Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 14

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 14/ मन्त्र 3
    सूक्त - सौभरिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-१४

    यो न॑ इ॒दमि॑दं पु॒रा प्र वस्य॑ आनि॒नाय॒ तमु॑ व स्तुषे। सखा॑य॒ इन्द्र॑मू॒तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । न॒: । इ॒दम्ऽइ॑दम् । पु॒रा । प्र । वस्य॑: । आ॒ऽनि॒नाय॑ । तम् । ऊं॒ इति॑ । व॒: । स्तु॒षे॒ ॥ सखा॑य: । इ॒न्द्र॑म् । ऊ॒तये॑ ॥१४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो न इदमिदं पुरा प्र वस्य आनिनाय तमु व स्तुषे। सखाय इन्द्रमूतये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । न: । इदम्ऽइदम् । पुरा । प्र । वस्य: । आऽनिनाय । तम् । ऊं इति । व: । स्तुषे ॥ सखाय: । इन्द्रम् । ऊतये ॥१४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 14; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (यः) जो [पराक्रमी] (नः) हमारे लिये (इदमिदम्) इस-इस (वस्यः) उत्तम वस्तु को (पुरा) पहिले (प्र) अच्छे प्रकार (आनिनाय) लाया है, (तम् उ) उस ही (इन्द्रम्) इन्द्र [महाप्रतापी वीर] को, (सखायः) हे मित्रो ! (वः) तुम्हारी (ऊतये) रक्षा के लिये (स्तुवे) मैं सराहता हूँ ॥३॥

    भावार्थ - जो पुरुष पहिले से ही धीर-वीर होवे, लोग उसकी बड़ाई करके गुण ग्रहण करें ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top