ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 72/ मन्त्र 2
सा॒कं व॑दन्ति ब॒हवो॑ मनी॒षिण॒ इन्द्र॑स्य॒ सोमं॑ ज॒ठरे॒ यदा॑दु॒हुः । यदी॑ मृ॒जन्ति॒ सुग॑भस्तयो॒ नर॒: सनी॑ळाभिर्द॒शभि॒: काम्यं॒ मधु॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसा॒कम् । व॒द॒न्ति॒ । ब॒हवः॑ । म॒नी॒षिणः॑ । इन्द्र॑स्य । सोम॑म् । ज॒ठरे॑ । यत् । आ॒ऽदु॒हुः । यदि॑ । मृ॒जन्ति॑ । सुऽग॑भस्तयः । नरः॑ । सऽनी॑ळाभिः । द॒सऽभिः॑ । काम्य॑म् । मधु॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
साकं वदन्ति बहवो मनीषिण इन्द्रस्य सोमं जठरे यदादुहुः । यदी मृजन्ति सुगभस्तयो नर: सनीळाभिर्दशभि: काम्यं मधु ॥
स्वर रहित पद पाठसाकम् । वदन्ति । बहवः । मनीषिणः । इन्द्रस्य । सोमम् । जठरे । यत् । आऽदुहुः । यदि । मृजन्ति । सुऽगभस्तयः । नरः । सऽनीळाभिः । दसऽभिः । काम्यम् । मधु ॥ ९.७२.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 72; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 27; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सुगभस्तयः) शोभनकर्माणः (नरः) नेतारो जनाः (यदि) यदा (सनीळाभिः) बलयुक्तैः (दशभिः) दशेन्द्रियैः (काम्यम्) सर्वकामप्रदम् (मधु) आनन्दरूपं परमात्मानं (जठरे) अन्तःकरणे (मृजन्ति) ध्यानविषयं कुर्वन्ति तदा (बहवः) प्रचुराः (मनीषिणः) योगिनः (साकं वदन्ति) युगपदेव उच्चारयन्ति। किं तत् वदन्ति (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यस्य (सोमम्) उत्पादकं परमात्मानं (आदुहुः) यूयं साक्षात्कुरुत ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यदि) जब (बहवः मनीषिणः) बुद्धिमान् लोग (साकं) साथ ही (वदन्ति) उसका यशोगान करते हैं, तब (इन्द्रस्य) कर्मयोगी के (जठरे) अन्तःकरण में (सोमम्) शान्तिरूप परमात्मा (आदुहुः) परिपूर्ण रहते हैं और (सुगभस्तयः नरः) भाग्यवान् लोग जब (मृजन्ति) उसका साक्षात्कार करते हैं, तब (सनीळाभिर्दशभिः) बलयुक्त दश इन्द्रियों से (काम्यम् मधु) यथेष्ट आनन्दलाभ करते हैं ॥२॥
भावार्थ
जब कर्मयोगी लोग उस परमात्मा का साक्षात्कार करते हैं, तब सामाजिक बल उत्पन्न होता है अर्थात् बहुत से लोगों की संगति होकर परमात्मा के यश का गान करते हैं ॥२॥
विषय
मधुपर्कादि से उसका समुचित आदर और उसके गुण स्तवन और उत्साह प्रदान।
भावार्थ
(यदि) जब (सुगभस्तयः नरः) उत्तम बाहुओं वाले, बलवान्, वीर्यवान्, तेजस्वी नेता पुरुष (स-नीडाभिः) एक ही देश में रहने वाली (दशभिः) दशों दिशाओं की प्रजाओं सहित (सोमं मृजन्ति) उत्तम शासक का अभिषेक करते हैं और (इन्द्रस्य जठरे) उस ऐश्वर्यवान् शत्रुनाशक के पेट में (काम्यं मधु दुदुहुः) कामना योग्य मधुपर्क प्रदान करते हैं वा, उस ऐश्वर्यवान् के शासन में कामना योग्य बल देते हैं तब (वहवः मनीषिणः) बहुत से मननशील विद्वान् पुरुष (साकं वदन्ति) एक साथ भाषण करते हैं, उसका गुणवर्णन और स्तुति करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
हरिमन्त ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:-१—३, ६, ७ निचृज्जगती। ४, ८ जगती। ५ विराड् जगती। ९ पादनिचृज्जगती॥ नवर्चं सूक्तम्॥
विषय
सुगभस्तयो नरः
पदार्थ
[१] (इन्द्रस्य) = उस परमैश्वर्यवाले प्रभु के अत्यन्त प्रिय [परिप्रिय] (सोमम्) = सोम को (यदा) = जब (जठरे) = अपने अन्दर (आदुहुः) = [दुह प्रपूरणे] प्रपूरित करते हैं, तो (बहवः) = बहुत से (मनीषिणः) = बुद्धिमान् पुरुष (साकम्) = मिलकर (वदन्ति) = प्रभु के स्तोत्रों का उच्चारण करते हैं। वस्तुतः एक परिवार में सभी मिलकर बैठें और प्रभु के स्तोत्रों का उच्चारण करें तो घर का वातावरण बड़ा सुन्दर बनता है । इस वातावरण में ही वासनाओं से ऊपर उठे रहने के कारण सोमरक्षण का सम्भव होता है । [२] (यत्) = जब (ई) = निश्चय से (नरः) = मनुष्य (काम्यं मधु) = इस कमनीय [चाहने योग्य] सोम को (सनीडाभिः दशभि:) = इधर-उधर न भटकर अपने नियत कर्मों में एकाग्र [स-नीड] दस इन्द्रियों से (मृजन्ति) = शुद्ध करते हैं तो वे (सुगभस्तयः) = उत्तम ज्ञानरश्मियोंवाले होते हैं । इन्द्रियाँ जब इधर-उधर नहीं भटकतीं, तो यह सोम शुद्ध बना रहता है। यह शुद्ध सोम शरीर में सुरक्षित होकर ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है । ' गभस्ति' शब्द का अर्थ 'हाथ' भी है। ये सोमरक्षक पुरुष उत्तम हाथोंवाले होते हैं, अर्थात् सदा उत्तम कर्मों में प्रवृत्त रहते हैं।
भावार्थ
भावार्थ - सोम को सुरक्षित करने पर हमारी स्तुति की वृत्ति बनती है। इन्द्रियाँ नियत कर्मों में लगी रहकर एकाग्र बनी रहें तो सोम का रक्षण होता है और हम उत्तम ज्ञान- रश्मियोंवाले व उत्तम कर्मोंवाले होते हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
When intelligent celebrants experience the Soma ecstasy in the heart core of personality, when brilliant people, leading lights of high mind and soul, with all ten senses and pranas collected, controlled and exalted with Soma, realise the bliss they cherish, they all celebrate the divine presence and burst forth in song.
मराठी (1)
भावार्थ
जेव्हा कर्म योगी त्या परमात्म्याचा साक्षात्कार करतात तेव्हा सामाजिक बल उत्पन्न होते. अर्थात् पुष्कळ लोक मिळून परमात्म्याच्या यशाचे गान करतात. ॥२॥
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