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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 38 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 38/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - बृहस्पतिः, त्विषिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - वर्चस्य सूक्त
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    या ह॒स्तिनि॑ द्वी॒पिनि॒ या हिर॑ण्ये॒ त्विषि॑र॒प्सु गोषु॒ या पुरु॑षेषु। इन्द्रं॒ या दे॒वी सु॒भगा॑ ज॒जान॒ सा न॒ ऐतु॒ वर्च॑सा संविदा॒ना ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या । ह॒स्तिनि॑ । द्वी॒पिनि॑ । या । हिर॑ण्ये । त्विषि॑: । अ॒प्ऽसु। गोषु॑ । या । पुरु॑षेषु । इन्द्र॑म् । या । दे॒वी । सु॒ऽभगा॑ । ज॒जान॑ । सा । न॒: । आ । ए॒तु॒ । वर्च॑सा । स॒म्ऽवि॒दा॒ना ॥३८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या हस्तिनि द्वीपिनि या हिरण्ये त्विषिरप्सु गोषु या पुरुषेषु। इन्द्रं या देवी सुभगा जजान सा न ऐतु वर्चसा संविदाना ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या । हस्तिनि । द्वीपिनि । या । हिरण्ये । त्विषि: । अप्ऽसु। गोषु । या । पुरुषेषु । इन्द्रम् । या । देवी । सुऽभगा । जजान । सा । न: । आ । एतु । वर्चसा । सम्ऽविदाना ॥३८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 38; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ऐश्वर्य पाने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (या) जो (त्विषिः) ज्योति (हस्तिनि) हाथी में, (द्वीपिनि) चीते में, (या) जो (हिरण्ये) सुवर्ण में, और (या) जो (अप्सु) जल में (गोषु) गौ आदिकों में और (पुरुषेषु) पुरुषों में है। (या) जिस.. म० १ ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(हस्तिनि) अ० ३।२२।३। गजेन्द्रे (द्वीपिनि) अ० ३।८।७। चित्रके (हिरण्ये) सुवर्णे (अप्सु) उदकेषु (गोषु) गवादिपशुषु (पुरुषेषु) मनुष्येषु ॥

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    विषय

    हस्तिनि-पुरुषस्य मायौ

    पदार्थ

    १. (या त्विषि:) = जो दीप्ति (हस्तिनि) = गजेन्द्र में, (द्वीपिनि) = तरक्षु [चीते] में है, (या) = जो दीप्सि (हिरण्ये) = स्वर्ण में है, जो (अप्सु) = जलों में, (गोषु) = गौओं में (या) = जो (पुरुषेषु) = पुरुषों में दीप्ति है। २. जो दीप्ति (रथे) = रथ में है, (अक्षेषु) = रथ के अक्षों [Axles] में है तथा (ऋषभ्यस्य वाजे) = ऋषभ [साँड] के वेगयुक्त गमन में है, जो दीति (वाते) = वायु में है, (पर्जन्ये) = मेघ में है, (वरुणस्य शुष्मे) = जो दीति सूर्य के प्रखर ताप में है-सूर्य के सुखानेवाले ताप में है। ३. जो दीप्ति (राजन्ये) = अभिषिक्त राजा के पुत्र [राजन्य] में है, जो दीति (दुन्दुभौ आयतायाम्) = आयप्यमान आताड्यमान दुन्दुभि में है जो दीप्ति (अश्वस्य वाजे) = घोड़े के वेगयुक्त गमन में है और जो (पुरुषस्य मायौ) = पुरुष की उच्चै?षलक्षण शब्द में है-४. यह सब दीप्ति वह है (या) = जोकि (देवी) = दिव्य है, (सुभगा) = हमें उत्तम सौभाग्यशाली बनाती है और यह दीति अपने निर्माता (इन्द्रम्) = इन्द्र देवता की महिमा को (जजान) = प्रादुर्भूत करती है। (सा) = वह दीप्ति (वर्चसा संविदाना) = रोगनिवारक शकि [Vitality] के साथ ऐकमत्यवाली होती हुई (नः ऐतु) = हमें प्राप्त हो।

    भावार्थ

    हमारा जीवन प्रभु-दीप्ति से उज्ज्वल हो। यह दीसि हमें वर्चस् प्राप्त कराती हुई प्रभु के समीप प्राप्त कराए।

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    भाषार्थ

    (या त्विषिः) जो दीप्ति (हस्तिनि) हाथी में, (द्वीपिनि) चोते में ( या) जो (हिरण्ये) सुवर्ण में, (अप्सु) जल में, ( गोषु ) गौओं में, (या) जा (पुरुषेषु) पुरुषों में है (शेष पूर्ववत् )

    टिप्पणी

    [हाथी में बलोत्कर्ष, चीते में आक्रमण, हिरण्य में रमणीयता, जल में शान्ति, गौओं में पोषण तत्त्व, पुरुषों में पौरुषरूपा दीप्ति। शेष पूर्ववत् ]

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    विषय

    तेज की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (या) जो कान्ति (हस्तिनि) हाथी में और (द्वीपिनि) चीते में है और (या) जो कान्ति (हिरण्ये) सुवर्ण में और (अप्सु) जलों में है और (या) जो कान्ति (गोषु) गौओं में और (पुरुषेषु) युवा बलवान् पुरुषों में है और (या देवी सुभगा) जो सौभाग्यमयी लक्ष्मी (इन्द्रम् जजान) राजा को उत्पन्न करती है (सा नः वचसा (सा संविदाना एतु) वही लक्ष्मी कान्ति हम में तेज को धारण करती हुई हमें प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वर्चस्कामोऽथर्वा ऋषिः। बृहस्पति रुतत्विषिर्देवता। त्रिष्टुप् छन्दः॥ चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Energy and Splendour of Life

    Meaning

    That grace and majesty which is in the elephant, that strength and agility in the tiger, the grace and beauty in gold, the generosity in the cows and virility in men, that light and splendour of life, the divine spirit of majesty and good fortune which creates and consecrates the ruling power, Indra, may that divine brilliance come bearing the lustre of life and bless us.

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    Translation

    The energetic brilliance which is there in elephant, in leapord, in gold, and even in waters, in cows and in manly persons; which divine and fortunate gives birth to the resplendent one, may she come to us overflowing with lustre.

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    Translation

    Whatever glamour of energy hath the elephant or panther, whatever glamour of energy is possessed by gold, whatever is found in waters, whatever have the bovine males and females and whatever have the men, and the sun and the brilliant and mighty that glamour which gave birth to Indra, the electricity, come unto us accompanied with strength and vigor.

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    Translation

    All energy of elephant and panther, all halo and luster of gold, men, kine, and waters, and the blessed spiritual force that makes a man a king, may that come unto us conjoined with strength and vigor.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(हस्तिनि) अ० ३।२२।३। गजेन्द्रे (द्वीपिनि) अ० ३।८।७। चित्रके (हिरण्ये) सुवर्णे (अप्सु) उदकेषु (गोषु) गवादिपशुषु (पुरुषेषु) मनुष्येषु ॥

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