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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 4
    ऋषिः - चातनः देवता - मन्त्रोक्ता छन्दः - ककुम्मत्यनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुबाधन सूक्त
    4

    यदि॑ नो॒ गां हंसि॒ यद्यश्वं॒ यदि॒ पूरु॑षम्। तं त्वा॒ सीसे॑न विध्यामो॒ यथा॒ नो ऽसो॒ अवी॑रहा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑ । न॒: । गाम् । हंसि॑ । यदि॑ । अश्व॑म् । यदि॑ । पुरु॑षम् ‌। तम् । त्वा॒ । सीसे॑न । वि॒ध्या॒म॒: । यथा॑ । न॒: । अस॑: । अवी॑रऽहा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदि नो गां हंसि यद्यश्वं यदि पूरुषम्। तं त्वा सीसेन विध्यामो यथा नो ऽसो अवीरहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदि । न: । गाम् । हंसि । यदि । अश्वम् । यदि । पुरुषम् ‌। तम् । त्वा । सीसेन । विध्याम: । यथा । न: । अस: । अवीरऽहा ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 16; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    विघ्न के नाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (यदि) जो (नः) हमारी (गाम्) गाय को, (यदि) जो (अश्वम्) घोड़े को और (यदि) जो (पुरुषम्) पुरुष को (हंसि) तू मारता है। (तम् त्वा) उस तुझको (सीसेन) बन्धन काटनेहारे सामर्थ्य [ब्रह्मज्ञान] से (विध्यामः) हम वेधते हैं, (यथा) जिससे तू (नः) हमारे (अवीरहा असः) वीरों का नाश करनेहारा न होवे ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य वर्तमान क्लेशों को देखकर आनेवाले क्लेशों को यत्नपूर्वक रोककर आनन्द भोगें ॥४॥ इति तृतीयोऽनुवाकः ॥ इति प्रथमः प्रपाठकः ॥

    टिप्पणी

    ४−यदि। संभावनायाम्। चेत्। गाम्। १।२।३। गोजातिम्। हंसि। हन हिंसागत्योः−लट्। मारयसि। नाशयसि। अश्वम्। अशूप्रुषिलटि०। उ० १।१५१। इति अशूङ् व्याप्तौ−क्वन्। यद्वा, अश भोजने−क्वन्। अश्वः कस्मादश्नुतेऽध्वानं महाशनो भवतीति−निरु० २।२७। जातावेकवचनम्। घोटम्। तुरङ्गम्। पूरुषम्। पुरः कुषन्। उ० ४।७४। पुर अग्रगतौ−कुषन्। अन्येषामपि दृश्यते। पा० ६।३।१३७। इति निपातनाद् दीर्घः। पुरति अग्रे गच्छतीति पुरुषः। नरं, जनम्। तम्। तथाविधम्। त्वा। त्वां हिंसकम्। सीसेन। म० २। विघ्ननाशकसामर्थ्येन, ब्रह्मज्ञानेन। विध्यामः। व्यध ताडने वेधे−दिवादित्वात् श्यन्। ग्रहिज्यावयिव्यधि०। पा० ६।१।१६। इति संप्रसारणम्। छिनद्मः। ताडयामः, मारयामः। यथा। येन प्रकारेण। असः। अस सत्तायाम्−लेटि अडागमः। त्वम् भूयाः। अवीर-हा। वीरयतीति वीरः, वीर शौर्य्ये−अच्। वीरान् हन्तीति वीरहा, वीर+हन्−क्विप्। न वीरहा अवीरहा। अशूरहन्ता ॥ अथ चतुर्थोऽनुवाकः ॥

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    विषय

    बन्दूक का दुरुपयोग

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र में यह स्पष्ट है कि जिस भी व्यक्ति को आवश्यकता समझकर बन्दूक का लाइसेंस मिला है, उसे उस बन्दूक से चोर आदि के उपद्रव को दूर करने का प्रयत्न करना है, परन्तु यदि अपने पद व धन आदि से गर्व में चूर होकर वह उस बन्दूक का दुरुपयोग करता है, तो वही उस बन्दूक से दण्डनीय हो जाता है, अतः मन्त्र में कहा है-(यदि) = यदि तू (न:) = हमारी (गां हंसि) = गौ को मार देता है, यदि (अश्वम्) = यदि घोड़े को मार देता है, यदि (पूरुषम्) यदि किसी निर्दोष पुरुष को ही मार देता है तो (तं त्वा) = उस तुझे ही (सीसेन विध्यामः) = सीसे की गोली से मारते हैं यथा-जिससे (तून:) = हमारे (अवीरहा असः) = वीरों को मारनेवाला न हो। २. यदि किसी ग्वाले की गौ इसके उद्यान को कुछ खराब कर देती है, या किसी कोचवान या कुम्हार का घोड़ा इसकी फुलवाड़ी को कुछ नष्ट कर देता है और वह क्रोध में आकर इन्हें मारता है तो वह दण्डनीय हो जाता है। यह भी हो सकता है कि क्रोध में आकर वह उस ग्वाले व ताँगेवाले को ही मार दे। ऐसी स्थिति में उस बन्दूक से इसे ही दण्डित करना आवश्यक हो जाता है।

    भावार्थ

    लाइसेंस [रक्षण स्वीकृति] प्रास बन्दूक से निर्दोष गौ, घोड़े व मनुष्यों को नहीं मारना चाहिए।

    विशेष

    सुक्त के आरम्भ में कहा है कि ज्ञानी संन्यासी चोर इत्यादि को सदपदेश से अच्छा बनाने का प्रयत्न करे [१]। विवशता में चोर आदि को गोली से उड़ा दे [२]। यह गोली डाकु, चोर व पिशाचों के नाश के लिए उद्दिष्ट है [३] परन्तु यदि कोई इससे गौ, घोड़े या मनुष्य को मारे तो वह स्वयं इस गोली से दण्डनीय हो [४]। गोली के अनिष्ट प्रयोग से हो जानेवाले रक्तस्त्राव को कैसे बन्द किया जाए, इसका वर्णन अगले मन्त्र में हैं -

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    भाषार्थ

    (यदि) यदि (न:) हमारी (गाम् ) गौ की (हंसि) तू हिंसा करता है, (यदि अश्वम्) यदि अश्व की, (यदि पूरुषम् ) और यदि पुरुष [ की हिंसा करता है] तो (तम् त्वा) उस तुझको (विध्याम: ) हम वींधते हैं, (यथा) जिस प्रकार से (नो असः) न तू हो (अवीरहा) अवीरजन का हनन करनेवाला।१

    टिप्पणी

    [विध्यामः पद द्वारा वींधने का कथन हुआ है, जिससे यह सीस है, सीसे की गोली ।] [१. वीर हैं सैनिक; अवीर हैं गौ, अश्व तथा प्रजा के पुरुष आदि ।]

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    विषय

    दुष्टों के नाश का उपाय।

    भावार्थ

    ( यदि ) यदि राक्षस सम शत्रु पुरुष तू ( नः ) हमारी ( गां ) गौ को ( हंसि ) मारे और ( यदि ) यदि ( अश्वं ) अश्व को मारे और ( यदि ) यदि ( पूरुषं ) पुरुष, आदमी को मारे ( तं त्वा ) उस तुझ हत्यारे को ( सीसेन ) सीसे की गोली से ही ( विध्यामः ) बीधते हैं ( यथा ) जिससे तू ( नः ) हमारे ( अवीरहा ) वीर पुरुषों को मारने में असमर्थ ( असः ) रहे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    चातन ऋषिः । अग्नीन्द्रो, वरुणः, सीसश्च देवताः। १-३ अनुष्टुभः ४ ककुम्मती अनुष्टुप्। चतुऋचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Elimination of Thieves

    Meaning

    If you hurt or kill our cow or horse, and if you kill our fellow human or destroy our man power, we fix you by a lead bullet so that you would cease to be a destroyer of our brave.

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    Translation

    If you kill our cow, our horse or our man, we shall pierce you with lead, so that you may no more be killer of our brave men.

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    Translation

    O wicked man' If you kill cow for us; if you kill a man for us if you kill a horse for us we will shoot you with the lead bullet so-that you be not able to kill our men.

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    Translation

    If thou destroy a cow of ours, a human being, or a steed, we pierce thee with this lead bullet so that thou mayest not slay our valiant men.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−यदि। संभावनायाम्। चेत्। गाम्। १।२।३। गोजातिम्। हंसि। हन हिंसागत्योः−लट्। मारयसि। नाशयसि। अश्वम्। अशूप्रुषिलटि०। उ० १।१५१। इति अशूङ् व्याप्तौ−क्वन्। यद्वा, अश भोजने−क्वन्। अश्वः कस्मादश्नुतेऽध्वानं महाशनो भवतीति−निरु० २।२७। जातावेकवचनम्। घोटम्। तुरङ्गम्। पूरुषम्। पुरः कुषन्। उ० ४।७४। पुर अग्रगतौ−कुषन्। अन्येषामपि दृश्यते। पा० ६।३।१३७। इति निपातनाद् दीर्घः। पुरति अग्रे गच्छतीति पुरुषः। नरं, जनम्। तम्। तथाविधम्। त्वा। त्वां हिंसकम्। सीसेन। म० २। विघ्ननाशकसामर्थ्येन, ब्रह्मज्ञानेन। विध्यामः। व्यध ताडने वेधे−दिवादित्वात् श्यन्। ग्रहिज्यावयिव्यधि०। पा० ६।१।१६। इति संप्रसारणम्। छिनद्मः। ताडयामः, मारयामः। यथा। येन प्रकारेण। असः। अस सत्तायाम्−लेटि अडागमः। त्वम् भूयाः। अवीर-हा। वीरयतीति वीरः, वीर शौर्य्ये−अच्। वीरान् हन्तीति वीरहा, वीर+हन्−क्विप्। न वीरहा अवीरहा। अशूरहन्ता ॥ अथ चतुर्थोऽनुवाकः ॥

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    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (য়দি) যদি (নঃ) আমাদের (গাং) গরুকে (য়দি) যদি (অশ্বং) অশ্বকে (য়) যদি (পুরুষং) পুরুষকে (হংসি) যদি তুমি হত্যা কর (তম্ ত্বা) তবে তোমাকে (সীসেন) বন্ধন ছেদনের সামর্থ দ্বারা (বিধ্যামঃ) আমরা বিদ্ধ করিব (য়থা) যাহাতে তুমি (নঃ) আমাদের (অবীরহা অসঃ) বীরদের বীনাশক না হইতে পার।।

    भावार्थ

    যদি তুমি আমাদের অশ্ব গবাদি পশুকে ও মনুষ্যকে হত্যা কর তবে পুনরায় যাহাতে আমাদের বীরদিগকে বিনাশ না করিতে পার এজন্য তোমাকে সীসক দ্বারা বিদ্ধ করিব।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়দি নো গাং হংসি য়দ্যশ্বং যদি পুরুষম্। ত্বং ত্বা সীসেন বিধ্যামো য়তা নোংসো অবীরহা।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    চাতনঃ। সীসম্। ককুম্মত্যনুষ্টুপ্

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    मन्त्र विषय

    (বিঘ্ননাশনোপদেশঃ) বিঘ্ন নাশের উপদেশ।

    भाषार्थ

    (যদি) যে (নঃ) আমাদের (গাম্) গাভীকে, (যদি) যে (অশ্বম্) ঘোড়াকে/অশ্বকে এবং (যদি) যে (পুরুষম্) পুরুষকে (হংসি) তুমি নাশ করো, (তম্ ত্বা) সেই তোমাকে (সীসেন) বন্ধন ছিন্নকারী সামর্থ্য [ব্রহ্মজ্ঞান] দ্বারা (বিধ্যামঃ) আমরা বিদ্ধ করি, (যথা) যাতে তুমি (নঃ) আমাদের (অবীরহা অসঃ) বীরদের নাশকারী না হও ॥৪॥

    भावार्थ

    মনুষ্য বর্তমান ক্লেশ-সমূহ প্রতক্ষ্য/বিচার করে আসন্ন ক্লেশসমূহকে যত্নপূর্বক রুদ্ধ করে আনন্দ ভোগ করুক ॥৪॥

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    भाषार्थ

    (যদি) যদি (নঃ) আমাদের (গাম) গাভীর প্রতি (হংসি) তুমি হিংসা করো, (যদি অশ্বম্) যদি অশ্বের, (যদি পূরুষম্) এবং যদি পুরুষ [এর প্রতি হিংসা করো] তবে (তম্ ত্বা) সেই তোমাকে (বিধ্যামঃ) আমি/আমার বধ করবো, (যথা) যাতে (নো অসঃ) না তুমি হও (অবীরহা) অবীরজনের হননকারী১।

    टिप्पणी

    [বিধ্যামঃ পদ দ্বারা বিঁধে দেওয়ার বিবৃতি করা হয়েছে, যা এই সীসা, সীসার গুলি।] [১. বীর হলো সৈনিক; অবীর হলো গাভী, অশ্ব ও প্রজার পুরুষ আদি।]

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