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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 30/ मन्त्र 2
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - दर्भमणिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दर्भमणि सूक्त
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    श॒तं ते॑ दर्भ॒ वर्मा॑णि स॒हस्रं॑ वी॒र्याणि ते। तम॒स्मै विश्वे॒ त्वां दे॑वा ज॒रसे॒ भर्त॒वा अ॑दुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒तम्। ते॒। द॒र्भ॒। वर्मा॑णि। स॒हस्र॑म्। वी॒र्या᳡णि। ते॒। तम्। अ॒स्मै। विश्वे॑। त्वाम्। दे॒वाः। ज॒रसे॑। भर्त॒वै। अ॒दुः॒ ॥३०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शतं ते दर्भ वर्माणि सहस्रं वीर्याणि ते। तमस्मै विश्वे त्वां देवा जरसे भर्तवा अदुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शतम्। ते। दर्भ। वर्माणि। सहस्रम्। वीर्याणि। ते। तम्। अस्मै। विश्वे। त्वाम्। देवाः। जरसे। भर्तवै। अदुः ॥३०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 30; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सेनापति के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (दर्भ) हे दर्भ ! [शत्रुविदारक सेनापति] (ते) तेरे (वर्माणि) कवच (शतम्) सौ और (ते) तेरे (वीर्याणि) वीर कर्म (सहस्रम्) सहस्र हैं। (तम्) उस (त्वाम्) तुझे (विश्वे) सब (देवाः) विद्वानों ने (अस्मै) इस [पुरुष] को (जरसे) स्तुति के लिये और (भर्तवै) पालन करने के लिये (अदुः) दिया है ॥२॥

    भावार्थ

    जो सेनापति अनेक प्रकार से अपनी और प्रजा की रक्षा कर सके, विद्वान् लोग प्रधान पुरुष के सामने उस महान् पुरुष का आदर करें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(शतम्) असंख्यानि (ते) तव (दर्भ) हे शत्रुविदारक सेनापते (वर्माणि) कवचानि (सहस्रम्) अपरिमितानि (वीर्याणि) वीरकर्माणि (ते) (तम्) तादृशम् (अस्मै) प्रधानाय (विश्वे) सर्वे (त्वाम्) शूरम् (देवाः) विद्वांसः (जरसे) स्तुतये (भर्तवै) तवैप्रत्ययः। भरणाय। पोषणाय (अदुः) दतवन्तः ॥

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    विषय

    जरसे-भर्तवे

    पदार्थ

    १. हे (दर्भ) = वीर्यमणे! (ते) = तेरे (वर्माणि) = कवच (शतम्) = सैकड़ों हैं। यह वीर्यमणि हमें शतवर्षपर्यन्त कवच धारण कराती हुई रोगों से आक्रान्त नहीं होने देती। हे दर्भ। (ते वीर्याणि) = तेरे पराक्रम (सहस्त्रम्) = हजारों हैं। यह वीर्यमणि हज़ारों प्रकार से रोगरूप शत्रुओं को आक्रान्त करती है। २. (तं त्वाम्) = उस तुझको (विश्वेदेवा:)= सब प्राकृतिक देव (अस्मै) = इस पुरुष के लिए (अदु:) = देते हैं, जिससे जरसे यह पूर्ण जरावस्था तक आयुष्यों को भोगनेवाला हो तथा (भर्तवे) = ठीक से अपना भरण-पोषण कर सके।

    भावार्थ

    सरक्षित वीर्य शरीर को विविध कवचों को धारण कराता है-पराक्रमवाला बनाता है। सब प्राकृतिक शक्तियाँ इस कवच को हमें दीर्घजीवन व भरण के लिए प्राप्त कराती हैं।

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    भाषार्थ

    (दर्भ) हे शत्रुविदारक सेनापति! (ते) तेरे (शतं वर्माणि) सैकड़ों प्रकार के कवच आदि हैं और (ते) तेरे (सहस्रम्) हजारों (वीर्याणि) वीरकर्म हैं, इसलिए (विश्वे देवाः) राष्ट्र के सब देवों, अर्थात् दिव्य अधिकारियों तथा विद्वानों ने (जरसे) जरावस्था तक (अस्मै भर्तवै) इस राष्ट्र के भरणपोषण के लिए (तम् त्वाम्) उस तुझ को राजा के प्रति सहायक रूप में (अदुः) समर्पित किया है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Darbha Mani

    Meaning

    O Darbha, destroyer of destroyers, hundredfold are your armours of defence, thousandfold your vigour and virility, strength, courage and heroism. Such as you are, all world divinities of nature and humanity have given you unto this man to bear and wear against infirmity till full age and death. red

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    Translation

    A hundred are your armous; O darbha, and a thousand of valours. You, as such, all the bounties of Nature, have given to this person to support and lead him unto ripe old age.

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    Translation

    This Darbha has hundred shields, it has thousands of power, and therefore all the men of learning give to this man for bearing it till old age.

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    Translation

    O darbha, hundreds are thy shields and thousands are thy means of strength and power. All the learned scholars or the forces of nature have granted thee to him for protection till old age or for long life.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(शतम्) असंख्यानि (ते) तव (दर्भ) हे शत्रुविदारक सेनापते (वर्माणि) कवचानि (सहस्रम्) अपरिमितानि (वीर्याणि) वीरकर्माणि (ते) (तम्) तादृशम् (अस्मै) प्रधानाय (विश्वे) सर्वे (त्वाम्) शूरम् (देवाः) विद्वांसः (जरसे) स्तुतये (भर्तवै) तवैप्रत्ययः। भरणाय। पोषणाय (अदुः) दतवन्तः ॥

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