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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 135

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 135/ मन्त्र 3
    सूक्त - देवता - प्रजापतिरिन्द्रश्च छन्दः - आर्षी पङ्क्तिः सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    अला॑बूनि पृ॒षात॑का॒न्यश्व॑त्थ॒पला॑शम्। पिपी॑लिका॒वट॒श्वसो॑ वि॒द्युत्स्वाप॑र्णश॒फो गोश॒फो जरित॒रोथामो॑ दै॒व ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अला॑बूनि । पृ॒षात॑का॒नि । अश्व॑त्थ॒ऽपला॑शम् ॥ पिपी॑लि॒का॒ । वट॒श्वस॑: । वि॒ऽद्युत् । स्वाप॑र्णश॒फ: । गोश॒फ: । जरित॒: । आ । उथाम: । दै॒व ॥१३५.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अलाबूनि पृषातकान्यश्वत्थपलाशम्। पिपीलिकावटश्वसो विद्युत्स्वापर्णशफो गोशफो जरितरोथामो दैव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अलाबूनि । पृषातकानि । अश्वत्थऽपलाशम् ॥ पिपीलिका । वटश्वस: । विऽद्युत् । स्वापर्णशफ: । गोशफ: । जरित: । आ । उथाम: । दैव ॥१३५.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 135; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (अलाबूनि) तूँबी आदि बेलें, (पृषातकानि) पृषातक [वृक्ष विशेष], (अश्वत्थपलाशम्) पीपल और पलाश वा ढाक [वृक्ष विशेष], (पिपीलिका) पिपीलिका [वृक्ष विशेष], (वटश्वसः) वटश्वस [वृक्ष विशेष], (विद्युत्) बिजुली [वृक्ष विशेष], (स्वापर्णशफः) स्वापर्णशफ [वृक्ष विशेष], और (गोशफः) गोशफ [वृक्ष विशेष] हैं, [उन सब में] (जरितः) हे स्तुति करनेवाले (दैव) परमात्मा को देवता माननेवाले विद्वान् ! (आ) सब ओर से (उथामः) हम उठते हैं ॥३॥

    भावार्थ - मनुष्यों को योग्य है कि वाटिका, खेत आदि में अनेक लता बेलों और वृक्षों को लगाकर ठीक-ठीक उपकार लेकर सुखी होवें ॥३॥

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