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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 38 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 38/ मन्त्र 3
    ऋषिः - रहूगणः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    ए॒तं त्यं ह॒रितो॒ दश॑ मर्मृ॒ज्यन्ते॑ अप॒स्युव॑: । याभि॒र्मदा॑य॒ शुम्भ॑ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒तम् । त्यम् । ह॒रितः॑ । दश॑ । म॒र्मृ॒ज्यन्ते॑ । अ॒प॒स्युवः॑ । याभिः॑ । मदा॑य । शुम्भ॑ते ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एतं त्यं हरितो दश मर्मृज्यन्ते अपस्युव: । याभिर्मदाय शुम्भते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एतम् । त्यम् । हरितः । दश । मर्मृज्यन्ते । अपस्युवः । याभिः । मदाय । शुम्भते ॥ ९.३८.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 38; मन्त्र » 3
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (हरितः दश अपस्युवः) परमात्मस्तुत्या पापापहारकाणि दशेन्द्रियाणि (एतम् त्यम्) इमं परमात्मानं (मर्मृज्यन्ते) ज्ञानविषयीकुर्वन्ति (याभिः) यदिन्द्रियैः परमात्मा (मदाय शुम्भते) आनन्दं दातुं प्रकटति ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (हरितः दश अपस्युवः) परमात्मस्तुतिद्वारा पापों को हरण करनेवाली दश इन्द्रियें (एतम् त्यम्) इस परमात्मा को (मर्मृज्यन्ते) ज्ञान का विषय बनाती हैं (याभिः) जिन इन्द्रियों से (मदाय शुम्भते) आनन्द देने के लिये परमात्मा प्रकाशित होता है ॥३॥

    भावार्थ

    जो लोग योगादिसाधनों द्वारा अपने मन का संयम करते हैं अथवा यों कहिये कि जिन्होंने पापवासनाओं का अपने मन की पवित्रता से नाश कर दिया है, परमात्मा उन्हीं के ज्ञान का विषय होता है, मलिनात्माओं का कदापि नहीं ॥३॥

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    विषय

    कर्म-व्यापूत इन्द्रियाँ

    पदार्थ

    [१] (एतम्) = इस (त्यम्) = प्रसिद्ध सोम को (दश) = दस संख्यावाली (अपस्युवः) = कर्मों को अपने साथ जोड़नेवाली (हरित:) = इन्द्रियाँ [इन्द्रियरूप अश्व] (मर्मृज्यन्ते) = खूब शुद्ध करती हैं । इन्द्रियाँ कर्मों में लगी रहें, तो सोम की शुद्धि बनी रहती है । उस समय वासनाओं का आक्रमण न होने से सोम में किसी प्रकार की मलिनता नहीं आती। [२] उन कर्मव्यापृत इन्द्रियों से सोम का शोधन होता है, (याभिः) = जिनसे (मदाय) = हर्ष व उल्लास के लिये शुम्भते शोभावाला होता है, अपने को सद्गुणों से अलंकृत करता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - कर्म-व्यापृत इन्द्रियाँ वासनाओं से अनाक्रान्त होकर सोम का शोधन करती हैं ।

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    विषय

    महान् राजा के तुल्य महान् प्रभु।

    भावार्थ

    (एतं त्यं) उस प्रसिद्ध परमेश्वर को (दश हरितः) आत्मा को दश प्राणों के समान और राजा को दश पारिषद्यों के समान ये दशों दिशाएं (अपस्युवः) कर्म प्रेरणा चाहती हुई (मर्मृज्यन्ते) अलंकृत करती हैं। (याभिः) जिन्हों से वह (मदाय शुम्भते) आनन्द प्राप्ति के लिये वाणियों द्वारा शोभित किया जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    रहूगण ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, २, ४, ६ निचृद् गायत्री। ३ गायत्री। ५ ककुम्मती गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This Soma, ten senses and ten pranas of the devotee, well controlled past sufferance and pointed to concentrative meditation, present in uninvolved purity of form, by which experience the bright presence is glorified for the soul’s joy.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक योग इत्यादी साधनांद्वारे आपल्या मनावर संयम ठेवतात किंवा ज्यांनी आपल्या मनाच्या पवित्रतेने पापवासनांचा नाश केलेला आहे. परमात्मा त्यांच्याच ज्ञानाचा विषय असतो. मलिन आत्म्यांचा कधीही नाही. ॥३॥

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