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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 5
    ऋषिः - चातनः देवता - इन्द्रासोमौ, अर्यमा छन्दः - जगती सूक्तम् - शत्रुदमन सूक्त
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    इन्द्रा॑सोमा व॒र्तय॑तं दि॒वस्पर्य॑ग्नित॒प्तेभि॑र्यु॒वमश्म॑हन्मभिः। तपु॑र्वधेभिर॒जरे॑भिर॒त्त्रिणो॒ नि पर्शा॑ने विध्यतं॒ यन्तु॑ निस्व॒रम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑सोमा । व॒र्तय॑तम् । दि॒व: । परि॑ । अ॒ग्नि॒ऽत॒प्तेभि॑: । यु॒वम् । अश्म॑हन्मऽभि: । तपु॑:ऽवधेभि: । अ॒जरे॑भि: । अ॒त्त्रिण॑: । नि । पर्शा॑ने । वि॒ध्य॒त॒म् । यन्तु॑ । नि॒ऽस्व॒रम् ॥४.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रासोमा वर्तयतं दिवस्पर्यग्नितप्तेभिर्युवमश्महन्मभिः। तपुर्वधेभिरजरेभिरत्त्रिणो नि पर्शाने विध्यतं यन्तु निस्वरम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रासोमा । वर्तयतम् । दिव: । परि । अग्निऽतप्तेभि: । युवम् । अश्महन्मऽभि: । तपु:ऽवधेभि: । अजरेभि: । अत्त्रिण: । नि । पर्शाने । विध्यतम् । यन्तु । निऽस्वरम् ॥४.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 4; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    हथियार बनाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्रासोमा) हे सूर्य और चन्द्र [समान राजा और मन्त्री !] (युवम्) तुम दोनों (दिवः) आकाश से (अग्नितप्तेभिः) अग्नि से तपाये हुए, (अश्महन्मभिः) मेघ के समान चलनेवाले [अथवा फैलनेवाले पदार्थों पत्थर, लोहे आदि से मार करनेवाले] (अजरेभिः) अजर [अटूट] (तपुर्वधेभिः) तपा देनेवाले हथियारों से (अत्त्रिणः) खाऊ लोगों को (परि वर्तयतम्) लुढ़कवा दो, (पर्शाने) गढ़े के बीच (नि विध्यतम्) छेद डालो, वे लोग (निस्वरम्) चुप्पी (यन्तु) प्राप्त करें ॥५॥

    भावार्थ

    सेनापति लोग वायुयानों में चढ़ कर आकाश से आग्नेय हथियारों द्वारा शत्रुओं को मार गिरावें ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(इन्द्रासोमा) म० १। (परिवर्तयतम्) वर्तनेन प्रेरयतम् (दिवः) आकाशात् (अग्नितप्तेभिः) अग्निना संतप्तैः (युवम्) युवाम् (अश्महन्मभिः) अशिशकिभ्यां छन्दसि। उ० ४।१४७। अशू व्याप्तौ संघाते च-मनिन्। अश्मा मेघः-निघ० १।१०। हन हिंसागत्योः-मनिन्। मेघवद् गमनशीलैः। यद्वा व्यापनशीलैः पदार्थैः पाषाणलोहादिभिर्मारयद्भिः (तपुर्वधेभिः) तापकैरायुधैः (अजरेभिः) अजीर्णैः। दृढैः (नि) नितराम् (पर्शाने) सम्यानच् स्तुवः। उ० २।८९। स्पृश स्पर्शने-आनच्। यद्वा, पर+शॄ हिंसायाम्-आनच्, स च डित्। पृषोदरादिरूपम्। पर्शानो मेघः−टिप्पणी, निघ० १।१०। गुहायाम्। गर्ते (विध्यतम्) ताडयतम् (यन्तु) प्राप्नुवन्तु ते शत्रवः (निस्वरम्) शब्दराहित्यम् ॥

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    विषय

    दुष्टों का देश से निर्वासन

    पदार्थ

    १. (इन्द्रासोमा) = हे जितेन्द्रिय राजन् व सौम्य न्यायाधीश! (युवम्) = आप दोनों (दिवः) = अन्तरिक्ष से परि-चारों और (वर्तयतम्) = आयुधों को प्रेरित करो। (अग्नितभि:) = अग्नि से तपाये हुए (तपूर्वधेभिः) = तापक प्रहरणों से तथा (अजरेभि:) = न जीर्ण होनेवाले, अर्थात् दृढ़ (अश्महन्मभिः) = अश्मसारभूत लोह से बने हुए हनन-साधन आयुधों से (अत्त्रिण:) = औरों को खा-जानेवाले राक्षसों के (पर्शाने) = पावस्थानों में (निविध्यतम्) = प्रहार करो। २. इसप्रकार इन प्रजापीड़क राक्षसों को विध्य करो कि वे (निस्वरम्) = बिना शब्द के (यन्तु) = यहाँ से दूर चले जाएँ। ये प्रजा में अपना रोना रोते हुए गलत प्रचार न कर पाएँ।

    भावार्थ

    राष्ट्र की ठीक व्यवस्था के लिए दुष्टों को उचित दण्ड दिया जाए और उन्हें राष्ट्र से निर्वासित कर दिया जाए।

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    भाषार्थ

    (इन्द्रासोमा) हे सम्राट् तथा सेनाध्यक्ष ! (युवम्) तुम दोनों (दिवस्परि) द्युलोक से [आयुधों को] (वर्तयतम्) फेंको तथा (अग्नितप्तेभिः) अग्नि की तरह या अग्निद्वारा प्रतप्त (अश्महन्मभिः) पत्थरूपी हथियारों द्वारा और (अजरेभिः) नये (तपुर्वधेभिः) प्रतप्त आयुधों द्वारा (अत्रिणः) मांस-भक्षकों को (पर्शाने) उन की पसलियों पर विध्यतम्) उन्हें बींधो और के (निस्वरम्= निःस्वरम्) विना चिल्लाए (यन्तु) चल बसें, मर जाय।

    टिप्पणी

    [दिवः= अन्तरिक्ष के ऊपर के स्थान अर्थात् द्युलोक से। पृथिवीस्थ अत्रियों पर अन्तरिक्ष से, तथा विमानों द्वारा युद्ध करने वालों पर द्यूलोक से आयुध फैंकों। निस्वरम्= निःस्वरम् (सायण)। अश्महन्मभिः= अश्मा, अयःसारः। अयः सारमयैर्हननसाधनैरायुधः (सायण)]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Destruction of Enemies

    Meaning

    Indra and Soma, turn all round and revolve your search lights, ignite and shoot out from the skies your weapons of offence and defence, and, with fiery, thunder-tipped, fatally destructive, irresistible and inviolable arms, fix the voracious ogres, strike them on the precipice and throw them into the abyss, let them run off into silence and oblivion without uttering a sigh of pain or voice of protest.

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    Translation

    O Lord of resplendence and love-divine, please scatter your deadly weapons from heaven from all-sides, pierce the sides of the enemies with fiery scorching thunderbolts, so that, they die out without uttering a syllable. (Also Rg. VII. 104.5)

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    Translation

    O King and premier! You both cast from all sides, the steel-weapons blazing with flames on the anti-national and anti-social elements from the space and pierce them in their sides with everready fiery arms so that they pass away without any cry.

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    Translation

    O King and Commander-in-chief, cast ye downward from the sky your deadly weapons of steel burning with fiery flame, unfailing, scorching darts. Shoot the voracious fiends in the ribs, and let them die without a sound!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(इन्द्रासोमा) म० १। (परिवर्तयतम्) वर्तनेन प्रेरयतम् (दिवः) आकाशात् (अग्नितप्तेभिः) अग्निना संतप्तैः (युवम्) युवाम् (अश्महन्मभिः) अशिशकिभ्यां छन्दसि। उ० ४।१४७। अशू व्याप्तौ संघाते च-मनिन्। अश्मा मेघः-निघ० १।१०। हन हिंसागत्योः-मनिन्। मेघवद् गमनशीलैः। यद्वा व्यापनशीलैः पदार्थैः पाषाणलोहादिभिर्मारयद्भिः (तपुर्वधेभिः) तापकैरायुधैः (अजरेभिः) अजीर्णैः। दृढैः (नि) नितराम् (पर्शाने) सम्यानच् स्तुवः। उ० २।८९। स्पृश स्पर्शने-आनच्। यद्वा, पर+शॄ हिंसायाम्-आनच्, स च डित्। पृषोदरादिरूपम्। पर्शानो मेघः−टिप्पणी, निघ० १।१०। गुहायाम्। गर्ते (विध्यतम्) ताडयतम् (यन्तु) प्राप्नुवन्तु ते शत्रवः (निस्वरम्) शब्दराहित्यम् ॥

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