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अथर्ववेद के काण्ड - 15 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 7
    ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - साम्नि उष्णिक् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
    1

    अ॒यं वा उ॑अ॒ग्निर्ब्रह्मा॒सावा॑दि॒त्यः क्ष॒त्रम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । वै । ऊं॒ इति॑ । अ॒ग्नि: । ब्रह्म॑ । अ॒सौ । आ॒दि॒त्य: । क्ष॒त्रम् ॥१०.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं वा उअग्निर्ब्रह्मासावादित्यः क्षत्रम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । वै । ऊं इति । अग्नि: । ब्रह्म । असौ । आदित्य: । क्षत्रम् ॥१०.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 10; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अतिथिसत्कार की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (अयम्) यह (अग्निः)अग्नि [अग्निसमान तेजस्वी] (एव) निश्चय करके (उ) ही (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञानी समूहहै और (असौ) वह (आदित्यः) सूर्य [सूर्यसमान प्रतापी] (क्षत्रम्) क्षत्रियसमूहहै ॥७॥

    भावार्थ

    मनुष्य वेदों के मननसे अग्निसमान तेजस्वी और प्रजापालन से सूर्यसमान प्रतापी होवें ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(अयम्)दृश्यमानः (वे) निश्चयेन (उ) एव (अग्निः) अग्निवत्तेजस्वी (ब्रह्म)ब्रह्मज्ञानिसमूहः (असौ) प्रसिद्धः (आदित्यः) आदीप्यमानः सूर्यः (क्षत्रम्)क्षत्रियकुलम् ॥

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    विषय

    पृथिवी+द्यौ [ज्ञान व बल]

    पदार्थ

    १. (इयं वा उ पृथिवी) = यह पृथिवी ही निश्चय से (बृहस्पति:) = बृहस्पति है, (द्यौः एव इन्द्रः) = द्युलोक ही इन्द्र है। जैसे पृथिवी व धुलोक माता व पिता के रूप में होते हुए सब प्राणियों का धारण करते हैं [द्यौष्पिता, पृथिवीमाता], इसीप्रकार बृहस्पति व इन्द्र-ज्ञानी पुरोहित व राजा मिलकर राष्ट्र का धारण करते हैं। २. (अयं वा उ अग्नि:) = निश्चय से यह अग्नि ही ब्रह्म-ज्ञान है और (असौ आदित्यः क्षत्रम्) = वह आदित्य क्षत्र-बल है। ज्ञान ही राष्ट्र को ले-चलनेवाला 'अग्रणी' है। जैसे उदय होता हुआ सूर्य कृमियों का संहार करता है, उसीप्रकार क्षत्र व बल राष्ट्रशत्रुओं का उपमर्दन करनेवाला आदित्य है। ३. (एनम्) = इस व्यक्ति को (ब्रह्म आगच्छति) = ज्ञान समन्तात् प्राप्त होता है। यह (ब्रह्मवर्चसी भवति) = ब्रह्मवर्चसवाला होता है, (य:) = जो (पृथिवीं बृहस्पतिम्) = पृथिवी को बृहस्पति के रूप में तथा अग्निं ब्रह्म-पृथिवी के मुख्य देव अग्नि को बृहस्पति के मुख्य गुण 'ब्रह्म' [ज्ञान] के रूप में वेद-जानता है, ४. (एनम्) = इस व्यक्ति को (इन्द्रियम् आगच्छति) = समन्तात् वीर्य [बल] प्राप्त होता है, तथा यह (इन्द्रवान् भवति) = प्रशस्त इन्द्रियोंवाला होता है जो (आदित्यं क्षत्रम्) = सूर्य को बल के रूप में तथा (दिव्यम्) = सूर्याधिष्ठान द्युलोक को (इन्द्रम्) = बल के अधिष्ठानभूत राजा के रूप में देखता है।

    भावार्थ

    हम ज्ञान को ही माता के रूप में जानें 'ज्ञानाधिपति, बृहस्पति' पृथिवी के रूप में है। इसका गुण 'ज्ञान' अग्नि है। इसे प्राप्त करके हम ब्रह्मवर्चस्वी हो। बल को हम रक्षक पिता युलोक के रूप में देखें। द्युलोक इन्द्र है तो उसका मुख्य देव आदित्य बल है। इस तत्त्व को समझकर हम प्रशस्त, सबल इन्द्रियोंवाले बनें।

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    भाषार्थ

    (वै, उ) निश्चय से ही, (अयम्) यह (अग्निः) अग्नि (ब्रह्म) ब्राह्मधर्मरूप है, अर्थात् ब्राह्मधर्म का आधार है, और (असौ) वह (आदित्यः) सूर्य (क्षत्रम्) क्षात्रधर्मरूप अर्थात् क्षात्रधर्म का आधार है।

    टिप्पणी

    [अग्निः, आदित्यः =आदित्य उग्ररूप है, उग्र तेज का आश्रय है; और अग्नि अनुग्ररूप है। क्षात्रधर्म भी उग्ररूप है, और ब्राह्मधर्म अनुग्र अर्थात् शान्तरूप है। क्षात्रधर्म दण्डधर है, ब्राह्मधर्म क्षमाधर। अतः अग्नि ब्राह्मधर्म की प्रतिनिधि है, और आदित्य क्षात्रधर्म का प्रतिनिधि है]।

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    विषय

    व्रात्य का आदर, ब्राह्मबल और क्षात्रबल का आश्रय।

    भावार्थ

    (इयम् वा उ पृथिवी बृहस्पतिः) यह पृथिवी ही बृहस्पति है और (द्यौः एव इन्द्रः) यह द्यौ इन्द्र है। अर्थात् बृहस्पति पृथिवी के समान सर्वाश्रय है (अयं वा उ अग्निः ब्रह्म) यह ब्रह्म ही अग्नि है और (असौ आदित्यः क्षत्रम्) यह आदित्य ‘क्षत्र’ है। अर्थात् ब्रह्म अग्नि के समान प्रकाशमान है और क्षत्रबल सूर्य के समान तेजस्वी है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १ द्विपदासाम्नी बृहती, २ त्रिपदा आर्ची पंक्तिः, ३ द्विपदा प्राजापत्या पंक्तिः, ४ त्रिपदा वर्धमाना गायत्री, ५ त्रिपदा साम्नी बृहती, ६, ८, १० द्विपदा आसुरी गायत्री, ७, ९ साम्नी उष्णिक्, ११ आसुरी बृहती। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vratya-Prajapati daivatam

    Meaning

    Or, this Agni, the light of knowledge and warmth of love, is Brahma, and that Aditya, the sun of glory, is Kshatra, the social order of power, splendour and enlightenment.

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    Translation

    Also, this adorable leader (fire), verily, is the intellectual power and the yonder sun is the ruling power.

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    Translation

    This fire is surely Brahma and the sun is Kshatra.

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    Translation

    Verily this spiritual knowledge is resplendent like fire and martial spirit Is glittering like the Sun.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(अयम्)दृश्यमानः (वे) निश्चयेन (उ) एव (अग्निः) अग्निवत्तेजस्वी (ब्रह्म)ब्रह्मज्ञानिसमूहः (असौ) प्रसिद्धः (आदित्यः) आदीप्यमानः सूर्यः (क्षत्रम्)क्षत्रियकुलम् ॥

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