अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 46/ मन्त्र 4
ऋषिः - प्रजापतिः
देवता - अस्तृतमणिः
छन्दः - चतुष्पदा त्रिष्टुप्
सूक्तम् - अस्तृतमणि सूक्त
1
इन्द्र॑स्य त्वा॒ वर्म॑णा॒ परि॑ धापयामो॒ यो दे॒वाना॑मधिरा॒जो ब॒भूव॑। पुन॑स्त्वा दे॒वाः प्र ण॑यन्तु॒ सर्वेऽस्तृ॑तस्त्वा॒भि र॑क्षतु ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑स्य। त्वा॒। वर्म॑णा। परि॑। धा॒प॒या॒मः॒। यः। दे॒वाना॑म्। अ॒धि॒ऽरा॒जः। ब॒भूव॑। पुनः॑। त्वा॒। दे॒वाः। प्र। न॒य॒न्तु॒। सर्वे॑। अस्तृ॑तः। त्वा॒। अ॒भि। र॒क्ष॒तु॒ ॥४६.४॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रस्य त्वा वर्मणा परि धापयामो यो देवानामधिराजो बभूव। पुनस्त्वा देवाः प्र णयन्तु सर्वेऽस्तृतस्त्वाभि रक्षतु ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रस्य। त्वा। वर्मणा। परि। धापयामः। यः। देवानाम्। अधिऽराजः। बभूव। पुनः। त्वा। देवाः। प्र। नयन्तु। सर्वे। अस्तृतः। त्वा। अभि। रक्षतु ॥४६.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
विजय की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
[हे मनुष्य !] (त्वा) तुझको (इन्द्रस्य) इन्द्र [परम ऐश्वर्यवान् जगदीश्वर] के (वर्मणा) कवच से (परि धापयामः) हम ढकते हैं, (यः) जो [परमेश्वर] (देवानाम्) विद्वानों का (अधिराजः) अधिराजा (बभूव) हुआ है। (पुनः) फिर (त्वा) तुझको (सर्वे) सब (देवाः) विद्वान् लोग (प्र णयन्तु) आगे ले चलें, (अस्तृतः) अटूट [नियम] (त्वा) तेरी (अभि) सब ओर से (रक्षतु) रक्षा करे ॥४॥
भावार्थ
माता-पिता आदि सन्तानों को ऐसी उत्तम शिक्षा देवें, जिससे वे सत्य नियम पर चलकर विद्वानों के अगुआ होवें ॥४॥
टिप्पणी
४−(इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतः परमात्मनः (त्वा) (वर्मणा) कवचेन (परि) सर्वतः (धापयामः) आवृण्मः (यः) (देवानाम्) विदुषाम् (अधिराजः) टच् समासान्तः। अधिपतिः (बभूव) (पुनः) अनन्तरम् (त्वा) (देवाः) विद्वांसः (प्र) अग्रे (नयन्तु) गमयन्तु (सर्वे) समस्ताः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
भाषार्थ
(यः) जो (देवानाम्) विजिगीषु सैनिकों का (अधिराजः) अधिराट् या सम्राट् (बभूव) हुआ है, उस (इन्द्रस्य) सम्राट् के (वर्मणा) कवच द्वारा (त्वा) हे राजन्! आपको (परि धापयामः) हम ढकते हैं। (पुनः) तदनन्तर (सर्वे) सब (देवाः) विजिगीषु सैनिक (त्वा) आपके साथ (प्रणयन्तु) प्रणयसूत्र में बन्ध जाएँ, या आपको उन्नति के पथ पर ले चलें। (अस्तृतः) अपराजित महाशासक सम्राट् (त्वा) आपको (अभि) सब ओर से (रक्षतु) सुरक्षित करे।
टिप्पणी
[इन्द्रस्य वर्मणा=इन्द्ररूपी कवच द्वारा, या इन्द्र द्वारा दिये शस्त्रास्त्रों द्वारा। देवाः=दिवु विजिगीषा।]
विषय
इन्द्र का वर्म
पदार्थ
१. यह अस्तृतमणि [वीर्य] शरीर में स्थापित प्रभु का कवच है। (इन्द्रस्य) = उस शत्रुविद्रावक प्रभु के (वर्मणा) = कवच से (त्वा परिधापयाम:) = तुझे आच्छादित करते है। (य:) = जो इन्द्र (देवानाम्) = सब देवों का (अधिराजः बभूव) = अधिराज है। प्रभु ही सब देवों में देवत्व को स्थापित करते हैं। ये प्रभु हमें भी इस वीर्यरूप कवच को धारण कराके, रोगों व वासनाओं के आक्रमण से बचाकर, देव बनाते हैं। २. प्रभु ने तो हमें यह कवच प्राप्त कराया ही है। अब इस जीवन में (पुनः) = फिर (सर्वे देवा:) = "माता-पिता व आचार्य' आदि सब देव (त्वा प्रणयन्तु) = तुझे इस कवच को प्राप्त करानेवाले हों। उनका शिक्षण इसप्रकार का हो कि तुझे इस कवच-धारण के महत्त्व को सम्यक् समझा दें। यह (अस्तृतः) = शरीर में धारण किया हुआ अस्तृतमणिरूप कवच (त्वा अभिरक्षतु) = तुझे रोगों व वासनाओं के आक्रमण से बचाए।
भावार्थ
अस्तृतमणि [वीर्य] प्रभु से दिया गया कवच है। माता-पिता-आचार्य आदि सब देव इसके महत्त्व को हमें समझाते हैं। धारित हुआ-हुआ यह कवच हमें रोगों व वासनाओं से बचाता है।
इंग्लिश (4)
Subject
Astrta Mani
Meaning
O man, we vest and cover you with the power and protection of Indra who is the supreme ruler of the world powers of strength and enlightenment, and then may all brilliant powers of the world protect and lead you forward. O man, may Astrta protect you all round.
Translation
We cover you with the armour of the resplendent Lord, who is the overlord of the bounties of Nature. May all the enlightened ones lead you forth again; may the unsubdued protect you all around.
Translation
O man, we cover you with the armor of Indra, the all-pervading electricity which is the unsurpassable power amid all the wondrous natural powers. Let all these natural powers again guard you and let this invincible one guard you.
Translation
We (the general people), cover thee up with the armour of the king who is the lord of all riches and the chief of all the winning warriors. Let. all the winning kings or warriors or the learned people again make thee their leader. May the unconquerable commander protect thee from all sides.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४−(इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतः परमात्मनः (त्वा) (वर्मणा) कवचेन (परि) सर्वतः (धापयामः) आवृण्मः (यः) (देवानाम्) विदुषाम् (अधिराजः) टच् समासान्तः। अधिपतिः (बभूव) (पुनः) अनन्तरम् (त्वा) (देवाः) विद्वांसः (प्र) अग्रे (नयन्तु) गमयन्तु (सर्वे) समस्ताः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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