Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 7 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 4
    ऋषिः - चातनः देवता - अग्निः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - यातुधाननाशन सूक्त
    1

    अ॒ग्निः पूर्व॒ आ र॑भतां॒ प्रेन्द्रो॑ नुदतु बाहु॒मान्। ब्रवी॑तु॒ सर्वो॑ यातु॒मान॒यम॒स्मीत्येत्य॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्नि: । पूर्व॑: । आ । र॒भ॒ता॒म् । प्र । इन्द्र॑: । नु॒द॒तु॒ । बा॒हु॒मान् ।ब्रवी॑तु । सर्व॑: । या॒तु॒मान् । अ॒यम् । अ॒स्मि॒ । इति॑ । आ॒ऽइत्य ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निः पूर्व आ रभतां प्रेन्द्रो नुदतु बाहुमान्। ब्रवीतु सर्वो यातुमानयमस्मीत्येत्य ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्नि: । पूर्व: । आ । रभताम् । प्र । इन्द्र: । नुदतु । बाहुमान् ।ब्रवीतु । सर्व: । यातुमान् । अयम् । अस्मि । इति । आऽइत्य ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 7; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सेनापति के लक्षण।

    पदार्थ

    (पूर्वः) मुखिया (अग्निः) अग्निरूप राजा (आरभताम्) [शत्रुओं] को पकड़ लेवे, (बाहुमान्) प्रबल भुजावाला (इन्द्रः) वायुरूप सेनापति (प्रनुदतु) निकाल देवे। (सर्वः) एक-एक (यातुमान्) दुःखदायी राक्षस (एत्य) आकर (अयम् अस्मि) यह मैं हूँ−(इति) ऐसा (ब्रवीतु) कहे ॥४॥

    भावार्थ

    जब अग्नि के समान तेजस्वी और वायु के समान वेगवान् महाप्रतापी राजा उपद्रवियों को पकड़ता और देश से निकालता है, तब उपद्रवी लोग अपना-अपना नाम लेकर उस राजा के शरणागत होते हैं ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−अग्निः। मं० १। अग्निवत् तेजस्वी राजा। पूर्वः। पूर्व निमन्त्रणे निवासे वा-अच्। पुरोगामी, मुख्यः। आरभताम्। रभ राभस्ये=उपक्रमे। आङ् पूर्वकात् रभ स्पर्शे-लोट्। स्पृशतु। निगृह्णातु। इन्द्रः। १।२।३। वायुः, वायुवद् वेगवान् राजा। प्र+नुदतु। णुद प्रेरणे तुदादित्वात् शः। प्रेरयतु। अपसारयतु। बाहुमान्। तदस्यास्त्यस्मिन्निति मतुप्। पा० ५।२।९४। भूमनिन्दाप्रशंसासु नित्ययोगेऽतिशायने। संसर्गेऽस्तिविवक्षायां भवन्ति मतुबादयः ॥१॥ कारिका ॥ इति बाहुशब्दात् प्रशंसायां मतुप्। प्रबलभुजः। महाबली। ब्रवीतु। ब्रूञ्-लोट्। कथयतु। सर्वः। निखिलः। यातु-मान्। कृवापा० उ० १।१। इति यत ताडने-उण्। ततो मतुप् पूर्ववत् निन्दायाम्। यातवो यातना विद्यन्तेऽस्मिन् स यातुमान् पीडावान्, महापीडाकारी। अयम्। एतन्नामकोऽहम्। इति। एवम्। आ इत्य। समासेऽनञ्पूर्वे क्त्वो ल्यप्। पा० ७।१।३७। इति आङ्+इण् गतौ-इति क्त्वाप्रत्ययस्य ल्यबादेशः। ह्रस्वस्य पिति कृति०। पा० ६।१।७१। इति तुक् आगमः। आगत्य ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    यातुधानों का आत्मसमर्पण

    पदार्थ

    १. (अग्नि:) = ज्ञान-प्रसार द्वारा उन्नति-पथ पर ले-चलनेवाला ब्राह्मण (पूर्वः आरभताम्) = प्रथम अपने कार्य को आरम्भ करे। ब्राह्मण का यह कार्य बहुत उत्तमता से तभी चल सकता है जबकि राज्य-शक्ति उसकी पीठ पर हो, अतः मन्त्र में कहा गया कि (बाहमान) = शक्तिशाली (इन्द्र:) = राजा (प्रनुदतु) = उन प्रचारकों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करनेवाला हो। इन सुधारकों को राजा की ओर से सब प्रकार की सुविधा प्रास हो। २. इन सुधारकों का कार्यक्रम इतना प्रभावोत्पादक व मधुर हो कि (सर्व: यातुमान्) = प्रजा में पीड़ा का आधान करनेवाले सब दुर्जन लोग प्रभावित होकर उस अग्नि के प्रति अपना समर्पण [surrender] करनेवाले हों और (एत्य) = आकर (बबीतु) = स्वयं कहें कि (अयम्) = यह (अस्मि इति) = मैं हूँ। मैं आपकी शरण में हूँ। आप से दिये जानेवाले दण्ड को मैं सहर्ष स्वीकार करूँगा और आगे से इस असत् कार्य में मैं कभी प्रवृत्त न होऊँगा।

    भावार्थ

    राज्यशक्ति की सहायता प्राप्त करके सुधारक अपना कार्य इस सुन्दरता से करें कि सब दुर्जन अपनी दुर्जनता को छोड़ने का निश्चय कर, आत्मसमर्पण कर दें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (अग्निः) अग्रणी प्रधानमन्त्री (पूर्वः) प्रथम (आरभताम् ) [यातुधानों का पकड़ना] आरम्भ करे, (बाहुमान् इन्द्रः) सशक्त बाहुओंवाला सम्राट (प्रनुदतु) उन्हें प्रेरित करे [न्यायालय में जाने के लिये] (सर्वः यातुमान्) सब यातुधानों में से प्रत्येक (एत्य) [न्यायालय] पहुँच कर (ब्रवीतु) कहे (अयमस्मि इति) कि यह मैं हूँ।

    टिप्पणी

    [नुदतु=णुद प्रेरणे (तुदादिः)। बाहुमान् द्वारा प्रतीत होता है कि इन्द्र मनुष्य है, जिसकी कि बाहुएँ हैं। अतः अग्नि भी मनुष्य है, जोकि इन्द्र का सहचारी है।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    प्रजा के पीड़ाकारियों का दमन ।

    भावार्थ

    ( पूर्वः ) सबसे पूर्व ( अग्निः ) ज्ञान से प्रकाशक उपदेशक ब्राह्मण (आ रभतां ) सुधार के इस कार्य का आरम्भ करे । और ( इन्द्रः ) इन्द्र, ऐश्वर्यवान् राजा ( बाहुमान् ) उनको बांधने पीड़ा करने के पूरे सामर्थ्य से युक्त होकर ( प्र नुदतु ) उन्हें सुधर जाने के लिये प्रेरणा करता रहे । जिससे ( सर्वः ) सब (यातुमान्) प्रजापीड़क लोग ( एत्य एत्य ) आ आ कर ( ब्रवीतु ) कहे कि ( अयम् अस्मि इति ) यह में कसूरवार हूं, मैं हाजिर हूं, मैं आपकी शरण हूं, आपका सेवक हूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    चातन ऋषिः । अग्निर्देवता । १-४, ६, ७ अनुष्टुभः ५, त्रिष्टुप् । सप्तर्चं सूक्तम् ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Elimination of Negative Forces

    Meaning

    Let Agni take the lead in cleansing, and then let Indra take over with his force of arms, impel, compel and correct them so that all the negative mischief mongers come up and confess: Here I am, and I am sorry:

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May the adorable and resplendent Lord with powerful arms push their deceits hard, so that everyone of them comes and speaks out, "this am I. I confess my guilt; I am here".

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let the Commander first start campaign against them. Let the strong-armed ruler inspire into them such a Spirit that the wicked offenders themselves accepting their guilt declare. I am here under you.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May a learned preacher first take in hand the work of reforming a sinner, may a strong-armed king then impel him to be virtuous. Let every wicked person consequently come hither and say, here am I.

    Footnote

    Through the moral forces of a learned preacher, and the administrative forces of a king, the sinner should be made to accept his fault, and shun it in future.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−अग्निः। मं० १। अग्निवत् तेजस्वी राजा। पूर्वः। पूर्व निमन्त्रणे निवासे वा-अच्। पुरोगामी, मुख्यः। आरभताम्। रभ राभस्ये=उपक्रमे। आङ् पूर्वकात् रभ स्पर्शे-लोट्। स्पृशतु। निगृह्णातु। इन्द्रः। १।२।३। वायुः, वायुवद् वेगवान् राजा। प्र+नुदतु। णुद प्रेरणे तुदादित्वात् शः। प्रेरयतु। अपसारयतु। बाहुमान्। तदस्यास्त्यस्मिन्निति मतुप्। पा० ५।२।९४। भूमनिन्दाप्रशंसासु नित्ययोगेऽतिशायने। संसर्गेऽस्तिविवक्षायां भवन्ति मतुबादयः ॥१॥ कारिका ॥ इति बाहुशब्दात् प्रशंसायां मतुप्। प्रबलभुजः। महाबली। ब्रवीतु। ब्रूञ्-लोट्। कथयतु। सर्वः। निखिलः। यातु-मान्। कृवापा० उ० १।१। इति यत ताडने-उण्। ततो मतुप् पूर्ववत् निन्दायाम्। यातवो यातना विद्यन्तेऽस्मिन् स यातुमान् पीडावान्, महापीडाकारी। अयम्। एतन्नामकोऽहम्। इति। एवम्। आ इत्य। समासेऽनञ्पूर्वे क्त्वो ल्यप्। पा० ७।१।३७। इति आङ्+इण् गतौ-इति क्त्वाप्रत्ययस्य ल्यबादेशः। ह्रस्वस्य पिति कृति०। पा० ६।१।७१। इति तुक् आगमः। आगत्य ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (3)

    पदार्थ

    (পূর্বঃ) মুখ্য (অগ্নিঃ) অগ্নিতুল্য পরাক্রমশীল রাজা (অরিভতাম্) ধরুক (বাহুমান্) প্রবল বাহু বিশিষ্ট (ইন্দ্ৰঃ) বিদ্যুৎ তুল্য তেজস্বী সেনাপতি (প্রনুদতু) বহিষ্কার করুক। (সর্বঃ) সব (য়াতুমান্) পরপীড়ক রাক্ষস (এত্য) আসিয়া (অয়ম্ অস্মি) সে আমিই (ইতি) এইরূপ (ব্রবীতু) বলুক।।

    भावार्थ

    রাজ্যের প্রধান পুরুষ অগ্নিতুল্য পরাক্রমশীল রাজা রাজ্যের শত্রদিগকে ধরুক, মহাবলশালী বিদ্যুৎ তুল্য তেজস্বী সেনাপতি তাহাদিগকে রাজ্য হইতে বহিষ্কৃত করুক। পরপীড়ক দুষ্ট শত্রুগণ একে একে নিজের পরিচয় দান করিয়া রাজ্যের শরণ গ্রহণ করুক।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    অগ্নিঃ পূর্ব আ রভতা প্ৰেদ্ৰো নুদতু বাহুমান্ ব্রবীতু সর্বা য়াতুমানময়মস্মীত্যেত্য।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    চাতনঃ। অগ্নিঃ। অনুষ্টুপ্

    इस भाष्य को एडिट करें

    मन्त्र विषय

    (সেনাপতিলক্ষণানি) সেনাপতির লক্ষণ

    भाषार्थ

    (পূর্বঃ) মুখ্য (অগ্নিঃ) অগ্নিরূপ রাজা (আরভতাম্) [শত্রুদের] বন্দি করুক, (বাহুমান্) প্রবল বাহুসম্পন্ন (ইন্দ্রঃ) বায়ুরূপ সেনাপতি (প্রনুদতু) বহিষ্কার/নিষ্কাশিত করুক, (সর্বঃ) এক-এক (যাতুমান্) দুঃখদায়ী রাক্ষস (এত্য) এসে (অয়ম্ অস্মি) "এটা আমি"−(ইতি) এমনটা (ব্রবীতু) বলে ॥৪॥

    भावार्थ

    যখন অগ্নির সমান তেজস্বী ও বায়ুর সমান বেগবান মহাপ্রতাপশালী রাজা উপদ্রবকারীদের বন্দি করে এবং দেশ থেকে বহিষ্কার/বের করে দেয়, তখন উপদ্রবকারী লোকেরা নিজের-নিজের নাম নিয়ে স্বীকারোক্তি দিয়ে সেই রাজার শরণাগত হয় ॥৪॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (অগ্নিঃ) অগ্রণী প্রধানমন্ত্রী (পূর্বঃ) প্রথম (আরভতাম্) [যাতুধানদের/পীড়াদায়ক/শত্রুদের ধরা] আরম্ভ করুক, (বাহুমান্ ইন্দ্রঃ) সশক্ত বাহুবিশিষ্ট সম্রাট (প্রনুদতু) তাঁদের প্রেরিত করুক [ন্যায়ালয়ে যাওয়ার জন্য] (সর্বঃ যাতুমান্) সকল যাতুধানদের মধ্যে প্রত্যেকে (এত্য) [ন্যায়ালয়] পৌঁছে (ব্রবীতু) বিবৃতি/কথন করুক যে, (অয়মস্মি ইতি) এটা আমি।

    टिप्पणी

    [নুদতু=ণুদ প্রেরণে (তুদাদিঃ)। বাহুমান্ দ্বারা প্রতীত হয় যে, ইন্দ্র হল মনুষ্য, যার বাহু আছে। অতঃ অগ্নিও মনুষ্য, যে ইন্দ্রের সহচারী।]

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top