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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 76 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 76/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अत्रिः देवता - अश्विनौ छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    उ॒ता या॑तं संग॒वे प्रा॒तरह्नो॑ म॒ध्यंदि॑न॒ उदि॑ता॒ सूर्य॑स्य। दिवा॒ नक्त॒मव॑सा॒ शंत॑मेन॒ नेदानीं॑ पी॒तिर॒श्विना त॑तान ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । आ । या॒त॒म् । स॒म्ऽग॒वे । प्रा॒तः । अह्नः॑ । म॒ध्यन्दि॑ने । उत्ऽइ॑ता । सूर्य॑स्य । दिवा॑ । नक्त॑म् । अव॑सा । शम्ऽत॑मेन । न । इ॒दानी॑म् । पी॒तिः । अ॒श्विना॑ । आ । त॒ता॒न॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उता यातं संगवे प्रातरह्नो मध्यंदिन उदिता सूर्यस्य। दिवा नक्तमवसा शंतमेन नेदानीं पीतिरश्विना ततान ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत। आ। यातम्। सम्ऽगवे। प्रातः। अह्नः। मध्यंदिने। उत्ऽइता। सूर्यस्य। दिवा। नक्तम्। अवसा। शम्ऽतमेन। न। इदानीम्। पीतिः। अश्विना। आ। ततान ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 76; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे अश्विना स्त्रीपुरुषौ ! युवमह्नो मध्यन्दिने प्रातः सूर्य्यस्योदिताऽह्नः सङ्गवे च दिवा नक्तं शन्तमेनावसा सहाऽऽयातम्। उत युवयोर्या पीतिराऽऽततान तामिदानीन्न हिंस्यातम् ॥३॥

    पदार्थः

    (उत) अपि (आ) (यातम्) आगच्छतम् (सङ्गवे) सङ्गच्छन्ति गावो यस्मिन् सायं समये तस्मिन् (प्रातः) प्रभाते (अहः) दिवसस्य (मध्यन्दिने) मध्याह्ने (उदिता) उदिते (सूर्य्यस्य) (दिवा) दिवसे (नक्तम्) रात्रौ (अवसा) रक्षणादिना (शन्तमेन) अतिशयितेन सुखेन (न) (इदानीम्) (पीतिः) पानम् (अश्विना) व्याप्तसुखौ (आ) (ततान) आतनोति ॥३॥

    भावार्थः

    कृतविवाहाः स्त्रीपुरुषाः प्रातर्मध्यसायंसमयेष्वहर्निशं कल्याणकरैः कर्म्मभिः सुखानि प्राप्नुवन्तु कदाचिदालस्यं मा कुर्वन्तु ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (अश्विना) व्याप्तसुख स्त्रीपुरुषो ! तुम (अह्नः) दिवस के (मध्यन्दिने) मध्याह्न भाग में और (प्रातः) प्रभातसमय में (सूर्य्यस्य) सूर्यमण्डल के (उदिता) उदय होने में और दिन के (सङ्गवे) सायं समय में जिसमें गौएँ सङ्गत होतीं अर्थात् चर के आतीं (दिवा) दिन (नक्तम्) रात्रि (शन्तमेन) अत्यन्त सुख से (अवसा) रक्षा आदि के साथ (आ, यातम्) आओ (उत) और तुम दोनों की जो (पीतिः) पिआवट (आ, ततान) विस्तृत होती है उसको (इदानीम्) अब (न) नहीं नाश करो ॥३॥

    भावार्थ

    किया विवाह जिन्होंने वे स्त्री-पुरुष प्रातः, मध्याह्न, सायं समयों में दिन-रात्रि को कल्याण करनेवाले कर्म्मों को सुखों से प्राप्त हों, कभी आलस्य मत करें ॥३॥

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    विषय

    दो अश्वी । रथी सारथिवत् जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों के परस्पर के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०- ( उत ) और हे ( अश्विना ) जितेन्द्रिय, रथी सारथिवत् गृहस्थ स्त्री पुरुषो ! आप दोनों ( संगवे ) गौवों के दोहन काल में एकत्र आजाने वा किरणों के प्राप्त होने के सायं समय में और ( अह्नः प्रातः ) दिन के प्रातः समय में वा (मध्यन्दिने) दिन के मध्य काल, दोपहर में वा ( सूर्यस्य उदिता ) सूर्य के ऊपर आजाने पर अर्थात् ( दिवा-नक्तम् ) दिन और रात्रि सब समय ( शं-तमेन ) अत्यन्त शान्तिदायक (अवसा ) ज्ञान, प्रेम और रक्षासाधन सहित (आ यातम् ) आया जाया करो (इदा-नीम् ) अभी भी ( पीतिः ) पान, अन्नादि का उपभोग वा रक्षासाधन ( न ततान ) नहीं हुआ है। अर्थात् सदा ही उत्तम रक्षा साधन से युक्त रहो, कभी भी रक्षा का भरोसा करके बेपरवाह मत होवो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अत्रिर्ऋषिः ।। अश्विनौ देवते ॥ छन्द:- १, २ स्वराट् पंक्ति: । ३, ४, ५ निचृत् त्रिष्टुप् ।। पञ्चर्चं सूक्तम् ।।

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    विषय

    दिव्य गुणों का रक्षण

    पदार्थ

    [१] हे (अश्विना) = प्राणापानो! आप (उत) = निश्चय से (संगवे) = [संगच्छन्ते गाव: दोहनभूमिम् यदा] सायं दोहन काल में (अह्नः प्रातः) = दिन के प्रातः काल में (मध्यन्दिने) = मध्याह्न में (सूर्यस्य उदिता) = सूर्योदय के समय आप (आयातम्) = हमें प्राप्त होवो । उल्लिखित चारों समयों में हम आपका आराधन करनेवाले बनें। [२] इनके अतिरिक्त (दिवानक्तम्) = दिन-रात (शन्तमेन अवसा) = अत्यन्त शान्ति को देनेवाले रक्षण के साथ आप हमें प्राप्त होवो । जब भी हमें सुविधा हो हम प्राणसाधना करनेवाले बनें और अपने जीवन में सुरक्षा व शान्ति को प्राप्त करें। हे प्राणापानो ! (इदानीम्) = अब (पीतिः) = अन्य देवों का रक्षण आपके बिना (न ततान) = विस्तृत नहीं होता। प्राणसाधना के द्वारा ही सब देवों का रक्षण होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- जब सुविधा हो हम प्राणायाम का अभ्यास करें। प्राणसाधना ही सुरक्षा व शान्ति का साधन है। इसी से सब दिव्य गुणों का रक्षण होता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    विवाहित स्त्री-पुरुषांनी प्रातः मह्याह्रन, सायंकाळी दिवस-रात्र आनंदपूर्वक कल्याण करणारे कार्य करावे. कधी आळस करू नये. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    And this exuberance of yajnic celebration and joy is not confined to the present moment only, it extends over days and nights. Come Ashvins, divinities of nature and nobilities of men and women, come at the rise of dawn, at mid day when the sun is risen up on high, in the evening when the cows come home. Come all day and night with your gifts of safety and security, peace and joy.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How husbands and wives should act and behave is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O highly learned and happy men and women ! you come at the milking of the cows ( in the evening), at early morning, at noon of day and when the sun is setting, night and day, with your felicitous most suspicious protection. Whenever there is the time for you to drink milk and water, don't transgress it (by laziness).

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Married couples should enjoy happiness by doing good deeds in the morning, noon and evening and day and night. Let them never be lazy.

    Foot Notes

    (सङ्गवे) सङ्गच्छन्ति गावो यस्मिन् सायं समये तस्मिन् । अशूङ्-व्याप्तौ । (स्वा० ) = In the evening when cows return. (अश्विना) व्याप्तसुखौ । पापाने (भ्वा० ) = Pervading in happiness. (पीतिः ) पानम् । = Drinking. (अश्विनौ) व्याप्तसुखौ । (स्त्रीपुरुषौ) = Happy couples.

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