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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 70 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 70/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अथर्वा देवता - श्येनः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुदमन सूक्त
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    अपि॑ नह्यामि ते बा॒हू अपि॑ नह्याम्या॒स्यम्। अ॒ग्नेर्घो॒रस्य॑ म॒न्युना॒ तेन॑ तेऽवधिषं ह॒विः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अपि॑ । न॒ह्या॒मि॒ । ते॒ । बा॒हू इति॑ । अपि॑ । न॒ह्या॒मि॒ । आ॒स्य᳡म् । अ॒ग्ने: । घो॒रस्य॑ । म॒न्युना॑ । तेन॑ । ते॒ । अ॒व॒धि॒ष॒म् । ह॒वि: ॥७३.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपि नह्यामि ते बाहू अपि नह्याम्यास्यम्। अग्नेर्घोरस्य मन्युना तेन तेऽवधिषं हविः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपि । नह्यामि । ते । बाहू इति । अपि । नह्यामि । आस्यम् । अग्ने: । घोरस्य । मन्युना । तेन । ते । अवधिषम् । हवि: ॥७३.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 70; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    शत्रु के दमन का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे शत्रु !] (ते) तेरी (बाहू) दोनों भुजाओं को (अपि नह्यामि) बाँधे देता हूँ और (आस्यम्) मुख को (अपि) भी (नह्यामि) बन्द करता हूँ। (घोरस्य) भयंकर (अग्नेः) तेजस्वी सेनापति के (तेन मन्युना) उस क्रोध से (ते) तेरे (हविः) भोजनादि ग्राह्य पदार्थ को (अवधिषम्) मैंने नष्ट कर दिया है ॥५॥

    भावार्थ

    मन्त्र चार के समान ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(घोरस्य) भयङ्करस्य। अन्यत् पूर्ववत्-म० ४ ॥

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    विषय

    घोर अग्नि के मन्यु से

    पदार्थ

    १. (ते बाहू अपि नह्यामि) = हे शत्रो ! तेरी भजाओं को बाँध देता हूँ। (आस्यम् अपिनह्यामि) = मुख को भी बाँध देता हूँ। (घोरस्य अग्नेः तेन मन्युना) = शत्रु-भयंकर, अग्निवत् भस्मकारी प्रभु के उस तेज से [क्रोध से] (ते हविः अवधिषम्) = तेरे होतव्यद्रव्यों को ही मैं नष्ट किये देता हूँ।

    भावार्थ

    औरों के विनाश के लिए यत्नशील पुरुष प्रभु की व्यवस्था से स्वयं ही नष्ट हो जाता है।

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    भाषार्थ

    [हे शत्रु राजन्] (ते) तेरी (बाहू) बाहुओं को (अपि नह्यामि) मैं बांधता हूं, (आस्यम्) तथा तेरे मुख को (अपि) भी (नह्यामि) मैं बांधता हूं। (अग्नेः घोरस्य) अग्रणी अर्थात् प्रधानमन्त्री के (तेन मन्युना) उस कोप के कारण (ते) तेरी (हविः) युद्धसम्बन्धी हवि अर्थात् सेना का भी (अधिषम्) मैंने वध कर दिया है।

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    विषय

    दुष्ट पुरुषों का वर्णन।

    भावार्थ

    हे शत्रो ! (ते बाहू आस्यम् अपि नह्यामि) तेरे बाहुओं और मुख को बांध दूं। और (घोरस्य अग्नेः मन्युना, तेन ते इविः अवधिषम्) भयंकर अग्नि अर्थात् नेता राजा के क्रोध से तेरे अन्न, बल का नाश करूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। श्येन उत मन्त्रोक्ता देवता॥ १ त्रिष्टुप्। अत्तिजगतीगर्भा जगती। ३-५ अनुष्टुभः (३ पुरः ककुम्मती)॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Nip the Enemy

    Meaning

    I nail your arms and the army. I shut your advance. By the force and power of terrible Agni, fire, I destroy your might and materials.

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    Translation

    I bind both your arms; I shut your mouth with a bandage. With the wrath of the furious adorable Lord, I destroy your provisions (of the sacrifice).

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.73.5AS PER THE BOOK

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    Translation

    I, the man of intuitional power introvert the thought and action of this man and binds his Asyani, the centrifugal tendency to make it centripetal, and through the mighty antidote of terrible fire of discrimination destroy his tendency of wordly affection.

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    Translation

    O foe, behind thy back I tie thine arms, I bind a bandage on thy mouth, I with the anger of an awe-inspiring king have destroyed all thy strength and vitality!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(घोरस्य) भयङ्करस्य। अन्यत् पूर्ववत्-म० ४ ॥

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