अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 38/ मन्त्र 3
ऋषिः - अथर्वा
देवता - बृहस्पतिः, त्विषिः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - वर्चस्य सूक्त
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रथे॑ अ॒क्षेष्वृ॑ष॒भस्य॒ वाजे॒ वाते॑ प॒र्जन्ये॒ वरु॑णस्य॒ शुष्मे॑। इन्द्रं॒ या दे॒वी सु॒भगा॑ ज॒जान॒ सा न॒ ऐतु॒ वर्च॑सा संविदा॒ना ॥
स्वर सहित पद पाठरथे॑ । अ॒क्षेषु॑ । ऋ॒ष॒भस्य॑ । वाजे॑ । वाते॑ । प॒र्जन्ये॑ । वरु॑णस्य । शुष्मे॑ । इन्द्र॑म् । या । दे॒वी । सु॒ऽभगा॑ । ज॒जान॑ ।सा । न॒: । आ । ए॒तु॒ । वर्च॑सा । स॒म्ऽवि॒दा॒ना ॥३८.३॥
स्वर रहित मन्त्र
रथे अक्षेष्वृषभस्य वाजे वाते पर्जन्ये वरुणस्य शुष्मे। इन्द्रं या देवी सुभगा जजान सा न ऐतु वर्चसा संविदाना ॥
स्वर रहित पद पाठरथे । अक्षेषु । ऋषभस्य । वाजे । वाते । पर्जन्ये । वरुणस्य । शुष्मे । इन्द्रम् । या । देवी । सुऽभगा । जजान ।सा । न: । आ । एतु । वर्चसा । सम्ऽविदाना ॥३८.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ऐश्वर्य पाने के लिये उपदेश।
पदार्थ
(रथे) रथ में, (अक्षेषु) पहियों में, (ऋषभस्य) बैल के (वाजे) बल में, (वाते) पवन में, (पर्जन्ये) मेघ में, और (वरुणस्य) सूर्य के (शुष्मे) सुखानेवाले सामर्थ्य में [जो ज्योति है]। (या) जिस... म० १ ॥३॥
टिप्पणी
३−(रथे) याने (अक्षेषु) रथचक्रेषु (ऋषभस्य) बलीवर्दस्य (वाजे) बले (वाते) पवने (पर्जन्ये) अ० २।१।२। मेघे (वरुणस्य) सूर्यस्य (शुष्मे) शोषके सामर्थ्ये। अन्यद्गतम् ॥
विषय
हस्तिनि-पुरुषस्य मायौ
पदार्थ
१. (या त्विषि:) = जो दीप्ति (हस्तिनि) = गजेन्द्र में, (द्वीपिनि) = तरक्षु [चीते] में है, (या) = जो दीप्सि (हिरण्ये) = स्वर्ण में है, जो (अप्सु) = जलों में, (गोषु) = गौओं में (या) = जो (पुरुषेषु) = पुरुषों में दीप्ति है। २. जो दीप्ति (रथे) = रथ में है, (अक्षेषु) = रथ के अक्षों [Axles] में है तथा (ऋषभ्यस्य वाजे) = ऋषभ [साँड] के वेगयुक्त गमन में है, जो दीति (वाते) = वायु में है, (पर्जन्ये) = मेघ में है, (वरुणस्य शुष्मे) = जो दीति सूर्य के प्रखर ताप में है-सूर्य के सुखानेवाले ताप में है। ३. जो दीप्ति (राजन्ये) = अभिषिक्त राजा के पुत्र [राजन्य] में है, जो दीति (दुन्दुभौ आयतायाम्) = आयप्यमान आताड्यमान दुन्दुभि में है जो दीप्ति (अश्वस्य वाजे) = घोड़े के वेगयुक्त गमन में है और जो (पुरुषस्य मायौ) = पुरुष की उच्चै?षलक्षण शब्द में है-४. यह सब दीप्ति वह है (या) = जोकि (देवी) = दिव्य है, (सुभगा) = हमें उत्तम सौभाग्यशाली बनाती है और यह दीति अपने निर्माता (इन्द्रम्) = इन्द्र देवता की महिमा को (जजान) = प्रादुर्भूत करती है। (सा) = वह दीप्ति (वर्चसा संविदाना) = रोगनिवारक शकि [Vitality] के साथ ऐकमत्यवाली होती हुई (नः ऐतु) = हमें प्राप्त हो।
भावार्थ
हमारा जीवन प्रभु-दीप्ति से उज्ज्वल हो। यह दीसि हमें वर्चस् प्राप्त कराती हुई प्रभु के समीप प्राप्त कराए।
भाषार्थ
(रथे) रथ में (अक्षेषु) रथों की धुरियों में, (ऋषभस्य) बैल का (वाजे) चाल में, (वाते) वायु में, (पर्जन्ये) मेघ में, (वरुणस्य) वरुण के (शुष्मे) बल में [जो दीप्ति] है, [सा ऐतु] वह (नः) हमें प्राप्त हो (इन्द्रम्) आदि पूर्ववत्।
टिप्पणी
[रथे= रममाणः अस्मिन् तिष्ठति ( निरुक्त ९।२।११), रथ में बैठे की रमणीयता; अक्षेषु =धुरियों में आधारता; वृषभस्य =बैल की चाल में गाम्भीर्य, पर्जन्ये =पालकता; शुष्म है शोषक बल; वरुण है पाप निवारक परमेश्वर। परमेश्वर पाप का शोषण कर देता है, विनाश कर देता है। शुष्मम् बलनाम (निघं० २।९ )] ।
विषय
तेज की प्रार्थना।
भावार्थ
(या सुभगा देवीं) जो सौभाग्यकारिणी दिव्य कान्ति (रथे) रथ में (अक्षेषु) इन्द्रियों या रथ की धुरी से (ऋषभस्य वाजे) श्रेष्ठ पुरुष के वेग ज्ञान बल में (वाते पर्जन्ये) प्रचण्ड वात और मेघ में और (वरुणस्य शुष्मे) वरुण = सूर्य के प्रखर ताप में है, और वह जो (इन्द्रम् जजान) इन्द्र, राजा को उत्पन्न करती है (सा नः वर्चसा सं-विदाना एतु) वह हम में तेज को धारण कराती हुई हमें प्राप्त हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वर्चस्कामोऽथर्वा ऋषिः। बृहस्पति रुतत्विषिर्देवता। त्रिष्टुप् छन्दः॥ चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Energy and Splendour of Life
Meaning
The strength, brilliance and efficiency in the chariot, chariot wheel and endurance of the bull, the force in the wind, the shower in the cloud and blaze in the light of the sun, the divine light and splendour which creates and consecrates the ruler Indra, may all that brilliance bearing the grandeur of life come and bless us.
Translation
The energetic brilliance, which is there in chariot, in dice, in the strength of bull, in storm, in rain-cloud, and in the vehernence of ocean; which divine and fortunate gives birth to the resplendent one, may she come to us overflowing with lustre.
Translation
Whatever glamour of energy is in car, axles, in the courage of strong bull, in air, in the cloud, in the force of atmospheric wind and the sun and the brilliant and mighty that glamour which gave birth to Indra, the electricity, come unto us accompanied with strength and vigor.
Translation
Whatever might that exists in car, axles, in the strong bull's courage, in wind, in cloud, and in the warmth of the Sun, and the blessed spiritual force, that makes a man a king, may that come unto us conjoined with strength and vigor.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(रथे) याने (अक्षेषु) रथचक्रेषु (ऋषभस्य) बलीवर्दस्य (वाजे) बले (वाते) पवने (पर्जन्ये) अ० २।१।२। मेघे (वरुणस्य) सूर्यस्य (शुष्मे) शोषके सामर्थ्ये। अन्यद्गतम् ॥
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