अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 25/ मन्त्र 4
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - यक्ष्मनाशनोऽग्निः
छन्दः - पुरोऽनुष्टुप् त्रिष्टुप्
सूक्तम् - ज्वरनाशक सूक्त
1
नमः॑ शी॒ताय॑ त॒क्मने॒ नमो॑ रू॒राय॑ शो॒चिषे॑ कृणोमि। यो अ॑न्ये॒द्युरु॑भय॒द्युर॒भ्येति॒ तृती॑यकाय॒ नमो॑ अस्तु त॒क्मने॑ ॥
स्वर सहित पद पाठनम॑: । शी॒ताय॑ । त॒क्मने॑ । नम॑: । रू॒राय॑ । शो॒चिषे॑ । कृ॒णो॒मि॒ । य: । अ॒न्ये॒द्यु: । उ॒भ॒य॒ऽद्यु: । अ॒भि॒ऽएति॑ । तृती॑यकाय । नम॑: । अ॒स्तु । त॒क्मने॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नमः शीताय तक्मने नमो रूराय शोचिषे कृणोमि। यो अन्येद्युरुभयद्युरभ्येति तृतीयकाय नमो अस्तु तक्मने ॥
स्वर रहित पद पाठनम: । शीताय । तक्मने । नम: । रूराय । शोचिषे । कृणोमि । य: । अन्येद्यु: । उभयऽद्यु: । अभिऽएति । तृतीयकाय । नम: । अस्तु । तक्मने ॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ज्वर आदि रोग की शान्ति के लिये उपदेश।
पदार्थ
(शीताय) शीत (तक्मने) जीवन को कष्ट देनेहारे ज्वर [ज्वररूप परमेश्वर] को (नमः) नमस्कार और (रूराय) क्रूर (शोचिषे) ताप के ज्वर को [ज्वररूप परमेश्वर को] (नमः) नमस्कार (कृणोमि) मैं करता हूँ। (यः) जो (अन्येद्युः) एकान्तरा ज्वर और (उभयद्युः) दो अन्तरा ज्वर (अभि एति) चढ़ता है, [तस्मै] [उस ज्वररूप को और] (तृतीयकाय) तिजारी (तक्मने) ज्वर [ज्वररूप परमेश्वर] को (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे ॥४॥
भावार्थ
परमेश्वर अनेक प्रकार के ज्वर आदि रोगों से पापियों को कष्ट देता है, उस के क्रोध से भय मान कर हम खोटे कामों से बचकर सदा शान्तचित्त और आनन्द में मग्न रहें ॥४॥
टिप्पणी
४−शीताय। श्यैङ्। गतौ-क्त। द्रवमूर्त्तिस्पर्शयोः श्यः। पा० ६।१।२४। इति सम्प्रसारणम्। हलः। पा० ६।४।२। इति दीर्घः। शीतलाय। शीतस्पर्शवते। तक्मने। म० १। कृच्छ्रजीवनकारिणे रोगाय, ज्वराय ज्वरसमानाय परमेश्वराय। रूराय। स्फायितञ्चिवञ्चिशकि०। उ० २।१३। इति रुङ् बधे-रक्, दीर्घश्च। घातकाय, पीडकाय, क्रूराय। शोचिषे। म० २। तापकराय। कृणोमि। कृवि हिंसाकरणयोः। करोमि। यः। तक्मा, ज्वरः। अन्येद्युः। अव्ययम्। अन्यस्मिन् दिने, परदिने। उभयद्युः। अव्ययम्। उभयस्मिन् द्वितीयेऽहनि। अभि-एति। आगच्छति। तृतीयकाय। त्रेः सम्प्रसारणं च। पा० ५।२।५५। इति त्रि-तीयः पूरणे, संप्रसारणं च। स्वार्थे कन्। तृतीयदिने आगच्छते ॥
विषय
विविध ज्वर
पदार्थ
१. (शीताय तक्मने नमः) = हम शीतञ्बर के लिए नमस्कार करते हैं, इससे दूर से ही बचने का प्रयत्न करते हैं। २. (रूराय शोचिषे) = गर्जना करनेवाले सन्तापकारी बुखार के लिए (नमः कृणोमि) = मैं नमस्कार करता हूँ। वह ज्वर, जिसमें गर्मी की अधिकता से मनुष्य बड़बड़ाने लगता है, 'रूरशोचिः' कहा गया है। मैं इससे बचने क लिए प्रार्थना करता हूँ। ३. (यः) = जो (अन्येयुः) = एक दिन छोड़कर आता है, (उभयद्युः अभ्येति) = दो-दो दिन करके आता है। दो दिन आया, फिर एक दिन न आकर दो दिन आता है-यह ज्वर 'उभया' कहलाता है। (तृतीयकाय) = जो दो दो दिन छोड़कर तीसरे दिन आता है, उस (तक्मने) = ज्वर के लिए (नमः अस्तु) = नमस्कार हो, अर्थात् मैं अन्ये, उभयद्य व तृतीयक ज्वरों से बचा रहूँ। ४. इन सब ज्वरों के लिए नमस्कार हो, अर्थात् इनसे मैं बचा रहूँ। 'नमः अस्तु' इन शब्दों में यह भाव भी अन्तर्निहित प्रतीत होता है कि मैं प्रभु के प्रति नतमस्तक होता हुआ इन ज्वरों का शिकार न होऊँ। प्रभु-भजन की वृत्ति भी मनुष्य के व्यवहार में उन वाञ्छनीय परिवर्तनों को उत्पन्न करती है जो ज्वरादि से दूर रहने में सहायक -
भावार्थ
प्रभु-भक्त जीवन की दिशा को ठीक रखने के कारण ज्वरादि से बचा रहता है। विशेष—इस सूक्त में ज्वररूप आध्यात्मिक कष्ट से बचने का संकेत है। अब ब्रह्मा बनकर आधिदैविक कष्टों से बचने का उल्लेख होता है
भाषार्थ
(शीताय तक्मने) शीत ज्वर के लिये (नमः) वज्रपात हो, अथवा अन्नाहुतियाँ हों [उसके अपाकरण के लिये]। (रूराय) रेषक अर्थात् हिंसक (शोचिषे) सन्तापक तक्मा के लिये (नमः) वज्रपात या अन्नाहुतियाँ (कृणोमि) मैं करता हूँ। (यः ) जो शीत ज्वर (अन्येद्युः) एक दिन (उभयद्यु:) दो दिन (अभ्येति) आता है, (तृतीयकाय) तथा तीसरे दिन आता है, उस (तक्मने) ज्वर के लिये (नमः अस्तु) वज्रपात या अन्नाहुतियाँ हों।
टिप्पणी
[नमः वज्रनाम; अन्ननाम (निघं० २।२०,२।७)। वज्रपात का अभिप्राय है नाश करना; तथा अन्नाहुतियों का अभिप्राय है यज्ञियाग्नि में ज्वर के अपाकरण के लिये यथोचित हविष्यान्न की आहुतियाँ देना। रूराय=रुङ् गतिरेषणयोः (भ्वादिः) रेषण= हिंसन, विनाश।]
विषय
ज्वर चिकित्सा।
भावार्थ
(शीताय ) शीत से उत्पन्न या शीत दे कर उत्पन्न होने वाले (तक्मने) कष्टप्रद, ज्वर आदि के लिये ( नमः ) यह उपचार है और ( शोचिषे ) ताप या गर्मी देकर उत्पन्न होने वाले ‘रूर’ या ‘ह्रूडु’ नामक ज्वरव्याधि के लिये मैं (नमः कृणोमि) ओषधो-उपचार करता है। और (यः ) जो ज्वर ( अन्येद्युः ) प्रतिदिन और जो ( उभयेद्युः ) दो दिनों के अन्तर पर ( अभ्येति ) प्रकट होता है उस (तक्मने) ज्वरव्याधि के लिये ( नमः, अस्तु ) उचित ओषधोपचार हो ।
टिप्पणी
हाथ जोड़ने आदि से ज्वर नहीं जाता वह परिपक्व होने पर सुगमता से चिकित्सा योग्य होता है, अतः सायणकृत अर्थ संगत नहीं हैं। ह्रूढु नामक ज्वर कदाचित् हुडहुड़ा ज्वर है। वस्तुतः वेद सभी ज्वरों को ह्रूडु कहता है। वह आरूढ हो जाता या पीलिया आदि नाना रोगों को उत्पन्न करता है, वही ‘रूर’ अर्थात् क्रूर, कष्टदायी है। शकल्येषि शोचि, अर्चि और वरुणपुत्र ये क्रम से वात, पित्त, कफ से उत्पन्न ज्वरों के तीन प्रकार हैं। वहींशीत, तक्मा, रूर शोचि, एक दो या तीन दिन के अंतर से आने से नाना भेद का होता है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वंगिरा ऋषिः। यक्ष्मनाशनोऽग्निर्मन्त्रोक्ता ‘ह्रूडु’ आदयो देवताः । १ त्रिष्टुप् २, ३ विराड्-गर्भा त्रिष्टुप् । ४ पुरोऽनुष्टुप् चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Fever Cure
Meaning
Homage of recognition with food and medication for the patient who suffers from fever with cold and shivers, for hrudu, fever with heat and burning, fever which persists every day, which comes on alternate days, which comes on after every two days, or which comes after every three days. Homage and good bye to all of them.
Translation
Homage be to the chilling fever (that comes with shiver). I pay homage to the dry heat, homage be to the fever that comes on alternate days (anyedyu), to the one that comes on both days (ubhayedyu), and the one, that comes every third day (trtiyaka).
Translation
I use this medicine to remove the fever be it due to cold, be it due to excessive heat, be it extended for two days, be it extended for three days and be it intermittent.
Translation
I bid good-bye to chilly fever, to his fierce burning glow I bid good-bye. Good-bye to the fever, that comes on alternate days, to the fever that comes after an interval of two days, and to the fever that comes after an interval of three days.
Footnote
Good-bye means may the fever remain afar, and not attack me. I protect myself through necessary precautions and the use of antidotes. Here four kinds of fever are mentioned. Some fevers begin with shivering of the body and some commence with burning heat. Some recur daily, some alternately, some after the interval of two and three days. We should be cautious against all of them.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−शीताय। श्यैङ्। गतौ-क्त। द्रवमूर्त्तिस्पर्शयोः श्यः। पा० ६।१।२४। इति सम्प्रसारणम्। हलः। पा० ६।४।२। इति दीर्घः। शीतलाय। शीतस्पर्शवते। तक्मने। म० १। कृच्छ्रजीवनकारिणे रोगाय, ज्वराय ज्वरसमानाय परमेश्वराय। रूराय। स्फायितञ्चिवञ्चिशकि०। उ० २।१३। इति रुङ् बधे-रक्, दीर्घश्च। घातकाय, पीडकाय, क्रूराय। शोचिषे। म० २। तापकराय। कृणोमि। कृवि हिंसाकरणयोः। करोमि। यः। तक्मा, ज्वरः। अन्येद्युः। अव्ययम्। अन्यस्मिन् दिने, परदिने। उभयद्युः। अव्ययम्। उभयस्मिन् द्वितीयेऽहनि। अभि-एति। आगच्छति। तृतीयकाय। त्रेः सम्प्रसारणं च। पा० ५।२।५५। इति त्रि-तीयः पूरणे, संप्रसारणं च। स्वार्थे कन्। तृतीयदिने आगच्छते ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(শীতায়) শীত রূপ (তন্মনে) জীবনের কষ্ট দাতা জরকে (নমঃ) হৃদয়ে অনুভব করিতেছি। (শোচিবে) ক্রুর তাপরূপ জরকে (নমঃ) হৃদয়ে অনুভব (কৃণোমি) করিতেছি। (য়ঃ) যাহা (অন্যেদ্যুঃ) একদিন পর পর (উভয়দ্যুঃ) দুই দিন পর পর (অভি এতি) বৃদ্ধি পায় এবং (তৃতীয়কায়) ত্রাহিক (তন্মনে) জরকে (নমঃ অস্ত্র) যেন হৃদয়ে অনুভব করিতে পারি।।
भावार्थ
শীত রূপ জরকে, ক্রুর জরকে, তাপরূপ জরকে, যে জ্বর একদিন পর পর বা দুই দিন পর বা দুই দিন পর পর বৃদ্ধি পায় এবং ত্রাহিক জরকে যেন আমরা বুঝিতে পারি।।
मन्त्र (बांग्ला)
নমঃ শীতায় তক্মনে নমো রুরায় শোচিসে কৃণোমি। য়ো অন্যেদ্যুরু ভয়দ্যুরভ্যেতি তৃতীয় কায় নমো অদ্ভু তক্মনে
ऋषि | देवता | छन्द
ভৃগ্বঙ্গিরাঃ। যক্সানাশনোঽগ্নিঃ। পুরোঽনুষ্টুপ্
मन्त्र विषय
(জ্বরাদিরোগশান্ত্যুপদেশঃ) জ্বর আদি রোগের শান্তির জন্য উপদেশ।
भाषार्थ
(শীতায়) শীত (তক্মনে) জীবনকে কষ্ট প্রদায়ী জ্বরকে [জ্বররূপ পরমেশ্বরকে] (নমঃ) নমস্কার এবং (রূরায়) ক্রূর (শোচিষে) তাপের জ্বরকে [জ্বররূপ পরমেশ্বরকে] (নমঃ) নমস্কার (কৃণোমি) আমি করি। (যঃ) যে (অন্যেদ্যুঃ) পরের দিনের জ্বর এবং (উভয়দ্যুঃ) উভয় দিনের জ্বর (অভি এতি) আরোহন করে, [তস্মৈ] [সেই জ্বররূপকে এবং] (তৃতীয়কায়) তৃতীয় দিনে আগত (তক্মনে) জ্বরকে [জ্বররূপ পরমেশ্বরকে] (নমঃ) নমস্কার (অস্তু) হোক ॥৪॥
भावार्थ
পরমেশ্বর অনেক প্রকারের জ্বর আদি রোগসমূহ দ্বারা পাপীদেরকে কষ্ট প্রদান করেন, তাঁর ক্রোধের ভয় মনে রেখে আমরা যেন কুকর্ম থেকে নিজেকে রক্ষা করে সদা শান্তচিত্ত এবং আনন্দে মগ্ন থাকি ॥৪॥
भाषार्थ
(শীতায় তক্মনে) শীত জ্বরের জন্য (নমঃ) বজ্রপাত হোক, অথবা অন্নাহুতি হোক [তা দূরীকরণের জন্য]। (রূরায়) রেষক অর্থাৎ হিংসক (শোচিষে) কষ্টদায়ক জ্বরের জন্য (নমঃ) বজ্রপাত বা অন্নাহুতি (কৃণোমি) আমি করি। (যঃ) যে শীত জ্বর (অন্যেদ্যুঃ) এক দিন (উভয়দ্যুঃ) দুই দিন (অভ্যেতি) আসে, (তৃতীয়কায়) এবং তৃতীয় দিন আসে, সেই (তক্মনে) জ্বরের জন্য (নমঃ অস্তু) বজ্রপাত বা অন্নাহুতি হোক।
टिप्पणी
[নমঃ বজ্রনাম; অন্ননাম (নিঘং০ ২।২০; ২।৭)। বজ্রপাতের উদ্দেশ্য নাশ করা; এবং অন্নাহুতির উদ্দেশ্য যজ্ঞাগ্নিতে জ্বরের নিবারণের জন্য যথোপযুক্ত হবিষ্যান্নের আহুতি দেওয়া। রূরায়=রুঙ্ গতিরেষণয়োঃ (ভ্বাদিঃ) রেষণ=হিংসন, বিনাশ।]
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