अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 54/ मन्त्र 3
का॒लो ह॑ भू॒तं भव्यं॑ च पु॒त्रो अ॑जनयत्पु॒रा। का॒लादृचः॒ सम॑भव॒न्यजुः॑ का॒लाद॑जायत ॥
स्वर सहित पद पाठका॒लः। ह॒। भू॒तम्। भव्य॑म्। च॒। पु॒त्रः। अ॒ज॒न॒य॒त्। पु॒रा। का॒लात्। ऋचः॑। सम्। अ॒भ॒व॒न्। यजुः॑। का॒लात्। अ॒जा॒य॒त॒ ॥५४.३॥
स्वर रहित मन्त्र
कालो ह भूतं भव्यं च पुत्रो अजनयत्पुरा। कालादृचः समभवन्यजुः कालादजायत ॥
स्वर रहित पद पाठकालः। ह। भूतम्। भव्यम्। च। पुत्रः। अजनयत्। पुरा। कालात्। ऋचः। सम्। अभवन्। यजुः। कालात्। अजायत ॥५४.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
काल की महिमा का उपदेश।
पदार्थ
(कालः) कालरूपी (पुत्रः) पुत्र ने (ह) ही (भूतम्) बीता हुआ (च) और (भव्यम्) होनेवाला (पुरा) पहिले (अजनयत्) उत्पन्न किया है। (कालात्) काल से (ऋचः) ऋचाएँ [गुणप्रकाशक विद्याएँ] (सम् अभवन्) उत्पन्न हुई हैं, (कालात्) काल से (यजुः) यजुर्वेद [सत्कर्मों का ज्ञान] (अजायत) उत्पन्न हुआ है ॥३॥
भावार्थ
नित्य वर्तमान काल पिता के समान पहिले और पुत्र के समान पीछे भी विद्यमान रहता है-[देखो गत सूक्त मन्त्र ४]। काल के ही प्रभाव से सब आगे-पीछे की सृष्टि और वेदों का प्रादुर्भाव होता है ॥३॥
टिप्पणी
३−(कालः) (ह) एव (भूतम्) अतीतम् (भव्यम्) भविष्यत् (च) (पुत्रः) पुत्र इव पश्चाद् वर्तमानः (अजनयत्) उत्पादितवान् (पुरा) पूर्वम् (कालात्) (ऋचः) ऋग्वेदमन्त्राः। गुणप्रकाशिका विद्याः (सम् अभवन्) अजायन्त (यजुः) यजुर्वेदः सत्कर्मणां ज्ञानम् (कालात्) (अजायत्) ॥
भाषार्थ
(पुत्रः) पुत्ररूप (कालः ह) काल ने निश्चय से (भूतम् भव्यम् च) भूत और भविष्यत् को (पुरा) पहले भी (अजनयत्) पैदा किया। (कालात्) काल से (ऋचः) वेदों की छन्दोमयी रचना (समभवत्) प्रकट हुई। (यजुः) और वेदों की गद्यमयी रचना (कालात्) काल से (अजायत) पैदा हुई।
टिप्पणी
[पुत्रः= इससे प्रतीत होता है कि काल का भी कोई पिता है, जिसका कि काल पुत्र है। वह पिता परमेश्वर ही है। अथवा— देखो मन्त्र (१९.५३.४)। परमेश्वर से काल पैदा हुआ, और अन्य सृष्टि काल द्वारा नियन्त्रित होकर पैदा हुई। भूतं भव्य पुरा=सृष्टि के आरम्भ से ही “भूत और भव्य” की स्थिति रही है, जो कि अब से भविष्यत् में भी चलती जायेगी। अथर्व० १९.५३.४ में काल का पितृत्व और पुत्रत्व दार्शनिक दृष्टि से हुआ है, और १९.५४.३ में काल का पुत्रपन वास्तविक है।]
विषय
ऋचः+यजुः
पदार्थ
१. (काल: ह) = वह काल नामक प्रभ ही (भूतम्) = भूतकालाविच्छन्न जगत् को, (अजनयत) = जन्म देता है। वह काल ही (पुरा) = सृष्टि के प्रारम्भिक काल में (पुत्रः) = [पुनाति त्रायते] इन प्रजाओं को पवित्र करता है और रक्षित करता है। उस समय अभी माता-पिता का क्रम नहीं चला होता, अत: उन प्रारिम्भक प्रजाओं का प्रभु ही ध्यान करते हैं। (कालात्) = उस काल से ही (ऋच:) = पादबद्ध मन्त्र (समभवन्) = उत्पन्न हुए और (यजु:) = प्रश्लिष्ट पाठरूप मन्त्र भी (कालात्) = उस काल नामक प्रभु से ही (अजायत) = प्रादुर्भूत हुए।
भावार्थ
प्रभु ही भूत, भव्य व वर्तमान जगतों के निर्माता हैं। प्रभु ही प्रत्येक सष्टि के प्रारम्भ में पादबद्ध [पद्य] व प्रश्लिष्टपाठ-[गद्य]-रूप मन्त्रों को प्रादुर्भूत करते हैं।
इंग्लिश (4)
Subject
Kala
Meaning
Kala, transcendent Time, transcendent Brahma, self-created Its own creative version of the creator and chronological time with the divisions of past, present and future. From Kala arose the Rks and Yajus together from Time and in time.
Translation
By Time, the son (of Time: Prajapati) created past, present and future in ahcient times. The RKs (praise verses) are born from Time; from time is born the Yajuh' (sacrificial text );
Translation
Kala as the Putra (of sun etc.) at first makes past, present and future. Richas, the bodies come out from kala and Yajus mind also from the Kala.
Translation
The so-called (mentioned in the 4th mantra of the previous sukta) Son, the Kala, produces the past and the future. From Him were born the Richas. Yajurveda was born of Him.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(कालः) (ह) एव (भूतम्) अतीतम् (भव्यम्) भविष्यत् (च) (पुत्रः) पुत्र इव पश्चाद् वर्तमानः (अजनयत्) उत्पादितवान् (पुरा) पूर्वम् (कालात्) (ऋचः) ऋग्वेदमन्त्राः। गुणप्रकाशिका विद्याः (सम् अभवन्) अजायन्त (यजुः) यजुर्वेदः सत्कर्मणां ज्ञानम् (कालात्) (अजायत्) ॥
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