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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 4
    ऋषिः - गार्ग्यः देवता - नक्षत्राणि छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् सूक्तम् - नक्षत्र सूक्त
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    अन्नं॒ पूर्वा॑ रासतां मे अषा॒ढा ऊर्जं॑ दे॒व्युत्त॑रा॒ आ व॑हन्तु। अ॑भि॒जिन्मे॑ रासतां॒ पुण्य॑मे॒व श्रव॑णः॒ श्रवि॑ष्ठाः कुर्वतां सुपु॒ष्टिम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अन्न॑म्। पूर्वा॑। रा॒स॒ता॒म्। मे॒। अ॒षा॒ढाः। ऊर्ज॑म्। दे॒वी। उत्ऽत॑रोः। आ। व॒ह॒न्तु॒। अ॒भि॒ऽजित्। मे॒। रा॒स॒ता॒म्। पुण्य॑म्। ए॒व। श्रव॑णः। श्रवि॑ष्ठाः। कु॒र्व॒ता॒म्। सु॒ऽपु॒ष्टिम् ॥७.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अन्नं पूर्वा रासतां मे अषाढा ऊर्जं देव्युत्तरा आ वहन्तु। अभिजिन्मे रासतां पुण्यमेव श्रवणः श्रविष्ठाः कुर्वतां सुपुष्टिम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अन्नम्। पूर्वा। रासताम्। मे। अषाढाः। ऊर्जम्। देवी। उत्ऽतरोः। आ। वहन्तु। अभिऽजित्। मे। रासताम्। पुण्यम्। एव। श्रवणः। श्रविष्ठाः। कुर्वताम्। सुऽपुष्टिम् ॥७.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 7; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ज्योतिष विद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (पूर्वा) पूर्वा [पहिली] (अषाढाः) अषाढ़ाएँ (मे) मेरे लिये (अन्नम्) अन्न (रासताम्) देवें, और (देवी) चमकीली (उत्तराः) उत्तराएँ [पिछली अर्थात् उत्तरा-अषाढाएँ] (ऊर्जम्) पराक्रम (आ वहन्तु) लावें। (अभिजित्) (मे) मेरे लिये (पुण्यम्) पुण्य कर्म (एव) ही (रासताम्) देवे, (श्रवणः) श्रवण और (श्रविष्ठाः) श्रविष्ठाएँ (सुपुष्टिम्) बहुत पुष्टि (कुर्वताम्) करें ॥४॥

    भावार्थ

    मन्त्र २ के समान है ॥४॥

    टिप्पणी

    इस मन्त्र में इन नक्षत्रों का वर्णन है। १८−पूर्वा-अषाढ़ा [यद्वा पूर्वा−आषाढा=पूर्वाषाढा, सूप−आकृति, चार तारापुञ्ज, वीसवाँ नक्षत्र], १९−उत्तरा-अषाढ़ा [यद्वा उत्तरा−आषाढा=उत्तराषाढ़ा, सूप−आकृति, चार तारापुञ्ज, इक्कीसवाँ नक्षत्र], २०-अभिजित् [सब ओर से जीतनेवाला, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के शेष पन्द्रह, दण्ड और श्रवणा नक्षत्र के पहिले चार दण्ड, उन्नीस दण्डवाला तारा विशेष, सिंगाड़े की आकृति, तीन तारापुञ्ज], २१−श्रवणा [यद्वा श्रवण, सुननेवाला वा चलनेवाला, तीर की आकृति, तीन तारापुञ्ज, बाइसवाँ नक्षत्र], २२−श्रविष्ठाएँ [अत्यन्त विख्यात, यद्वा धनिष्ठा−बहुत धनवाली, मृदङ्ग−आकृति, पाँच तारापुञ्ज तेइसवाँ नक्षत्र] ॥ ४−(अन्नम्) जीवनसाधनं भक्षणीयं पदार्थं वा (पूर्वा) बहुवचनस्यैकवचनम्। पूर्वाः। प्रथमभवाः (रासताम्) रासतीति दानकर्मा-निघ० ३।२०। रासृ दाने शब्दे च-लोट्, बहुवचनम्, अदादित्वं छान्दसम्। ददतु (मे) मह्यम् (अषाढाः) नञ्+षह मर्षणे-अण्, टाप्। शूर्पाकृति चतुस्तारात्मकं विंशनक्षत्रम् (ऊर्जम्) पराक्रमम् (देवी) देव्यः। प्रकाशमानाः (उत्तराः) उत्तरे भवाः। उत्तराषाढाः। शूर्पाकृति ताराचतुष्टयात्मकमेकविंशनक्षत्रम् (अभिजित्) अभि+जि जये-क्विप्। उत्तराषाढायाः शेषपञ्चदशदण्डाः श्रवणायाः प्रथमदण्डचतुष्टयम् एतदूनविंशतिदण्डात्मकं नक्षत्रम्, तारकात्रयात्मकं शृङ्गाटकाकृति (मे) मह्यम् (रासताम्) रासृ दाने, भ्वादिः, आत्मनेपदम्। ददातु। प्रयच्छतु (पुण्यम्) शुभम् (एव) अवधारणे (श्रवणः) श्रु गतौ श्रवणे च−ल्यु। शराकृति, तारात्रयात्मकं द्वाविंशनक्षत्रम् (श्रविष्ठाः) श्रु श्रवणे-अप्, श्रवः-मतुप्, इष्ठन्। अतिशयेन श्रवणीयाः प्रख्याताः। धनिष्ठानक्षत्रम्। मर्दलाकृति पञ्चतारात्मकं त्रयोविंशनक्षत्रम् (कुर्वताम्) कुर्वन्तु (सुपुष्टिम्) बहुवृद्धिम् ॥

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    विषय

    'पर्वा अषाढा से श्रविष्ठा' तक

    पदार्थ

    १. (पूर्वा अषाढा) = 'पूर्वा अषाढा' नक्षत्र (मे) = मुझे (अन्नं रासताम्) = अन्न प्रदान करे तथा (देवी) = प्रकाशमय (उत्तरा:) = उत्तरा अषाढाएँ (ऊर्जम्) = बल व प्राणशक्ति को (आवहन्तु) = प्राप्त कराएँ। 'अ-पाढा' [अषह मर्षण] नक्षत्र से काम-क्रोध आदि से अपराभूत होने की प्रेरणा लेता हुआ मैं अन्न का सेवन करूँ। यह अन्न 'बल व प्राणशक्ति' के दृष्टिकोण से ही सेवित हो-स्वाद के दृष्टिकोण से नहीं। २. अब (अभिजित्) = अभिजित् नक्षत्र मुझे 'अभ्युदय व निःश्रेयस के विजय की प्रेरणा देता हुआ (मे पुण्यं रासताम्) = मुझे पुण्य प्राप्त कराए। ('श्रवणः श्रविष्ठाः') = श्रवण व अविष्ठा नक्षत्र मेरे लिए सदा ज्ञान की बातों के श्रवण की प्रेरणा देते हुए (सपुष्टिं कुर्वताम्) = उत्तम पुष्टि करें।

    भावार्थ

    मैं उसी अन्न का सेवन कर जो मुझे काम-क्रोध की ओर न प्रवण करे [न झुकाये] और मेरे लिए बल व प्राणशक्ति को देनेवाला हो। मैं अभ्युदय व नि:श्रेयस का विजय करता हुआ सदा ज्ञान की चर्चाओं का ही श्रवण करूँ।

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    भाषार्थ

    (पूर्वाः) पहिला (अषाढाः) अषाढ़ाकाल (मे) मुझे (अन्नम्) अन्न (रासताम्) देवे। अर्थात् अषाढकाल के प्रथम-भाग में मुझे अन्नप्राप्ति हो। (देव्युत्तराः)१ बल तथा प्राणशक्ति देनेवाली पिछली अषाढ़ाएँ मुझे (ऊर्जम्) बल और प्राणशक्ति (आ वहन्तु) प्राप्त कराएँ। अर्थात् पूर्वाषाढा में अन्न सेवन करने से उत्तराषाढा में बल और प्राणशक्ति प्राप्त हो जाती है। (अभिजित्) अभिजित्-नक्षत्रकाल (मे) मुझे (पुण्यम्) पुण्यकर्म (एव) अवश्य (रासताम्) प्रदान करे। अर्थात् इस काल में नवान्न प्राप्त कर मैं नवान्नेष्टि तथा अन्नदान के पुण्यकर्म अवश्य करूँ। (श्रवणः) श्रवणा-नक्षत्रकाल और (श्रविष्ठाः) श्रविष्ठाओं का काल मेरी (सुपुष्टिम्) उत्तम पुष्टि (कुर्वताम्) करें।

    टिप्पणी

    [रासताम्= अथवा अषाढाः रासन्ताम्। देव्युत्तराः= समस्तपद प्रतीत होता है— देव्यश्च ता उत्तराश्च। मन्त्र में पूर्वाषाढा में अन्नप्राप्ति, उत्तराषाढा में अन्न-सेवनजन्य बल और प्राणशक्ति की प्राप्ति, अभिजित्काल में अन्न के द्वारा किये गये पुण्यकर्मों, तथा श्रवण और श्रविष्ठाकाल में सुपुष्टि का वर्णन हुआ है। श्रविष्ठा को धनिष्ठा भी कहते हैं। श्रविष्ठा=श्रवः अन्ननाम (निघं० २.७), तथा धननाम (निघं० २.१०)। अन्नप्राप्ति द्वारा धन-प्राप्ति होती है।] [१. देवी= देवो दानात्।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Nakshatras, Heavenly Bodies

    Meaning

    Let Purva Ashadha bring me food. Let bright and generous Uttara Ashadha bring me energy. Let Abhijit give me merit and virtue. And let Shravana and Shravishtha bring me good health and noble strength.

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    Translation

    May Pürva Asadha grant me food; may the divine Uttara (Asadha) bring vigour to me. May Abhijit grant me auspiciousness only; may Sravana and Sravistha provide me with good nourishment.

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    Translation

    Let Puravashadha give grains for me and uttarashadhas in splendor give strength and juice in the plants. Let Abhijit provide us with opportunity of performing Yajna and let the Shravana and Shravistha give vigor in the plants and harvest.

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    Translation

    May Purva Ashadha give me food. May brilliant Uttra Ashadha bring me energy and vigour. Let Abhijit give me purity and Shravana and Shravishtha (Dhanushtha) give me good nourishment.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    इस मन्त्र में इन नक्षत्रों का वर्णन है। १८−पूर्वा-अषाढ़ा [यद्वा पूर्वा−आषाढा=पूर्वाषाढा, सूप−आकृति, चार तारापुञ्ज, वीसवाँ नक्षत्र], १९−उत्तरा-अषाढ़ा [यद्वा उत्तरा−आषाढा=उत्तराषाढ़ा, सूप−आकृति, चार तारापुञ्ज, इक्कीसवाँ नक्षत्र], २०-अभिजित् [सब ओर से जीतनेवाला, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के शेष पन्द्रह, दण्ड और श्रवणा नक्षत्र के पहिले चार दण्ड, उन्नीस दण्डवाला तारा विशेष, सिंगाड़े की आकृति, तीन तारापुञ्ज], २१−श्रवणा [यद्वा श्रवण, सुननेवाला वा चलनेवाला, तीर की आकृति, तीन तारापुञ्ज, बाइसवाँ नक्षत्र], २२−श्रविष्ठाएँ [अत्यन्त विख्यात, यद्वा धनिष्ठा−बहुत धनवाली, मृदङ्ग−आकृति, पाँच तारापुञ्ज तेइसवाँ नक्षत्र] ॥ ४−(अन्नम्) जीवनसाधनं भक्षणीयं पदार्थं वा (पूर्वा) बहुवचनस्यैकवचनम्। पूर्वाः। प्रथमभवाः (रासताम्) रासतीति दानकर्मा-निघ० ३।२०। रासृ दाने शब्दे च-लोट्, बहुवचनम्, अदादित्वं छान्दसम्। ददतु (मे) मह्यम् (अषाढाः) नञ्+षह मर्षणे-अण्, टाप्। शूर्पाकृति चतुस्तारात्मकं विंशनक्षत्रम् (ऊर्जम्) पराक्रमम् (देवी) देव्यः। प्रकाशमानाः (उत्तराः) उत्तरे भवाः। उत्तराषाढाः। शूर्पाकृति ताराचतुष्टयात्मकमेकविंशनक्षत्रम् (अभिजित्) अभि+जि जये-क्विप्। उत्तराषाढायाः शेषपञ्चदशदण्डाः श्रवणायाः प्रथमदण्डचतुष्टयम् एतदूनविंशतिदण्डात्मकं नक्षत्रम्, तारकात्रयात्मकं शृङ्गाटकाकृति (मे) मह्यम् (रासताम्) रासृ दाने, भ्वादिः, आत्मनेपदम्। ददातु। प्रयच्छतु (पुण्यम्) शुभम् (एव) अवधारणे (श्रवणः) श्रु गतौ श्रवणे च−ल्यु। शराकृति, तारात्रयात्मकं द्वाविंशनक्षत्रम् (श्रविष्ठाः) श्रु श्रवणे-अप्, श्रवः-मतुप्, इष्ठन्। अतिशयेन श्रवणीयाः प्रख्याताः। धनिष्ठानक्षत्रम्। मर्दलाकृति पञ्चतारात्मकं त्रयोविंशनक्षत्रम् (कुर्वताम्) कुर्वन्तु (सुपुष्टिम्) बहुवृद्धिम् ॥

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