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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 38 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 38/ मन्त्र 5
    ऋषिः - रहूगणः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - ककुम्मतीगायत्री स्वरः - षड्जः

    ए॒ष स्य मद्यो॒ रसोऽव॑ चष्टे दि॒वः शिशु॑: । य इन्दु॒र्वार॒मावि॑शत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒षः । स्यः । मद्यः॑ । रसः॑ । अव॑ । च॒ष्टे॒ । दि॒वः । शिशुः॑ । यः । इन्दुः॑ । वार॑म् । आ । अवि॑शत् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष स्य मद्यो रसोऽव चष्टे दिवः शिशु: । य इन्दुर्वारमाविशत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । स्यः । मद्यः । रसः । अव । चष्टे । दिवः । शिशुः । यः । इन्दुः । वारम् । आ । अविशत् ॥ ९.३८.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 38; मन्त्र » 5
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 28; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (मद्यः) आह्लादजनकः (रसः) आनन्दरूपः (दिवः शिशुः) द्युलोकस्य शास्ता (एषः स्यः) अयं परमात्मा (अवचष्टे) सर्वं पश्यति (यः इन्दुः) परमैश्वर्ययुक्तो यः परमात्मा (वारम् आविशत्) स्तोतुर्विदुषोऽन्तःकरणे प्रविशति ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (मद्यः) आह्लादजनक (रसः) आनन्दरूप (दिवः शिशुः) द्युलोक का शासक (एषः स्यः) यह परमात्मा (अवचष्टे) सबको देखता है (यः इन्दुः) जो परमैश्वर्यवाला परमात्मा (वारम् आविशत्) स्तोता विद्वान् के अन्तःकरण में प्रविष्ट होता है ॥५॥

    भावार्थ

    इस संसार में सर्वद्रष्टा एकमात्र परमात्मा ही है। उससे भिन्न सब जीव अल्पज्ञ हैं। योगी पुरुष भी अन्यों की अपेक्षा सर्वज्ञ कहे जाते हैं, वास्तव में सर्वज्ञ नहीं ॥५॥

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    विषय

    मद्यः रसः

    पदार्थ

    [१] (एषः) = यह (स्यः) = प्रसिद्ध (मद्यः) = आनन्द को देनेवालों में उत्तम (रस:) = रसरूप सोम (अवचष्टे) = रक्षित होने पर हमारा ध्यान करता है [अवपश्यति = looks after]। हमें रोग आदि से आक्रान्त नहीं होने देता। यह सोम (दिवः शिशुः) = ज्ञान का सूक्ष्म करनेवाला है। बुद्धि को तीव्र बनाकर ज्ञान का वर्धन करनेवाला है । [२] (यः) = जो (इन्दुः) = हमें शक्तिशाली बनानेवाला सोम (वारम्) = सब वासनाओं का निवारण करनेवाले व्यक्ति में (आविशत्) = प्रवेश करता है । जब हम वासनाओं का निवारण करते हैं तो इस सोम का अधिष्ठान बनते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - यह सोम 'मद्य रस' है। वासनाओं का निवारण करने पर इसे हम सुरक्षित कर पाते हैं।

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    विषय

    सर्वदर्शी आनन्दमय प्रभु।

    भावार्थ

    (यः) जो (इन्दुः) इस समस्त संसार में रसवत् व्यापक होकर (वारम्) आवरण करने वाले प्राकृत जगत् के भीतर (आविशत्) प्रवेश किये है। (एषः स्यः) वह यह प्रभु (मद्यः) आनन्दमय, (रसः) रस स्वरूप होकर (दिवः शिशुः) सब सूर्यादि में व्यापक होकर (अव चष्टे) सब को देखता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    रहूगण ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, २, ४, ६ निचृद् गायत्री। ३ गायत्री। ५ ककुम्मती गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This ecstatic bliss, honey sweet of life’s joy, appears like the rising sun at dawn when, as the beauty and glory of existence, it reflects in the heart of the chosen soul.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या जागत सर्वदृष्टा एकमेव परमेश्वर आहे. त्याच्यापेक्षा भिन्न सर्व जीव अल्पज्ञ आहेत. योगी पुरुषही इतरांपेक्षा सर्वज्ञ म्हणविले जातात. वास्तविक सर्वज्ञ नाहीत. ॥५॥

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