Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 22 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - चन्द्रः छन्दः - एकावसानानिचृद्विषमात्रिपाद्गायत्री सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    1

    चन्द्र॒ यत्ते॒ ऽर्चिस्तेन॒ तं प्रत्य॑र्च॒ यो॑३ ऽस्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    चन्द्र॑ । यत् । ते॒ । अ॒र्चि: । तेन॑ । तम् । प्रति॑ । अ॒र्च॒ । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म:॥२२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चन्द्र यत्ते ऽर्चिस्तेन तं प्रत्यर्च यो३ ऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    चन्द्र । यत् । ते । अर्चि: । तेन । तम् । प्रति । अर्च । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म:॥२२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 22; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    कुप्रयोग के त्याग के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (चन्द्र) हे चन्द्र [चन्द्रलोक !] (यत्) जो (ते) तेरी (अर्चिः) दीपनशक्ति है, (तेन) उससे (तम् प्रति) उस [दोष] पर (अर्च) प्रदीप्त हो, (यः) जो (अस्मान्) हमसे..... मन्त्र १ ॥३॥

    भावार्थ

    मन्त्र १ के समान ॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ५ भुरिग्विषमात्रिपाद्गायत्री।

    पदार्थ

    १,  २,  ३,  ४,  ५  एवं  मन्त्र संख्या के  केवल भावार्थ ही है |

    भावार्थ

    सदा आह्वादमय प्रभु [चन्द्र] अपने तप आदि के द्वारा द्वेष-भावना को दूर करे। राष्ट्र में राजा भी चन्द्र है। इसे अपने आह्लादमय स्वभाव से प्रजा के स्वभाव में भी परिवर्तन करना है। समाज में एक ज्ञानी प्रचारक को भी ज्ञान-प्रसार के साथ अपनी प्रसादमयी मनोवृत्ति से सभी को द्वेष से रहित होने की प्रेरणा देनी है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    [प्राकृतिक चांद की अर्चि: अर्थात ज्वाला है चांद द्वारा प्रतिक्षिप्त रश्मियां; परमेश्वर के सम्बन्ध में अर्चिः अर्थात् ज्वाला है, उसकी "भासा" (यथा "तस्य भासा सर्वमिदं विभाति" (मुण्डक उपनिषद् २।२)।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    द्वेष करने वालों के सम्बन्ध में प्रार्थना ।

    भावार्थ

    हे (चन्द्र) समस्त जगत् के आह्लादक परमात्मन् ! शेष सब पूर्ववत् ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिश्छन्दश्च पूर्ववत् । चन्द्रो देवता । पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Chandra Devata

    Meaning

    O moon, the light ray that is yours, with that cleanse that which hates us and that which we hate to suffer.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O moon, whatever glare (arcis) you have, with that may you glare towards him, who hates us and whom we hate.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let the moon...... etc. like the pervious Hymn. XIX.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O God, the Gladdener of the universe, like the Moon, with Thy Luster of wisdom, make him wise, who hates us, or whom we do not love!

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (চন্দ্র) হে চাঁদ ! (যৎ তে) যে তোমার (অর্চিঃ) জ্বালা/অর্চি/দহনশক্তি রয়েছে (তেন) তা দ্বারা (তং প্রতি অর্চঃ) তাঁকে জ্বালাও/দহন/দগ্ধ/সন্তপ্ত করো। (যঃ অস্মান) যে আমাদের সাথে দ্বেষ করে, এবং (যম্ বয়ম্ দ্বিষ্মঃ) এইজন্য যার প্রতি আমরা প্রেম করিনা।

    टिप्पणी

    [প্রাকৃতিক চাঁদের অর্চি অর্থাৎ জ্বালা(flame) হল চাঁদ দ্বারা প্রতিক্ষিপ্ত রশ্মি; পরমেশ্বরের সম্বন্ধে অর্চিঃ অর্থাত জ্বালা/শিখা হল, "ভাসা" (যথা "তস্য ভাসা সর্বমিদং বিভাতি" (মুণ্ডক উপনিষদ ২।২)।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    मन्त्र विषय

    কুপ্রয়োগত্যাগায়োপদেশঃ

    भाषार्थ

    (চন্দ্র) হে চন্দ্র [চন্দ্রলোক !] (যৎ) যে (তে) তোমার (অর্চিঃ) দীপনশক্তি আছে, (তেন) তা দ্বারা (তম্ প্রতি) সেই [দোষের] ওপর (অর্চ) প্রদীপ্ত হও, (যঃ) যা (অস্মান্) আমাদের প্রতি (দ্বেষ্টি) অপ্রীতি করে, [অথবা] (যম্) যার প্রতি (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) অপ্রীতি করি॥৩॥

    भावार्थ

    মন্ত্র ১ এর সমান ॥৩॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top