अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 30/ मन्त्र 3
त्वामा॑हुर्देव॒वर्म॒ त्वां द॑र्भ॒ ब्रह्म॑ण॒स्पति॑म्। त्वामिन्द्र॑स्याहु॒र्वर्म॒ त्वं रा॒ष्ट्राणि॑ रक्षसि ॥
स्वर सहित पद पाठत्वाम्। आ॒हुः॒। दे॒व॒ऽवर्म॑। त्वाम्। द॒र्भ॒। ब्रह्म॑णः। पति॑म्। त्वाम्। इन्द्र॑स्य। आ॒हुः॒। वर्म॑। त्वम्। रा॒ष्ट्राणि॑। र॒क्ष॒सि॒ ॥३०.३॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वामाहुर्देववर्म त्वां दर्भ ब्रह्मणस्पतिम्। त्वामिन्द्रस्याहुर्वर्म त्वं राष्ट्राणि रक्षसि ॥
स्वर रहित पद पाठत्वाम्। आहुः। देवऽवर्म। त्वाम्। दर्भ। ब्रह्मणः। पतिम्। त्वाम्। इन्द्रस्य। आहुः। वर्म। त्वम्। राष्ट्राणि। रक्षसि ॥३०.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सेनापति के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थ
(दर्भ) हे दर्भ ! [शत्रुविदारक सेनापति] (त्वाम्) तुझे (देववर्म) विद्वानों का कवच, (त्वाम्) तुझे (ब्रह्मणः) वेद का (पतिम्) रक्षक (आहुः) वे लोग कहते हैं। (त्वाम्) तुझे (इन्द्रस्य) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवान् पुरुष] का (वर्म) कवच (आहुः) वे लोग कहते हैं, (त्वम्) तू (राष्ट्राणि) राज्यों की (रक्षसि) रक्षा करता है ॥३॥
भावार्थ
पराक्रमी शूर सेनापति विद्वानों, वेदों और सब राज्यों की रक्षा करे ॥३॥
टिप्पणी
३−(त्वाम्) (आहुः) कथयन्ति विद्वांसः (देववर्म) विदुषां कवचं रक्षासाधनम् (त्वाम्) (दर्भ) हे शत्रुविदारक सेनापते (ब्रह्मणः) वेदस्य (पतिम्) पालयितारम् (त्वाम्) (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतः पुरुषस्य (आहुः) (वर्म) (त्वम्) (राष्ट्राणि) राज्यानि (रक्षसि) पालयसि ॥
विषय
देववर्म-इन्द्रवर्म
पदार्थ
१. हे (दर्भ) = वीर्यमणे! (त्वाम्) = तुझे (देव-वर्म आहुः) = उस महान् देव प्रभु से दिया हुआ कवच कहते हैं। इस कवच को देववृत्ति के व्यक्ति ही धारण कर पाते हैं, इसलिए भी यह 'देववर्म' कहलाया है। (त्वाम्) = तुझे (ब्रह्मणस्पतिम् आहुः) = ब्रह्मणस्पति-ज्ञान का रक्षक कहते हैं। सुरक्षित वीर्य ही ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है। २. हे दर्भी (त्वाम्) = तुझे (इन्द्रस्य वर्म आहुः) = जितेन्द्रिय पुरुष का कवच कहते हैं। एक जितेन्द्रिय पुरुष ही वीर्य का रक्षण कर पाता है। यह सुरक्षित वीर्य उसका कवच बनता है और उसे रोगाक्रान्त नहीं होने देता। यह जितेन्द्रिय पुरुष ही राष्ट्र का सम्यक् शासन कर पाता है। 'जितेन्द्रियो हि शक्नोति वशे स्थापयितुं प्रजाः', अत: कहते हैं कि हे वीर्य! (त्वम्) = तू ही (राष्ट्राणि रक्षसि) = राष्ट्रों का रक्षण करता है।
भावार्थ
हम देववत्ति के व जितेन्द्रिय बनकर वीर्य का रक्षण कर पाते हैं। सरक्षित वीर्य हमारी ज्ञानाग्नि का इंधन बनता है और हमें रोगों से आक्रान्त नहीं होने देता। यही एक राजा को राष्ट्ररक्षण की योग्यता प्राप्त कराता है।
भाषार्थ
(दर्भ) हे शत्रुविदारक सेनापति! (त्वाम्) तुझे (आहुः) कहते हैं— (देववर्म) राष्ट्र के देवों का कवच अर्थात् उनका कवचसदृश रक्षक; तथा (त्वाम्) तुझे कहते हैं— (ब्रह्मणस्पतिम्) वेदरक्षक; (त्वाम्) तुझे (आहुः) कहते हैं—(इन्द्रस्य) सम्राट् अर्थात् राजा का (वर्म) कवच, अर्थात् कवचसदृश रक्षक; (त्वम्) तू (राष्ट्राणि) राष्ट्रों की (रक्षसि) रक्षा करता है।
टिप्पणी
[देववर्म= विद्वांसो वै देवाः। तथा मातृदेव, पितृदेव, आचार्यदेव, अतिथिदेव आदि, तथा विजयेच्छुक सैनिक। दिवु=विजिगीषा। ब्रह्म=वेद। सब वेद साक्षात् तथा परम्परया ब्रह्म का वर्णन करते हैं, इसलिए वैदिक मन्त्रों को “ब्रह्म” कहते हैं। इन्द्रस्य=इन्द्रश्च सम्राट् (यजुः ८.३७)। राष्ट्राणि=राजते तत् राष्ट्रम् अर्थात् स्वतन्त्र राज्य, राज्य की भूमि तथा सम्पत्ति, और स्वतन्त्र प्रजाजन।]
इंग्लिश (4)
Subject
Darbha Mani
Meaning
O Darbha, they say you are Deva-varma, armour of divinities, Brahmanaspati, protector and sustainer of the expansive world and of the universal knowledge of existence. They say you are the armour of Indra, the omnipotent, and you defend and protect the social order of world dominions.
Translation
They call you the armour of the enlightened ones; they call you, O darbha, the Lord Supreme. They call you the armour of the resplendent Lord. You protect kingdoms.
Translation
To this Darbha people calf Devavarma, the shield given by natural powers, to this people call Brahmanaspati, the vital breath protecting speech, to this they call, the defending force of Indra, the electricity of cloud, and it preserves kingdom of creatures.
Translation
They (people) call thee, O darbha, the divine shield and they call thee the lord of wealth, food and learning. They call the armour of the king or the commander of the armies. Thou protectest the nations.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(त्वाम्) (आहुः) कथयन्ति विद्वांसः (देववर्म) विदुषां कवचं रक्षासाधनम् (त्वाम्) (दर्भ) हे शत्रुविदारक सेनापते (ब्रह्मणः) वेदस्य (पतिम्) पालयितारम् (त्वाम्) (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतः पुरुषस्य (आहुः) (वर्म) (त्वम्) (राष्ट्राणि) राज्यानि (रक्षसि) पालयसि ॥
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