितम्) = पहले जाना है, (तेन) = उस ज्ञान के द्वारा हे (आसन्वत्) = मुख से काटनेवाले सर्प! (यत्) = जो (ते) = तेरा (भूतम्) = शरीर में व्याप्त हो चुका है और जो (भव्यम्) = शरीर में व्याप्त होनेवाला है, उस सब (विषम) = विष को (वरये) = दूर करता हूँ।

    भावार्थ

    विष-प्रभाव को दूर करके शरीर का वर्धन करनेवाले 'वृहि वृद्धौ । विष प्रभाव को नष्ट करनेवाले व सर्प को ही नष्ट कर देनेवाले 'ऋषि हैं [ऋष-tokill] | विष-प्रभाव आदि विकारों को जीतने की कामनावाले 'देव' हैं [दिव् विजिगीषायाम्]। इन सबसे प्राप्त ज्ञान के द्वारा मैं [वैद्य] तेरे विष को दूर करता हूँ।


     

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    भाषार्थ

    (यत्) जो औषध (ब्रह्मभिः) ब्रह्म अर्थात् वेद के वेत्ताओं ने, (यत् ) जो (ऋषिभिः) मन्त्रद्रष्टाओं ने (यत् ) जो (देवै:) विद्वानों ने ( पुरा) पुरातन काल में (विदितम्) जानी है । (यत्) जो औषध (भूतम्; भव्यम्) भूतकाल में हुई है, और जो भविष्य में होगी [वह है] (आसन्वत् विषम् ) मुख वाला विष, (तेना = तेन) उस मुखवाले विष द्वारा (ते ) तेरे [विषम् ] विष को (वारये) मैं निवारित करता हूं।

    टिप्पणी

    [आसन्वत् विषम्= सर्प के मुख वाला विष, सर्प के मुख में रहने वाला विष। इस प्रकार की विचित्रोक्ति वेद में अन्यत्र भी पाई जाती है, यथा "दन्वती रज्जु:" अर्थात् दान्तों वाली रस्सी= सांप१ (अथर्व ४।३।२; १९।४७.७)। मन्त्र में सर्पविष द्वारा तद्भिन्न विष के निवारण का वर्णन है। इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध उक्ति है "विषस्य विषमौषधम्"]। [१. तथा "दत्वती अरणी (अथर्व ७।१०८।१)। =दान्तों वाली अग्युत्पादक लक्कड़ी= सांप।]

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    विषय

    सर्पविष चिकित्सा।

    भावार्थ

    (यद्) जो (ब्रह्मभिः) वेद के विद्वानों और (यद ऋषिभिः) जो दूरदर्शी ऋषियों और (यद् देवैः) जो देव = विद्वान् पुरुषों ने (विदित) जाना है। हे (आसन्वत्) मुख से काटनेवाले सर्प ! (यद्) जो तेरा विष (भूतम्) अभी तक शरीर में चढ़ चुका है और जो (भव्यम्) और भी उसमें चढ़ेगा उस सब (ते विषम्) तेरे विष को मैं (तेन वारये) उस विद्वानों, ऋषियों द्वारा जाने गये उपाय से दूर करूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गरुत्मान् ऋषिः। तक्षको देवता। १-३ अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Poison Cure

    Meaning

    What was known by the visionaries of divinity, by the seers who realised the divine knowledge, and by brilliant men of generous mind since ancient times, that knowledge which was true and is ever true, past, present and future, by that I remove the cover of your poison, illusion and darkness.

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    Translation

    Which was discovered by the learned, by the seers and by the enlightened ones in the days of old; which is of the past and will be in future also, with that (knowledge), O you having a mouth, I ward off your poison.

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    Translation

    I ward your poison off, O man; with that treatment which is fully discovered by the spiritualist, which is discovered by the seers, which is discovered by the scientists and which is effectual in past, present and future.

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    Translation

    The knowledge possessed in the past by the knowers of the Vedas, the Rishis (Seers) and the sages, is everlasting in the Past, Present and Future, with that knowledge I remove thy moral frailty.

    Footnote

    I refers to a yogi.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(यत्) ज्ञानम् (ब्रह्मभिः) वेदज्ञैर्ब्राह्मणैः (ऋषिभि) अ० २।६।१। सन्मार्गदर्शकैः (देवैः) व्यवहारकुशलैः (विदितम्) परिज्ञातम् (पुरा) पूर्वकाले (भूतम्) अतीतकाले भवम् (भव्यम्) भविष्यत्कालीनम् (आसन्वत्) कनिन् युवृषितक्षि०। उ० १।१५६। इति आस उपवेशने−कनिन्, मतुप् च। व्याप्तिमत्। अन्यद् गतम्। म० २ ॥

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