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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 12

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 12/ मन्त्र 7
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - शाला, वास्तोष्पतिः छन्दः - आर्ष्यनुष्टुप् सूक्तम् - शालनिर्माण सूक्त

    एमां कु॑मा॒रस्तरु॑ण॒ आ व॒त्सो जग॑ता स॒ह। एमां प॑रि॒स्रुतः॑ कु॒म्भ आ द॒ध्नः क॒लशै॑रगुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । इ॒माम् । कु॒मा॒र: । तरु॑ण: । आ । व॒त्स: । जग॑ता । स॒ह । आ । इ॒माम् । प॒रि॒ऽस्रुत॑: । कु॒म्भ: । आ । द॒ध्न: । क॒लशै॑: । अ॒गु॒: ॥१२.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एमां कुमारस्तरुण आ वत्सो जगता सह। एमां परिस्रुतः कुम्भ आ दध्नः कलशैरगुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । इमाम् । कुमार: । तरुण: । आ । वत्स: । जगता । सह । आ । इमाम् । परिऽस्रुत: । कुम्भ: । आ । दध्न: । कलशै: । अगु: ॥१२.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 12; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    (इमाम्) इस [शाला] में (कुमारः) बालक, (आ) और (तरुणः) युवा, (आ) और (जगता सह) चलनेवाले गौ आदि के साथ (वत्सः) बछड़ा, (आ) और (इमाम्) इस [शाला] में (परिस्रुतः) पिघलते हुए रस का (कुम्भः) घड़ा (दध्नः) दही के (कलशैः) कलशों के साथ (आ अगुः) आये हैं ॥७॥

    भावार्थ - गृहस्थ लोग सब प्रकार की आवश्यक सामग्री अपने घरों में रक्खें ॥७॥

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