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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 40 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 40/ मन्त्र 4
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - बृहस्पतिः, विश्वे देवाः छन्दः - त्रिपदार्षी गायत्री सूक्तम् - मेधा सूक्त
    1

    या नः॒ पीप॑रद॒श्विना॒ ज्योति॑ष्मती॒ तम॑स्ति॒रः। ताम॒स्मे रा॑सता॒मिष॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या। नः॒। पीप॑रत्। अ॒श्विना॑। ज्योति॑ष्मती । तमः॑। ति॒रः। ताम्। अ॒स्मे। रा॒स॒ता॒म्। इष॑म् ॥४०.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या नः पीपरदश्विना ज्योतिष्मती तमस्तिरः। तामस्मे रासतामिषम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या। नः। पीपरत्। अश्विना। ज्योतिष्मती । तमः। तिरः। ताम्। अस्मे। रासताम्। इषम् ॥४०.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 40; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    बुद्धि बढ़ाने का उपदेश।

    पदार्थ

    (या) जो (ज्योतिष्मती) उत्तम ज्योतिवाली [अन्न-सामग्री] (तमः) अन्धकार का (तिरः) तिरस्कार करके (नः) हमें (पीपरत्) पूर्ण करे, (अश्विना) व्यवहारों में व्यापक दोनों [माता-पिता] (ताम्) उस (इषम्) अन्नसामग्री को (अस्मे) हमें (रासताम्) दिया करें ॥४॥

    भावार्थ

    माता-पिता सन्तानों को ऐसा विद्वान् और बलवान् बनावें कि जिससे उत्तम अन्न के भोगने से नेत्रों में कभी अन्धकार न छाए, किन्तु सदा ज्योति बनी रहे ॥४॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है-१।४६।६॥४−(या) इट्। अन्नसामग्री (नः) अस्मान् (पीपरत्) पूरयेत् (अश्विना) व्यवहारेषु व्यापकौ मातापितरौ (ज्योतिष्मती) प्रकाशवती (तमः) अन्धकारम् (तिरः) तिरस्कृत्य (ताम्) तादृशीम् (अस्मे) अस्मभ्यम् (रासताम्) प्रयच्छतां तौ (इषम्) इषम्, अन्ननाम-निघ०२।७। इष्यमानामन्नसामग्रीम् ॥

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    भाषार्थ

    (अश्विना) हे इन्द्रियाश्वों के स्वामी अध्यापक और उपदेशक या माता और पिता! (या) जो (ज्योतिष्मती) ज्योतिष्ठमती प्रज्ञा (तमस्तिरः) अन्धकार को तिरोहित करके (नः) हमारा (पीपरत्) पालन करती है, (ताम्) उस (इषम्) अभीष्ट ज्योतिष्मती प्रज्ञा को (अस्मे) हमें (रासताम्) प्रदान कीजिये।

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    विषय

    वह प्रेरणा

    पदार्थ

    १. हे (अश्विना) = प्राणापानो! अस्मे हमारे लिए (ताम्) = उस (इषम्) = हृदयस्थ प्रभु की प्रेरणा को (रासताम्) = प्राप्त कराओ, (या) = जो प्रेरणा (न:) = हमें (पीपरत्) = पार प्राप्त कराए, जिस प्रेरणा को सुनते हुए हम भवसागर से पार हो सकें। २. उस प्रेरणा को हम इस प्राणसाधना द्वारा प्राप्त करें जोकि (ज्योतिष्मती) = प्रकाशमयी है और (तमः तिर:) = अन्धकार को हमसे तिरोहित कर देती है।

    भावार्थ

    प्राणसाधना से अशुद्धि का क्षय होने पर इदय परिशुद्ध होता है। इस परिशुद्ध हृदय में हम प्रभु-प्रेरणा को सुन पाते हैं। यह प्रभुप्रेरणा प्रकाशमयी होती हुई, अन्धकार को दूर करती हुई, हमें भवसागर से पार प्राप्त कराए।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    For Intelligence, Medha

    Meaning

    May the Ashvins, complementary powers of natural and social rejuvenation, teachers and preachers, parents, rulers and administrators, give us that light of intelligence and understanding which leads up across darkness and ignorance and regenerates us towards perfection and fulfilment.

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    Translation

    Grant us, O twins-divine, that food, which, full of light and seatherer of darkness, will sustain us.

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    Translation

    Let not they injure our intellect, let not injure ours. disciplined understanding and let not they injure whatever austerity we have attained. May our mothers be propitious for us and be auspicious for our pleasure and longevity of life.

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    Translation

    O parents, (or teachers and preachers) grant us that food and intellect which is full of light and brilliance and which may lead us across the deep darkness of ignorance.

    Footnote

    cf. Rig, 1.46.6.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है-१।४६।६॥४−(या) इट्। अन्नसामग्री (नः) अस्मान् (पीपरत्) पूरयेत् (अश्विना) व्यवहारेषु व्यापकौ मातापितरौ (ज्योतिष्मती) प्रकाशवती (तमः) अन्धकारम् (तिरः) तिरस्कृत्य (ताम्) तादृशीम् (अस्मे) अस्मभ्यम् (रासताम्) प्रयच्छतां तौ (इषम्) इषम्, अन्ननाम-निघ०२।७। इष्यमानामन्नसामग्रीम् ॥

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