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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 69 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 69/ मन्त्र 4
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - आपः छन्दः - साम्न्युष्णिक् सूक्तम् - आपः सूक्त
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    जी॑व॒ला स्थ॑ जी॒व्यासं॒ सर्व॒मायु॑र्जीव्यासम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    जी॒व॒लाः। स्थ॒। जी॒व्यास॑म्। सर्व॑म्। आयुः॑। जी॒व्या॒स॒म् ॥६९.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    जीवला स्थ जीव्यासं सर्वमायुर्जीव्यासम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    जीवलाः। स्थ। जीव्यासम्। सर्वम्। आयुः। जीव्यासम् ॥६९.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 69; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    जीवन बढ़ाने के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    [हे विद्वानो !] तुम (जीवलाः) जीवनदाता (स्थ) हो, (जीव्यासम्) मैं जीता रहूँ, (सर्वम्) सम्पूर्ण (आयुः) आयु (जीव्यासम्) मैं जीता रहूँ ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य परस्पर उपकार से सबका जीवन बढ़ाते रहें ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(जीवलाः) जीव+ला दानादानयोः-क प्रत्ययः। जीवनदातारः ॥

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    पदार्थ

    शब्दार्थ = हे विद्वानो! तुम  ( जीवला: स्थ ) = जीवनदाता हो ।  ( जीव्यासम् ) = मैं जीता रहूँ  ( सर्वमायुर्जीव्यासम् ) = मैं सम्पूर्ण आयु जीता रहूँ ।  ( इन्द्र जीव ) = हे परमैश्वर्यवाले मनुष्य ! तू जीता रह ।  ( सूर्य जीव ) = हे सूर्य समान तेजस्वी ! तू जीता रहे । ( देवाः जीवा: ) = हे विद्वान् लोगो! आप जीते रहो  ( जीव्यासमहम् ) = मैं जीता रहूँ ।  ( सर्वम् आयुः जीव्यासम् ) = सम्पूर्ण आयु जीता रहूँ ।  

    भावार्थ

    भावार्थ = सब मनुष्यों को चाहिये कि जीवन विद्या का उपदेश देनेवाले विद्वानों के सत्संग से और परस्पर उपकार करते हुए अपना जीवन बढ़ावें और परमैश्वर्यवान् तेजस्वी हो कर विद्वानों के साथ पूर्णायु को प्राप्त करें ।

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    भाषार्थ

    आप (जीवलाः) जीवनदाता (स्थ) हैं। (जीव्यासम्) मैं आपके द्वारा जीवन ग्रहण कर जीऊँ। (सर्वम् आयुः) सम्पूर्ण आयु इस प्रकार (जीव्यासम्) जीऊँ।

    टिप्पणी

    [सूक्त का देवता “आपः” कहा है। “आपः” द्वारा जलसदृश शान्त, तथा जीवनोपदेशों द्वारा जीवन प्रदान करनेवाले “आप्तजन” अभिप्रेत हैं। जीवलाः=जीव (जीवन)+ला (दानेऽपि)।]

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    विषय

    जीवन

    पदार्थ

    ४. हे [आपः] आप्तजनो! आप (जीवला: स्थ) = जीवनशक्ति का उपादान करनेवाले हो, मैं भी (जीव्यासम) = जीवनशक्ति का उपदान करता हुआ जीऊँ। (सर्वम् आयुः जीव्यासम्) = पूर्ण जीवन जीऊँ।

    भावार्थ

    हम आप्तजनों की भाँति जीवनशक्तिसम्पन्न बनें। प्रभु के सान्निध्य में जीवन को बिताएँ। सम्यक् जीवनवाले हों। जीवनशक्ति का उपादान करनेवाले हों। इसप्रकार पूर्णजीवन को प्राप्त करें।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Apah: Dynamic Life

    Meaning

    Live, be living, animated and inspiring. Let me live with enthusiasm. Let me live, inspired, inspiring, throughout life till the last day of a full life.

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    Translation

    You are animating: may I live; may I live my full term of life.

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    Translation

    You-are life giver, I fain would live and a fain would live my full period of life.

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    Translation

    Oh! men of noblest character, peaceful like waters, you are capable of leading a long life. May I also live long. May I complete the full span of life. Oh! noble persons, you are capable of increasing your life. May I also do so: (1) May I live for the full span of life (2) Oh! noble souls, you lead a ! good life. (3) May I also do so. May I live for the full span of life. (4) Oh! noble souls, you are able to instill life into others. May I live long. May I complete the full span of life.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(जीवलाः) जीव+ला दानादानयोः-क प्रत्ययः। जीवनदातारः ॥

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    জীবলাঃ স্থ জীব্যাসং সর্বমায়ুর্জীব্যাসম্।।

    ইন্দ্র জীবং সূর্য জীব দেবা জীবা জীব্যাসমহম্ সর্বমায়ুর্জীব্যাসম্ ।।৯৬।।

    (অথর্ব ১৯।৬৯।৪, ১৯।৭০।১)

    পদার্থঃ হে বিদ্বান! তুমি (জীবলাঃ স্থ) জীবনদাতা। (জীব্যাসম্) আমি বেঁচে থাকি (সর্বমায়ুর্জীব্যাসম্) আমার সম্পূর্ণ আয়ু বেঁচে থাকি। (ইন্দ্র জীবম্) হে ঐশ্বর্যবান মানুষ! তুমি বেঁচে থাক। (সূর্য় জীব) হে সূর্যের ন্যায় তেজস্বী! তুমি বেঁচে থাক। (দেবাঃ জীবাঃ) হে বিদ্বানগণ তোমরাও বেঁচে থাক। (জীব্যাসমহম্) আমিও বেঁচে থাকি, সম্পূর্ণ আয়ু বেঁচে থাকি।

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ সব মনুষ্যেরই উচিত যে, জীবনে বিদ্যার উপদেশ দানকারী বিদ্বানদের সৎসঙ্গে থেকে এবং পরস্পর উপকার করতে থেকে নিজের জীবনে এগিয়ে যাওয়া। এভাবে জীবনে চললে পরমৈশ্বর্যবান তেজস্বী হয়ে বিদ্বানদের সথে পূর্ণায়ু প্রাপ্ত করতে পারবে ।।৯৬।।

     

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