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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 22 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 22/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अथर्वा देवता - चन्द्र छन्दः - एकावसानाभुरिग्विषमात्रिपाद्गायत्री सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    1

    चन्द्र॒ यत्ते॒ तेज॒स्तेन॒ तम॑ते॒जसं॑ कृणु॒ यो॑३ ऽस्मान्द्वेष्टि॒ यं व॒यं द्वि॒ष्मः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    चन्द्र॑ । यत् । ते॒ । तेज॑: । तेन॑ । तम् । अ॒ते॒जस॑म् । कृ॒णु॒ । य: । अ॒स्मान् । द्वेष्टि॑ । यम् । व॒यम् । द्वि॒ष्म: ॥२२.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चन्द्र यत्ते तेजस्तेन तमतेजसं कृणु यो३ ऽस्मान्द्वेष्टि यं वयं द्विष्मः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    चन्द्र । यत् । ते । तेज: । तेन । तम् । अतेजसम् । कृणु । य: । अस्मान् । द्वेष्टि । यम् । वयम् । द्विष्म: ॥२२.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 22; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    कुप्रयोग के त्याग के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (चन्द्र) हे चन्द्र [चन्द्रलोक !] (यत्) जो (ते) तेरा (तेजः) तेज है, (तेन) उससे (तम्) उस [दोष] को (अतेजसम्) निस्तेज (कृणु) कर दे, (यः) जो (अस्मान्) हमसे (द्वेष्टि) अप्रिय करे, [अथवा] (यम्) जिससे (वयम्) हम (द्विष्मः) अप्रिय करें ॥५॥

    भावार्थ

    मन्त्र १ के समान ॥५॥

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    विषय

    ५ भुरिग्विषमात्रिपाद्गायत्री।

    पदार्थ

    १,  २,  ३,  ४,  ५  एवं  मन्त्र संख्या के  केवल भावार्थ ही है |

    भावार्थ

    सदा आह्वादमय प्रभु [चन्द्र] अपने तप आदि के द्वारा द्वेष-भावना को दूर करे। राष्ट्र में राजा भी चन्द्र है। इसे अपने आह्लादमय स्वभाव से प्रजा के स्वभाव में भी परिवर्तन करना है। समाज में एक ज्ञानी प्रचारक को भी ज्ञान-प्रसार के साथ अपनी प्रसादमयी मनोवृत्ति से सभी को द्वेष से रहित होने की प्रेरणा देनी है।

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    भाषार्थ

    [चन्द्र द्वारा परमेश्वर ही प्रतीत होता है जोकि निज तेज द्वारा दुष्कर्मी को उसके दुष्कर्म के फलरूप में निस्तेज कर देता है।]

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    विषय

    द्वेष करने वालों के सम्बन्ध में प्रार्थना ।

    भावार्थ

    हे (चन्द्र) समस्त जगत् के आह्लादक परमात्मन् ! शेष सब पूर्ववत् ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिश्छन्दश्च पूर्ववत् । चन्द्रो देवता । पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Chandra Devata

    Meaning

    O moon, the splendour that is yours, with that cleanse that which hates us and that which we hate to suffer.

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    Translation

    O moon, whatever lustre (tejas) you have, with that may you make him lusterless, who hates us and whom we hate.

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    Translation

    Let the moon...... etc. like the pervious Hymn. XIX.

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    Translation

    O God, the Gladdener of the universe like the Moon, with Thy Passionate power, make him, who hates us, or whom we do not love, sober and non-violent.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (চন্দ্র) হে চাঁদ ! (যৎ তে তেজঃ) যে তোমার তেজ রয়েছে, (তেন) তা দ্বারা (তম্) তাঁকে (অতেজসম্) নিস্তেজ (কৃণু) করে দাও/করো (যঃ) যাঁরা/যে (অস্মান্ দ্বেষ্টি) আমাদের সাথে দ্বেষ করে, (যম্) এবং যাঁর সাথে (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) অপ্রীতি করি।

    टिप्पणी

    [চন্দ্র দ্বারা পরমেশ্বরই প্রতীত হয়, যিনি নিজ তেজ দ্বারা দুষ্কর্মীকে তাঁর দুষ্কর্মের ফলরূপে নিস্তেজ করে দেয়।]

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    मन्त्र विषय

    কুপ্রয়োগত্যাগায়োপদেশঃ

    भाषार्थ

    (চন্দ্র) হে চন্দ্র [চন্দ্রলোক !] (যৎ) যে (তে) তোমার (তেজঃ) তেজ আছে, (তেন) তা দ্বারা (তম্) সেই [দোষকে] (অতেজসম্) নিস্তেজ (কৃণু) করো, (যঃ) যা (অস্মান্) আমাদের প্রতি (দ্বেষ্টি) অপ্রীতি করে, [অথবা] (যম্) যার প্রতি (বয়ম্) আমরা (দ্বিষ্মঃ) অপ্রীতি করি ॥৫॥

    भावार्थ

    মন্ত্র ১ এর সমান ॥৫॥

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