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अथर्ववेद के काण्ड - 16 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वाक् देवता - साम्नी उष्णिक् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
    0

    उप॑हूतो मेगो॒पा उप॑हूतो गोपी॒थः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ऽहूत: । मे॒ । गो॒पा: । उप॑ऽहूत: । गो॒पी॒थ: ॥२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपहूतो मेगोपा उपहूतो गोपीथः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उपऽहूत: । मे । गोपा: । उपऽहूत: । गोपीथ: ॥२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (4)

    विषय

    इन्द्रियों की दृढ़ता का उपदेश।

    पदार्थ

    (गोपाः) वाणी का रक्षक [आचार्य] (मे) मेरा (उपहूतः) आदर से बुलाया हुआ है और (गोपीथः) भूमि का रक्षक [राजा] (उपहूतः) आदर से बुलाया हुआ है ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य आचार्य कीशिक्षा और राजा की व्यवस्था से सुशिक्षित होकर स्वस्थ और प्रतिष्ठित रहें॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(उपहूतः) आदरेणाऽऽवाहनीकृतः (मे) मम (गोपाः) वाणीरक्षक आचार्यः (उपहूतः) (गोपीथः) निशीथगोपीथावगथाः। उ० २।९। गो+पा रक्षणे-थक्, ईत्वम्। भूपालः। राजा ॥

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    विषय

    गोपा:-गोपीथः

    पदार्थ

    १. जीवन को ठीक बनाये रखने के लिए (मे) = मेरे द्वारा (गोपा:) = वह इन्द्रियों का रक्षक प्रभु (उपहूतः) = पुकारा गया है। मैं प्रभु की आराधना करता है और इसप्रकार अपनी इन्द्रियों को विषयों से बद्ध नहीं होने देता। इसी उद्देश्य से (गोपीथ:) = [पीथ:-drink] ज्ञान की वाणियों का पान (उपहूतः) = पुकारा गया है। मैं ज्ञान की वाणियों के पान के लिए प्रार्थना करता हूँ। 'प्रभु-स्मरण वज्ञान की वाणियों का पान' ये ही दो साधन हैं, जो मेरे जीवन को मधुर बनाते हैं।

    भावार्थ

    हम प्रभु का आराधन करें और ज्ञान की वाणियों के पान में तत्पर रहें। इसप्रकार हम अपने जीवन को मधुर बना पाएँ।

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    भाषार्थ

    (मे) मेरा (गोपाः) इन्द्रियरक्षक, मैंने (उपहूतः) उपासना विधि द्वारा आहूत किया है, रक्षार्थ बुलाया है, (गोपीथः) इन्द्रिय रक्षक-राजा अर्थात् परमेश्वर (उपहूतः) उपासना विधि द्वारा आहूत किया है, रक्षार्थ बुलाया है, स्वाभिमुख किया।

    टिप्पणी

    [गोपाः=गावः=इन्द्रियाणि+पा=रक्षक, परमेश्वर। गोपीथः= गाः (इन्द्रियाणि)+पातीति परमेश्वर। परमेश्वर की उपासना द्वारा इन्द्रियां सात्त्विक हो कर सुरक्षित हो जाती हैं, और विषयों पर विजय पा लेती है। यथा "ब्रह्मोडुपेन प्रतरेत विद्वान्स्रोतांसि सर्वाणि भयानकानि॥" (श्वेता० उप० २।८)। भयावहानि स्रोतांसि-इन्द्रिय स्रोत। ब्रह्मोडुप= ब्रह्मरूपी नौका।]

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    विषय

    शक्ति उपार्जन।

    भावार्थ

    (मे गोपाः उपहूतः) अपने रक्षक परमात्मा को आदर पूर्वक स्मरण किया जाय। और (उपहूतः गोपीथः) गो=वाणी का पान और पालन करनेहारे ईश्वर को आदर से बुलाया जाय।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वाग्देवता। १ आसुरी अनुष्टुप्, २ आसुरी उष्णिक्, ३ साम्नी उष्णिक्, ४ त्रिपदा साम्नी बृहती, ५ आर्ची अनुष्टुप्, ६ निचृद् विराड् गायत्री द्वितीयं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vak Devata

    Meaning

    I have invoked my preceptor and protector of speech. I have invoked the protector and promoter of mind and senses.

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    Translation

    Invoked is my protector of sense-organs; invoked is the protection.

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    Translation

    I have invoked my protector and I have invoked the protector of speech.

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    Translation

    Reverently have I invoked my preceptor (Acharya) the guardian of speech. Reverently have I invoked the king, the Lord of Earth.

    Footnote

    I: A learned person.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(उपहूतः) आदरेणाऽऽवाहनीकृतः (मे) मम (गोपाः) वाणीरक्षक आचार्यः (उपहूतः) (गोपीथः) निशीथगोपीथावगथाः। उ० २।९। गो+पा रक्षणे-थक्, ईत्वम्। भूपालः। राजा ॥

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