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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 36

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 36/ मन्त्र 3
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - शतवारः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शतवारमणि सूक्त

    ये यक्ष्मा॑सो अर्भ॒का म॒हान्तो॒ ये च॑ श॒ब्दिनः॑। सर्वा॑न् दुर्णाम॒हा म॒णिः श॒तवा॑रो अनीनशत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये। यक्ष्मा॑सः। अ॒र्भ॒काः। म॒हान्तः॑। ये। च॒। श॒ब्दिनः॑। सर्वा॑न्। दु॒र्ना॒म॒ऽहा। म॒णिः। श॒तऽवा॑रः। अ॒नी॒न॒श॒त् ॥३६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये यक्ष्मासो अर्भका महान्तो ये च शब्दिनः। सर्वान् दुर्णामहा मणिः शतवारो अनीनशत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये। यक्ष्मासः। अर्भकाः। महान्तः। ये। च। शब्दिनः। सर्वान्। दुर्नामऽहा। मणिः। शतऽवारः। अनीनशत् ॥३६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 36; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (ये) जो (यक्ष्मासः) राजरोग (अर्भकाः) छोटे और [जो] (महान्तः) बड़े हैं, (च) और (ये) जो (शब्दिनः) महाशब्दकार हैं। (सर्वान्) उन सबको (दुर्णामहा) दुर्नामों [बुरे नामवाले बवासीर दाद आदि] के मिटाने हारे, (मणिः) प्रशंसनीय (शतवारः) शतवार [मन्त्र १] ने (अनीनशत्) नष्ट कर दिया है ॥३॥

    भावार्थ - छोटे-बड़े राजरोग आदि और वे रोग जिनसे शरीर में खुजली वा चरचराहट शब्द होता है, शतावर औषध से सब नष्ट हो जाते हैं ॥३॥

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