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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
    ऋषिः - उपरिबभ्रवः देवता - पूषा छन्दः - त्रिपदार्षी गायत्री सूक्तम् - स्वस्तिदा पूषा सूक्त
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    पूष॒न्तव॑ व्र॒ते व॒यं न रि॑ष्येम क॒दा च॒न। स्तो॒तार॑स्त इ॒ह स्म॑सि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पूष॑न् । तव॑ । व्र॒ते । व॒यम् । न । रि॒ष्ये॒म । क॒दा । च॒न । स्तो॒तार॑: । ते॒ । इ॒ह । स्म॒सि॒ ॥१०.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पूषन्तव व्रते वयं न रिष्येम कदा चन। स्तोतारस्त इह स्मसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पूषन् । तव । व्रते । वयम् । न । रिष्येम । कदा । चन । स्तोतार: । ते । इह । स्मसि ॥१०.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर के उपासना का उपदेश।

    पदार्थ

    (पूषन्) हे पूषा, पालन करनेवाले परमेश्वर ! (तव) तेरे (व्रते) वरणीय नियम में [रहकर] (वयम्) हम (कदा चन) कभी भी (न)(रिष्येम) दुःखी होवें। (इह) यहाँ पर (ते) तेरे (स्तोतारः) स्तुति करनेवाले (स्मसि) हम लोग हैं ॥३॥

    भावार्थ

    पुरुषार्थी लोग परमेश्वर के गुण और कर्मों के अनुकूल चलकर सदा सुखी रहते हैं ॥३॥ यह मन्त्र ऋग्वेद में है-म० ६।५४।९ और यजु० ३४।४१ ॥

    टिप्पणी

    ३−(पूषन्) पोषक परमात्मन् (तव) (व्रते) वरणीये नियमे (वयम्) उपासकाः (न) निषेधे (रिष्येम) रिष हिंसायाम्, दैवादिकः, अकर्मकः। हिंसिता भवेम (कदा चन) कदापि (स्तोतारः) स्तावकाः (ते) तव (इह) अत्र (स्मसि) स्मः। भवामः ॥

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    विषय

    तव व्रते

    पदार्थ

    १.हे (पूषन्) = पोषकदेव! (तव व्रते) = आपसे उपदिष्ट कर्मों में आपकी प्रासि के साधनभूत यागादि कर्मों में वर्तमान (वयम्) = हम (कदाचन न रिष्येम) = कभी हिंसित न हों, पुत्रों, मित्रों व धनादि से वियुक्त होकर दु:खी न हों। २. (इह) = इस जीवन में (ते स्तोतारः स्मसि) = आपके स्तोता बनें, सदा आपका स्मरण करते हुए उत्तम कर्मों में ही प्रवृत्त रहें, मार्गभ्रष्ट न हों।

    भावार्थ

    हे पूषन् प्रभो। हम आपका स्मरण करते हुए, आपकी प्राप्ति के साधनभूत, आपसे उपदिष्ट कर्मों में प्रवृत्त रहें।


     

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    भाषार्थ

    (पूषन्) हे पुष्ट करने वाले परमेश्वर ! (तव) तेरे (व्रते) व्रत में वर्तमान (वयम्) हम (कदाचन) कभी भी (न रिष्येम) न हिंसित हों। (इह) इस जीवन में (ते) तेरा (स्तोतारः) स्तवन करने वाले (स्मसि) हम हैं।

    टिप्पणी

    ["तव व्रते", मन्त्र (२) के अनुसार पूषा का व्रत "अप्रयुच्छन्" द्वारा निर्दिष्ट किया है। इस व्रत को धारण करते हुए हम उपासक भी हिंसित नहीं होते, क्योंकि बिना प्रमाद के सर्वदा सावधान हुए हम निज कर्तव्य पालन करते हैं और परमेश्वर का स्तवन करते हैं]।

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    विषय

    उत्तम मार्गदर्शक, पति और पालक से प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे पूषन् ! सब के परिपोषक प्रभो ! (वयं) हम (तव व्रते) तेरे उपासना-कार्य में (कदा चन) कभी (न)(रिष्येम) विनष्ट हों। हम (इह) यहां (ते) तेरे सदा (स्तोतारः) सत्य गुणों का वर्णन करते (स्मसि) रहें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    उपरिबभ्रव ऋषिः। ऋग्वेदे देवश्रवा यामायन ऋषिः। पूषा देवता। १, २ त्रिष्टुभौ। ३ त्रिपदा आर्षी गायत्री। ४ अनुष्टुप्। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Worship of Divinity

    Meaning

    O Pusha, lord of life and rectitude, pray guide us that we may never fail in the observance of your law and vows of discipline. We are your celebrants and worshippers here every moment of our life.

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    Translation

    O Lord, the nourisher, may we never suffer detriment when engaged in your worship; we are here to sing your praise. (Also Rg. VI.54.9)

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.10.3AS PER THE BOOK

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    Translation

    O All-guarding Divinity! we are your eulogizers, let us not ever be injured under your law and protection.

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    Translation

    We are Thy praisers, O God; never let us be injured under thy protection.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(पूषन्) पोषक परमात्मन् (तव) (व्रते) वरणीये नियमे (वयम्) उपासकाः (न) निषेधे (रिष्येम) रिष हिंसायाम्, दैवादिकः, अकर्मकः। हिंसिता भवेम (कदा चन) कदापि (स्तोतारः) स्तावकाः (ते) तव (इह) अत्र (स्मसि) स्मः। भवामः ॥

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