Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 11 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 11/ मन्त्र 2
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - शान्ति सूक्त
    1

    शं नो॑ दे॒वा वि॒श्वदे॑वा भवन्तु॒ शं सर॑स्वती स॒ह धी॒भिर॑स्तु। शम॑भि॒षाचः॒ शमु॑ राति॒षाचः॒ शं नो॑ दि॒व्याः पार्थि॑वाः॒ शं नो॒ अप्याः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम्। नः॒। दे॒वाः। वि॒श्वऽदे॑वाः। भ॒व॒न्तु॒। शम्। सर॑स्वती। स॒ह॒। धी॒भिः। अ॒स्तु॒। शम्। अ॒भि॒ऽसाचः॑। शम्। ऊं॒ इति॑। रा॒ति॒ऽसाचः॑। शम्। नः॒। दि॒व्याः। पार्थि॑वाः। शम्। नः॒। अप्याः॑ ॥११.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शं नो देवा विश्वदेवा भवन्तु शं सरस्वती सह धीभिरस्तु। शमभिषाचः शमु रातिषाचः शं नो दिव्याः पार्थिवाः शं नो अप्याः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शम्। नः। देवाः। विश्वऽदेवाः। भवन्तु। शम्। सरस्वती। सह। धीभिः। अस्तु। शम्। अभिऽसाचः। शम्। ऊं इति। रातिऽसाचः। शम्। नः। दिव्याः। पार्थिवाः। शम्। नः। अप्याः ॥११.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    इष्ट की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (विश्वदेवाः) सब विजय चाहनेवाले, (देवाः) विद्वान् लोग (नः) हमें (शम्) सुखदायक (भवन्तु) हों, (सरस्वती) विज्ञानवती वेदविद्या (धीभिः सह) अनेक क्रियाओं के साथ (शम्) सुखदायक (अस्तु) हो। (अभिषाचः) सब ओर से मिलनसार लोग (शम्) सुखदायक हों, (उ) और (रातिषाचः) दानों की वर्षा करनेहारे (शम्) सुखदायक हों, (दिव्याः) आकाशसम्बन्धी पदार्थ [वायु, मेघ, विमान आदि] और (पार्थिवाः) पृथिवीसम्बन्धी पदार्थ [राज्य, सुवर्ण, अग्नि, रथ आदि] (नः) हमें (शम्) सुखदायक हों, (अप्याः) जलसम्बन्धी पदार्थ [मोती, मूँगा, नौका आदि] (नः) हमें (शम्) सुखदायक हों ॥२॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य विजयी आप्त विद्वानों को प्राप्त होकर सब विद्याओं की वृद्धि करते हैं, वे ही सब संसार पर शासन करते हैं ॥२॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र ऋग्वेद में है−७।३५।११ ॥ २−(शम्) सुखप्रदाः (नः) अस्मभ्यम् (देवाः) विद्वांसः (विश्वदेवाः) सर्वे विजिगीषवः (भवन्तु) (शम्) (सरस्वती) विज्ञानवती वेदविद्या (सह) साकम् (धीभिः) क्रियाभिः (अस्तु) (शम्) (अभिषाचः) अभि+षच समवाये-ण्वि। सर्वतः संगच्छमानाः पुरुषाः (रातिषाचः) राति+षच सेचने-ण्वि। दानानां वृष्टिकर्तारः (शम्) (नः) (दिव्याः) आकाशसम्बन्धिनो वायुमेघविमानादयः (पार्थिवाः) पृथिव्यां विद्यमाना राज्यसुवर्णादयः (शम्) (नः) (अप्याः) जलसम्बन्धिनो मुक्ताविद्रुमनौकादयः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    दिव्य, पार्थिव, अप्य

    पदार्थ

    १. (नः) = हमारे लिए (विश्वदेवा:) = सब दिव्यगुणों से युक्त (देवा:) = विद्वान् पुरुष (शं भवन्तु) = शान्ति प्राप्त कराएँ। (सरस्वती) = ज्ञान की अधिष्ठात्री देवता (धीभिः) = बुद्धियों के साथ (शम् अस्तु) = हमारे लिए शान्तिकर हो। २. (अभिषाच:) = उस प्रभु की ओर [अभि] अपना मेल करनेवाले (शम्) = शान्ति दें, (उ) = और (रातिषाच:) = दान के साथ मेलवाले त्यागी पुरुष (शम्) = शान्ति प्रास कराएँ । २. (नः) = हमारे लिए (दिव्या:) = द्युलोक के पदार्थ (शम्) = शान्तिकर हों। (पार्थिवा:) = पृथिवी के पदार्थ शान्तिकर हों तथा (नः) = हमारे लिए (अप्या:) = अन्तरिक्षलोक में होनेवाले पदार्थ (शम्) = शान्ति दें।

    भावार्थ

    हमारे लिए दिव्यवृत्तिवाले ज्ञानी पुरुष शान्ति दें। हमें विद्या व बुद्धि शान्ति दे, प्रभु के साथ मेलवाले त्यागी पुरुष शान्ति दें। दिव्य, पार्थिव व अन्तरिक्ष के पदार्थ हमारे लिए शान्तिकर हों।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (विश्वदेवाः) विश्वविख्यात (देवाः) दिव्यगुणी विद्वान् (नः) हमें (शं भवन्तु) शान्तिदायक तथा सुखदायक हों। (सरस्वती) ज्ञानमयी वेदवाणी (धीभिः सह) सत्कर्मों के उपदेशों के साथ (शम् अस्तु) शान्ति और सुख प्रदान करे। (अभिषाचः) हमारे प्रति आसक्त प्रेमी विद्वान् (शम्) हमें सुखदायी हों, (रातिषाचः) सदुपदेशों के प्रदान में आसक्त अर्थात् रुचिवाले विद्वान् (शम् उ) हमें सुखदायी हों, (दिव्याः) द्युलोक-सम्बन्धी पदार्थ अर्थात् प्रकाश ताप आदि (पार्थिवाः) तथा पृथिवी सम्बन्धी पदार्थ अर्थात् खाद्य पेय तथा वस्त्र आदि (नः) हमें (शम्) सुखदायी हों, (अप्याः) अन्तरिक्ष के पदार्थ अर्थात् वर्षाजल वायु आदि (नः) हमें (शम्) सुखदायी हों।

    टिप्पणी

    [सरस्वती= सरो विज्ञानं विद्यतेऽस्यां सा सरस्वती=वाक् (उणा० ४.१९०) महर्षि दयानन्द। धीभिः=धीः कर्मनाम (निघं० २.१)। अभिषाचः=अभि+षच् समवाये। अप्याः= आपः अन्तरिक्षनाम (निघं० १.३), अथवा जल सम्बन्धी पदार्थ।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Shanti

    Meaning

    May the generous and brilliant divines of the world be for our peace. May Sarasvati, divine Mother Knowledge, with her message of enlightenment for our intelligence and will be for peace. May all generous, cooperative and abundant powers of nature and humanity be for peace. May the waters of the earth and heavenly firmament be full of peace and good health for us.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May all the divine Nature's bounties be for our happiness; may the divine speech with holy thoughts be gracious; may the persons assisting at our sacred works and those who liberally and large-heartedly give, be conducive to our happiness; may all celestial, terrestrial, and aquatic powers be for our happiness. (Rg. VII.35.11)

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May all the physical elements be auspicious for us, may the holy words of the Vedic speech with their pure knowledge be the source of universal peace and happiness. May the generous ones those and who have taken the vow of serving all livings beings be the promoters of general welfare and may all the heavenly objects together with the product of earth and water be helpful to our prosperity.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let the good people, the best players of various games, the victorious soldiers, the prominent merchants, the brilliant scholars and scientists and the best artists be all peaceful to us. Let our speech along with high intelligence be comforting to us. Let all the delegates, come together from all sides bring peace to us. Let assemblage of the donors and the donee be peaceful. Let all the celestial, the terrestrial and the acustic-bodies be blissful for us.

    Footnote

    cf. Rig, 7.35.12. cf. Rig. 7-35. 11.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र ऋग्वेद में है−७।३५।११ ॥ २−(शम्) सुखप्रदाः (नः) अस्मभ्यम् (देवाः) विद्वांसः (विश्वदेवाः) सर्वे विजिगीषवः (भवन्तु) (शम्) (सरस्वती) विज्ञानवती वेदविद्या (सह) साकम् (धीभिः) क्रियाभिः (अस्तु) (शम्) (अभिषाचः) अभि+षच समवाये-ण्वि। सर्वतः संगच्छमानाः पुरुषाः (रातिषाचः) राति+षच सेचने-ण्वि। दानानां वृष्टिकर्तारः (शम्) (नः) (दिव्याः) आकाशसम्बन्धिनो वायुमेघविमानादयः (पार्थिवाः) पृथिव्यां विद्यमाना राज्यसुवर्णादयः (शम्) (नः) (अप्याः) जलसम्बन्धिनो मुक्ताविद्रुमनौकादयः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top