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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 33 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 33/ मन्त्र 3
    ऋषिः - भृगुः देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - आर्षी पङ्क्तिः सूक्तम् - दर्भ सूक्त
    1

    त्वं भू॑मि॒मत्ये॒ष्योज॑सा॒ त्वं वेद्यां॑ सीदसि॒ चारु॑रध्व॒रे। त्वां प॒वित्र॒मृष॑योऽभरन्त॒ त्वं पु॑नीहि दुरि॒तान्य॒स्मत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम्। भूमि॑म्। अति॑। ए॒षि॒। ओज॑सा। त्वम्। वेद्या॑म्। सी॒द॒सि॒। चारुः॑। अ॒ध्व॒रे। त्वाम्। प॒वित्र॑म्। ऋष॑यः। अ॒भ॒र॒न्त॒। त्वम्। पु॒नी॒हि॒। दुः॒ऽइ॒तानि॑। अ॒स्मत् ॥३३.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं भूमिमत्येष्योजसा त्वं वेद्यां सीदसि चारुरध्वरे। त्वां पवित्रमृषयोऽभरन्त त्वं पुनीहि दुरितान्यस्मत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम्। भूमिम्। अति। एषि। ओजसा। त्वम्। वेद्याम्। सीदसि। चारुः। अध्वरे। त्वाम्। पवित्रम्। ऋषयः। अभरन्त। त्वम्। पुनीहि। दुःऽइतानि। अस्मत् ॥३३.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 33; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    उन्नति करने का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे परमात्मन् !] (त्वम्) तू (ओजसा) पराक्रम से (भूमिम्) भूमि को (अति एषि) पार कर जाता है, (त्वम्) तू (चारुः) शोभायमान होकर (अध्वरे) हिंसारहित यज्ञ में (वेद्याम्) वेदी पर (सीदति) वैठता है। (त्वाम् पवित्रम्) तुझ पवित्र को (ऋषयः) ऋषियों [तत्त्वदर्शियों] ने (अभरन्त) धारण किया है, (त्वम्) तू (दुरितानि) संकटों को (अस्मत्) हमसे (पुनीहि) शुद्ध कर ॥३॥

    भावार्थ

    वह परमात्मा पृथिवी आदि अनन्त लोकों का अद्वितीय सर्वोपरि शासक है, हे मनुष्यो ! उसीकी आज्ञा मानकर दुष्कर्मों को त्याग अपने को शुद्ध बनाओ ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(त्वम्) (भूमिम्) (अति) अतीत्य (एषि) गच्छसि (ओजसा) पराक्रमेण (त्वम्) (वेद्याम्) यज्ञप्रदेशे (सीदसि) तिष्ठसि (चारुः) शोभायमानः (अध्वरे) हिंसारहिते यज्ञे (त्वाम्) (पवित्रम्) शुद्धम् (ऋषयः) तत्त्वदर्शिनः (अभरन्त) धारितवन्तः (त्वम्) (पुनीहि) शोधय (दुरितानि) महादुःखानि (अस्मत्) अस्मत्तः ॥

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    विषय

    'पवित्र' दर्भमणि

    पदार्थ

    १. हे दर्भ [वीर्यमणे]! (त्वम्) = तू (भूमिम्) = इस शरीररूप भूमि को (ओजसा) = ओजस्विता के साथ (अति एषि) = अतिशयेन प्राप्त होता है। शरीर में प्राप्त होकर तू इसे खूब ओजस्वी बनाता है। (त्वम्) = तू (अध्वरे) = हिंसारहित यज्ञ आदि उत्तम कर्मों में (चारु:) = विचरण करनेवाला होकर (वेद्यां सीदसि) = यज्ञवेदि में आसीन होता है, अर्थात् सुरक्षित वीर्य हमें यज्ञ आदि उत्तम कर्मों में प्रेरित करता है। २. (पवित्रम्) = जीवन को पवित्र बनानेवाले (त्वाम्) = तुझको (ऋषयः अभरन्त) = तत्वद्रष्टा ज्ञानी पुरुष अपने में धारण करते हैं। वस्तुत: धारण किया हुआ यह वीर्य ही उन्हें 'ऋषि' बनाता है। (त्वम्) = तू (दुरितानि) = सब दुरितों को (अस्मत्) = हमसे (पुनीहि) = दूर करके हमें पवित्र बना। दुरितों का तू सफ़ाया कर डाल । इन दुरितों को नष्ट करके हमारे जीवनों को पवित्र कर दे।

    भावार्थ

    सुरक्षित वीर्य शरीर को ओजस्वी बनाता है, हमें यज्ञात्मक पवित्र कर्मों में प्रेरित करता है। दुरितों को दूर करके हमारे जीवनों को ऋषियों का-सा पवित्र जीवन बना देता है।

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    भाषार्थ

    हे परमेश्वर! (त्वम्) आप (ओजसा) निज ओज के कारण (भूमिम् अति) भूमि का अतिक्रमण करके समस्त जगत् में (एषि) व्याप्त हैं। (अध्वरे) हिंसारहित यज्ञ में (त्वम्) आप (चारुः) शोभायमान होते हुए (वेद्याम्) यज्ञवेदि में (सीदसि) अग्नि में प्रविष्ट हुए स्थित होते हैं। (ऋषयः) ऋषिलोग (त्वां पवित्रम्) आप पवित्र को (अभरन्त) हृदयों में धारण करते हैं। (त्वम्) आप (अस्मत्) हम से (दुरितानि) दुष्कर्मों को हटाकर (पुनीहि) हमें पवित्र कीजिए।

    टिप्पणी

    [अत्येषि=यथा— “स भूमिं सर्वतः स्पृत्वाऽत्यतिष्ठद् दशाङ्गलम्” (यजुः० ३१.१)। दशाङ्गुलम्= १० अंगों अर्थात् ५ सूक्ष्म भूत और ५ स्थूल भूतरूपी अङ्गोंवाला जगत्। वेद्यां सीदसि= यथा—“अग्नावग्निश्चरति प्रविष्टः” (अथर्व० ४.३९.९) में वेदिनिष्ठ अग्नि में परमेश्वराग्नि का प्रवेश दर्शाया है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Darbha

    Meaning

    O Darbha, with the blaze of your splendour, you pervade and transcend the earth. You sit with the holy fire in the vedi, beatific presence in the yajna of love free from violence. Pure, immaculate and holy, the seers realise you in the heart. Pray, purify and sanctify us, lord, free us from all sin and evil.

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    Translation

    You overtake the earth with vigour; at the sacrifice, you sit beautiful on the altar; the seers put on you, the purifier; may you cleanse evils away from us.

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    Translation

    Let this Darbha which is covered with splendor, sweet in effect, succulent and which keeps the earth firm, which is unshaken and over-throwing, throwing away diseases like foes, making them down-trended rise above them with the great organic power of the powerful limbs of the body.

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    Translation

    Thou penetratest the earth with strong energy and power. Thou sitest charming and beautiful at the altar in the non-violent sacrifice. The sages bear thee, the purifier. Thou purifiest all evils from us.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(त्वम्) (भूमिम्) (अति) अतीत्य (एषि) गच्छसि (ओजसा) पराक्रमेण (त्वम्) (वेद्याम्) यज्ञप्रदेशे (सीदसि) तिष्ठसि (चारुः) शोभायमानः (अध्वरे) हिंसारहिते यज्ञे (त्वाम्) (पवित्रम्) शुद्धम् (ऋषयः) तत्त्वदर्शिनः (अभरन्त) धारितवन्तः (त्वम्) (पुनीहि) शोधय (दुरितानि) महादुःखानि (अस्मत्) अस्मत्तः ॥

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