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अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 12

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  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 12/ मन्त्र 4
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - शाला, वास्तोष्पतिः छन्दः - शक्वरीगर्भा जगती सूक्तम् - शालनिर्माण सूक्त

    इ॒मां शालां॑ सवि॒ता वा॒युरिन्द्रो॒ बृह॒स्पति॒र्नि मि॑नोतु प्रजा॒नन्। उ॒क्षन्तू॒द्ना म॒रुतो॑ घृ॒तेन॒ भगो॑ नो॒ राजा॒ नि कृ॒षिं त॑नोतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒माम् । शाला॑म् । स॒वि॒ता । वा॒यु: । इन्द्र॑: । बृह॒स्पति॑: । नि । मि॒नो॒तु॒ । प्र॒ऽजा॒नन् । उ॒क्षन्तु॑ । उ॒द्ना । म॒रुत॑: । घृ॒तेन॑ । भग॑: । न॒: । राजा॑ । नि । कृ॒षिम् । त॒नो॒तु॒ ॥१२.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमां शालां सविता वायुरिन्द्रो बृहस्पतिर्नि मिनोतु प्रजानन्। उक्षन्तूद्ना मरुतो घृतेन भगो नो राजा नि कृषिं तनोतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमाम् । शालाम् । सविता । वायु: । इन्द्र: । बृहस्पति: । नि । मिनोतु । प्रऽजानन् । उक्षन्तु । उद्ना । मरुत: । घृतेन । भग: । न: । राजा । नि । कृषिम् । तनोतु ॥१२.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 12; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    (इमाम् शालाम्) इस शाला को (सविता) सबका चलानेवाला पुरुष [वा सूर्य,] (वायुः) वेगवान् पुरुष [वा पवन] (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् पुरुष [वा मेघ] और (प्रजानन्) ज्ञानवान् (बृहस्पतिः) बड़े-बड़े कामों का रक्षक पुरुष [प्रत्येक] (नि मिनोतु) जमाकर बनावे। (मरुतः) शूर देवता [विद्वान् लोग] (उद्ना) जल से और (घृतेन) घी से (उक्षन्तु) सींचें और (भगः) भाग्यवान् (राजा) राजा [प्रधान पुरुष] (नः) हमारेलिये (कृषिम्) खेती को (नि) सदैव (तनोतु) बढ़ावे ॥४॥

    भावार्थ - शाला निर्माण में प्रधान और सब कार्यकर्ता कर्म-कुशल हों, घाम, वायु और मेघ, तथा जल, घी आदि सामग्री के लिये यथावत् अवकाश रहे। और निर्वाह के लिए खेतीविद्या का सत्कार करें ॥४॥

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