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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 27

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 27/ मन्त्र 6
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - त्रिवृत् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त

    मा वः॑ प्रा॒णं मा वो॑ऽपा॒नं मा हरो॑ मा॒यिनो॑ दभन्। भ्रा॑जन्तो वि॒श्ववे॑दसो दे॒वा दैव्ये॑न धावत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा। वः॒। प्रा॒णम्। मा। वः॒। अ॒पा॒नम्। मा। हरः॑। मा॒यिनः॑। द॒भ॒न्। भ्राज॑न्तः। वि॒श्वऽवे॑दसः। दे॒वाः। दैव्ये॑न। धा॒व॒त॒ ॥२७.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा वः प्राणं मा वोऽपानं मा हरो मायिनो दभन्। भ्राजन्तो विश्ववेदसो देवा दैव्येन धावत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा। वः। प्राणम्। मा। वः। अपानम्। मा। हरः। मायिनः। दभन्। भ्राजन्तः। विश्वऽवेदसः। देवाः। दैव्येन। धावत ॥२७.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 27; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    [हे मनुष्यो !] (मा) न तो (वः) तुम्हारे (प्राणम्) श्वास को, (मा)(वः) तुम्हारे (अपानम्) प्रश्वास को, और (मा)(हरः) तेज को (मायिनः) छली लोग (दभन्) नष्ट करें। (भ्राजन्तः) चमकते हुए, (विश्ववेदसः) सब प्रकार धनवाले, (देवाः) विद्वानो ! तुम (दैव्येन) विद्वानों के योग्य कर्म के साथ (धावत) धावा करो ॥६॥

    भावार्थ - मनुष्यों को विद्वानों के समान दूरदर्शी होकर शत्रु लोग रोकने चाहिएँ कि जिससे वे किसी प्रकार हानि न पहुँचावें ॥६॥

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