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अथर्ववेद > काण्ड 8 > सूक्त 10 > पर्यायः 2

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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वाचार्यः देवता - विराट् छन्दः - त्रिपदा साम्न्यनुष्टुप् सूक्तम् - विराट् सूक्त

    सोद॑क्राम॒त्सान्तरि॑क्षे चतु॒र्धा विक्रा॑न्तातिष्ठत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सा । उत् । अ॒क्रा॒म॒त् । सा। अ॒न्तरि॑क्षे । च॒तु॒:ऽधा । विऽक्रा॑न्ता । अ॒ति॒ष्ठ॒त् ॥११.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोदक्रामत्सान्तरिक्षे चतुर्धा विक्रान्तातिष्ठत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सा । उत् । अक्रामत् । सा। अन्तरिक्षे । चतु:ऽधा । विऽक्रान्ता । अतिष्ठत् ॥११.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10; पर्यायः » 2; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (सा) वह [विराट्] (उत् अक्रामत्) ऊपर चढ़ी, (सा) वह (अन्तरिक्षे) अन्तरिक्ष के बीच (चतुर्धा) चार प्रकार [चारों दिशाओं में] (विक्रान्ता) विक्रम [पराक्रम] करती हुई (अतिष्ठत्) ठहरी ॥१॥

    भावार्थ - उस ईश्वरशक्ति के पुरुषार्थ से आकाश में लोक-लोकान्तर उत्पन्न हुए हैं ॥१॥

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