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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 36

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 36/ मन्त्र 6
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - शतवारः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शतवारमणि सूक्त

    श॒तम॒हं दु॒र्णाम्नी॑नां गन्धर्वाप्स॒रसां॑ श॒तम्। श॒तं श॒श्व॒न्वती॑नां श॒तवा॑रेण वारये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒तम्। अ॒हम्। दुः॒ऽनाम्नी॑नाम्। ग॒न्ध॒र्व॒ऽअ॒प्स॒र॒सा॑म्। श॒तम्। श॒तम्। श॒श्व॒न्ऽवती॑नाम्। श॒तऽवा॑रेण। वा॒र॒ये॒ ॥३६.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शतमहं दुर्णाम्नीनां गन्धर्वाप्सरसां शतम्। शतं शश्वन्वतीनां शतवारेण वारये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शतम्। अहम्। दुःऽनाम्नीनाम्। गन्धर्वऽअप्सरसाम्। शतम्। शतम्। शश्वन्ऽवतीनाम्। शतऽवारेण। वारये ॥३६.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 36; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (अहम्) मैं (दुर्णाम्नीनां शतम्) सौ दुर्नाम्नी [बवासीर आदि पीड़ाओं] को और (गन्धर्वाप्सरसां शतम्) सौ गन्धर्वों [पृथिवी पर धरे हुए] और अप्सराओं [आकाश में चलनेवाले रोगों] को और (शश्वन्वतीनां शतम्) सौ उछलती हुई [पीड़ाओं] को (शतवारेण) शतवार [औषध] से (वारये) हटाता हूँ ॥६॥

    भावार्थ - जो रोग शरीर की मलीनता से पृथिवी और आकाश में जल-वायु की मलीनता से और जो रोग एक दूसरे के लगाव से उत्पन्न होते हैं, वैद्य लोग उनको शतवार औषध से नाश करें ॥६॥

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