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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 36

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 36/ मन्त्र 5
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - शतवारः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शतवारमणि सूक्त

    हिर॑ण्यशृङ्ग ऋष॒भः शा॑तवा॒रो अ॒यं म॒णिः। दु॒र्णाम्नः॒ सर्वां॑स्तृ॒ड्ढ्वाव॒ रक्षां॑स्यक्रमीत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हिर॑ण्यऽशृङ्गः। ऋ॒ष॒भः। शा॒त॒ऽवा॒रः। अ॒यम्। म॒णिः। दुः॒ऽनाम्नः॑। सर्वा॑न्। तृ॒ड्ढ्वा। अव॑। रक्षां॑सि। अ॒क्र॒मी॒त् ॥३६.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हिरण्यशृङ्ग ऋषभः शातवारो अयं मणिः। दुर्णाम्नः सर्वांस्तृड्ढ्वाव रक्षांस्यक्रमीत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    हिरण्यऽशृङ्गः। ऋषभः। शातऽवारः। अयम्। मणिः। दुःऽनाम्नः। सर्वान्। तृड्ढ्वा। अव। रक्षांसि। अक्रमीत् ॥३६.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 36; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    (हिरण्यशृङ्गः) सोने के समान सींग [अगले भाग] वाला, (ऋषभः) ऋषभ [औषध विशेष के समान] (अयम्) इस (मणिः) प्रशंसनीय (शातवारः) शतवार ने (सर्वान्) सब (दुर्णाम्नः) दुर्नामों [बुरे नामवाले बवासीर आदि] को (तृड्ढ्वा) मार कर (रक्षांसि) राक्षसों [रोगजन्तुओं] को (अव अक्रमीत्) खूँद डाला है ॥५॥

    भावार्थ - जैसे ऋषभ औषध बहुत बलकारी और अनेक रोगनाशक है, वैसे ही यह शतवार औषध है –॥५॥

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