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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 120 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 120/ मन्त्र 2
    ऋषिः - देवातिथिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-१२०
    2

    यद्वा॒ रुमे॒ रुश॑मे॒ श्याव॑के॒ कृप॒ इन्द्र॑ मा॒दय॑से॒ सचा॑। कण्वा॑सस्त्वा॒ ब्रह्म॑भि॒ स्तोम॑वाहस॒ इन्द्रा य॑च्छ॒न्त्या ग॑हि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । वा॒ । समे॑ । रुश॑मे । श्याव॑के । कृपे॑ । इन्द्र॑ । मा॒दय॑से । सचा॑ ॥ कण्वा॑स: । त्वा॒ । ब्रह्म॑ऽभि: । स्तोम॑ऽवाहस: । इन्द्र॑ । आ । य॒च्छ॒न्त‍ि॒ । आ । ग॒हि॒ ॥१२०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्वा रुमे रुशमे श्यावके कृप इन्द्र मादयसे सचा। कण्वासस्त्वा ब्रह्मभि स्तोमवाहस इन्द्रा यच्छन्त्या गहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । वा । समे । रुशमे । श्यावके । कृपे । इन्द्र । मादयसे । सचा ॥ कण्वास: । त्वा । ब्रह्मऽभि: । स्तोमऽवाहस: । इन्द्र । आ । यच्छन्त‍ि । आ । गहि ॥१२०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 120; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (यत्) जब (रुमे) ज्ञानी पुरुष में, (रुशमे) हिंसकों के फैंकनेवाले में, (श्यावके) उद्योगी में (वा) और (कृपे) समर्थ में (सचा) नित्य मेल से (मादयसे) तू हर्ष पाता है, [तभी] (इन्द्र) हे इन्द्र [परमात्मन्] (स्तोमवाहसः) बड़ाई के प्राप्त करानेवाले (कण्वासः) बुद्धिमान् लोग (त्वा) तुझको (ब्रह्मभिः) वेदवचनों से (आ यच्छन्ति) अपनी ओर खींचते हैं, (आ गहि) तू आ ॥२॥

    भावार्थ

    परमात्मा स्वभाव से पुरुषार्थियों पर कृपा करता है, इसी से विद्वान् लोग उसे हृदय में वर्तमान जानकर संसार में उन्नति करते हैं ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(यत्) यदा (वा) च (रुमे) अविसिवि०। उ० १।१४४। रुङ् गतिरेषणयोः-मन्, कित्। ज्ञानिनि पुरुषे (रुशमे) रुश हिंसायाम्-क+डुमिञ् प्रक्षेपणे-डप्रत्ययः। हिंसकानां प्रक्षेप्तरि (श्यावके) अ० ।।८। गतिशीले। उद्योगिनि (कृपे) कृपू सामर्थ्ये-क। समर्थे (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (मादयसे) हृष्यसि (सचा) समवायेन (कण्वासः) मेधाविनः (त्वा) (ब्रह्मभिः) वेदवचनैः (स्तोमवाहसः) अ० २–०।९८।११। स्तुतिप्रापकाः (इन्द्र) (आ यच्छन्ति) आनीय यमयन्ति। आकर्षन्ति (आगहि) आगच्छ ॥

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    विषय

    रुम, रुशम, श्यावके, कृप'

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (यत् वा) = या तो (रुमे) = [रु शब्दे]-स्तुतिशब्दों का उच्चारण करनेवाले पुरुष में, या (रुशमे) = [रुश् to kill] स्तुतिशब्दों के उच्चारण के साथ शत्रु-संहार करनेवाले में तथा (श्यावके) = शत्रसंहार के उद्देश्य से ही निरन्तर गतिशील पुरुष में [श्यैङ् गतौ] और (कृपे) = [कृप सामर्थे] शक्तिशाली पुरुष में (रुचा) = समवाय-[मेल]-वाले होते हुए आप मादयसे- इन उपासकों को आनन्दित करते हैं। २. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (स्तोमवाहसः) = स्तुतिसमूहों का धारण करनेवाले (कण्वास:) = बुद्धिमान् लोग (ब्रह्मभिः) = ज्ञानपूर्वक उच्चरित होनेवाली इन स्तुतिवाणियों से त्वा यच्छन्ति आपके प्रति अपने को दे डालते हैं। आगहि-आप इन स्तोताओं को प्राप्त होइए।

    भावार्थ

    प्रभु उन्हें प्राप्त होते हैं जो [१] स्तुतिशब्दों का उच्चारण करते हैं [२] वासनाओं का संहार करते हैं [२] गतिशील हैं तथा [३] शक्तिशाली बनते हैं। स्तोता प्रभु के प्रति अपना अर्पण करते हैं-प्रभु इन्हें प्राप्त होते हैं। प्रभु को प्राप्त करनेवाला यह स्तोता अतिशयेन उत्कृष्ट जीवनवाला 'वसिष्ठ' बनता है। यही अगले सूक्त का ऋषि है।

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    भाषार्थ

    (यद् वा) तथा (इन्द्र) हे परमेश्वर! आप (रुमे) स्तुति-शब्दों की सम्पत्तिवाले में, (रुशमे) स्तुति-शब्दोच्चारण जिसमें शान्त हो गया है, और जो अब मन में आपका स्तुतिगान करता है उस में, (श्यावके) जो गतिशील है, और अभ्यासमार्ग में संवेगी है उस में, (कृपे) जो कृपाशील और दयालु है उस में, (सचा) अर्थात् इन सबके साथ (मादयसे) परस्पर मिलकर अर्थात् आप उपासक के भक्तिरस द्वारा प्रसन्न होते, तथा आप उपासक को अपने आनन्दरस द्वारा प्रसन्न करते हैं,। परन्तु तो भी (इन्द्र) हे परमेश्वर! (स्तोमवाहसः) अपनी स्तुतियों द्वारा अपने जीवनों में जो आपका वहन करते है, अर्थात् आपके द्वारा प्रेरणाओं से जीवनयात्रा करते हैं, ऐसे जो (कण्वासः) मेधावी उपासक (ब्रह्मभिः) ब्रह्मसम्बन्धी स्तुतियों द्वारा (त्वा) आपको (आ यच्छन्ति) पूर्णतया नियन्त्रित कर लेते हैं, स्वाभिमुख कर लेते हैं। ऐसे उपासक ही आपसे प्रार्थना कर सकते हैं कि (आ गहि) आप आइए, हमारे हृदयों में सदा निवास करते रहिए।

    टिप्पणी

    [रुमे=रु (शब्दे)+मा (लक्ष्मी)। रुशमे=रु (शब्दे)+शम (शान्त)। श्यावके=श्यैङ् गतौ।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    And since, O lord Indra, you go to the celebrants, illustrious, child-like innocent and the humble and kind alike, sit with them, socialise and enjoy, so the dedicated admirers and learned men of vision and wisdom offer homage and reverence, exalt you with sacred hymns and say : Come, O lord, and accept our tributes and homage.

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    Translation

    O mighty Divinity, when you rejoice unto learned man unto the man smiting violence, unto man of great preseverance and unto man of capability, the learned men bringing all praises for you attract you with vedic hymns, You came.

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    Translation

    O mighty Divinity, when you rejoice unto learned man unto the man smiting violence, unto man of great perseverance and unto man of capability, the learned men bringing all praises for you attract you with vedic hymns, You came.

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    Translation

    O Brave, Adorable God, we, like the unmilked milch cows to the milk-man, bow to Thee, Who art the Ruler, Brilliant like the sun, of this world, moving and immobile, or animate and inanimate.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(यत्) यदा (वा) च (रुमे) अविसिवि०। उ० १।१४४। रुङ् गतिरेषणयोः-मन्, कित्। ज्ञानिनि पुरुषे (रुशमे) रुश हिंसायाम्-क+डुमिञ् प्रक्षेपणे-डप्रत्ययः। हिंसकानां प्रक्षेप्तरि (श्यावके) अ० ।।८। गतिशीले। उद्योगिनि (कृपे) कृपू सामर्थ्ये-क। समर्थे (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (मादयसे) हृष्यसि (सचा) समवायेन (कण्वासः) मेधाविनः (त्वा) (ब्रह्मभिः) वेदवचनैः (स्तोमवाहसः) अ० २–०।९८।११। स्तुतिप्रापकाः (इन्द्र) (आ यच्छन्ति) आनीय यमयन्ति। आकर्षन्ति (आगहि) आगच्छ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র! [পরম্ ঐশ্বর্যবান্ পরমাত্মা] (যৎ) যখন (রুমে) জ্ঞানী পুরুষের মধ্যে, (রুশমে) হিংসুকদের পতনকারীর মধ্যে, (শ্যাবকে) উদ্যোগীর মধ্যে (বা) এবং (কৃপে) সমর্থের মধ্যে (সচা) নিত্য মিলনের দ্বারা (মাদয়সে) তুমি হর্ষ প্রাপ্ত হও, [তখন] (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র [পরমাত্মন্] (স্তোমবাহসঃ) স্তুতি প্রাপক (কণ্বাসঃ) বুদ্ধিমানগণ (ত্বা) তোমাকে (ব্রহ্মভিঃ) বেদবাণীর দ্বারা (আ যচ্ছন্তি) নিজের দিকে আকর্ষণ/আকর্ষিত করে, (আ গহি) তুমি এসো ॥২॥

    भावार्थ

    স্বভাবতঃই পরমাত্মা পুরুষার্থীদের/প্রচেষ্টাকারীদের উপর কৃপা করেন, এই কারণে বিদ্বানগণ পরমাত্মাকে হৃদয়ে বর্তমান জেনে সংসারে/জগতে উন্নতি করে ॥২॥

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    भाषार्थ

    (যদ্ বা) তথা (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! আপনি (রুমে) স্তুতি-শব্দের সম্পত্তিশালীর মধ্যে, (রুশমে) স্তুতি-শব্দোচ্চারণ যার মধ্যে শান্ত হয়ে গেছে, এবং যে এখন মনের মধ্যে আপনার স্তুতিগান করে তাঁর মধ্যে, (শ্যাবকে) যে গতিশীল, এবং অভ্যাসমার্গে সংবেগী তাঁর মধ্যে, (কৃপে) যে কৃপাশীল এবং দয়ালু তাঁর মধ্যে, (সচা) অর্থাৎ এই সকলের সাথে (মাদয়সে) পরস্পর মিলিতভাবে অর্থাৎ আপনি উপাসকের ভক্তিরস দ্বারা প্রসন্ন হন, তথা আপনি উপাসককে নিজের আনন্দরস দ্বারা প্রসন্ন করেন। কিন্তু তবুও (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (স্তোমবাহসঃ) নিজের স্তুতি দ্বারা নিজের জীবনে যে আপনার বহন করে, অর্থাৎ আপনার দ্বারা প্রেরণা প্রাপ্ত হয়ে জীবনযাত্রা করে, এমন যে (কণ্বাসঃ) মেধাবী উপাসক (ব্রহ্মভিঃ) ব্রহ্মসম্বন্ধী স্তুতি দ্বারা (ত্বা) আপনাকে (আ যচ্ছন্তি) পূর্ণরূপে নিয়ন্ত্রিত করে নেয়, স্বাভিমুখ করে নেয়। এমন উপাসকই আপনার প্রতি প্রার্থনা করতে পারে যে, (আ গহি) আপনি আসুন, আমাদের হৃদয়ে সদা নিবাস করতে থাকুন।

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