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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 132 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 132/ मन्त्र 13
    ऋषिः - देवता - प्रजापतिः छन्दः - दैवी जगती सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
    1

    त्रीण्यु॒ष्ट्रस्य॒ नामा॑नि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रीणि । उ॒ष्ट्र॒स्य॒ । नामा॑नि ॥१३२.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रीण्युष्ट्रस्य नामानि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्रीणि । उष्ट्रस्य । नामानि ॥१३२.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 132; मन्त्र » 13
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमात्मा के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (उष्ट्रस्य) प्रतापी [परमात्मा] के (त्रीणि) तीन (नामानि) नाम ॥१३॥

    भावार्थ

    परमात्मा अपने अनन्त गुण, कर्म, स्वभाव के कारण नामों की गणना में नहीं आ सकता है, जो मनुष्य उसके केवल “हिरण्य” आदि नाम बताते हैं, वे बालक के समान थोड़ी बुद्धिवाले हैं ॥१३-१६॥

    टिप्पणी

    पण्डित सेवकलाल कृष्णदास संशोधित पुस्तक में मन्त्र १३-१६ का पाठ इस प्रकार है ॥ त्रीण्युष्ट्र॑स्य॒ नामा॑नि ॥१३–॥ (उष्ट्रस्य) प्रतापी [परमात्मा] के (त्रीणि) तीन (नामानि) नाम हैं ॥१३॥१३−(त्रीणि) त्रिसंख्याकानि (उष्ट्रस्य) उषिखनिभ्यां कित्। उ० ४।१६२। उष दाहे वधे च-ष्ट्रन् कित्। प्रतापिनः परमेश्वरस्य (नामानि) संज्ञाः ॥

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    विषय

    उष्ट्र के तीन नाम [शत्रु-नायक बल]

    पदार्थ

    १. प्रकृति के बन्धनों में न फंसनेवाले (उष्ट्रस्य) = वासनाओं को [उष दाहे] दग्ध करनेवाले के (त्रीणि) = तीन (नामानि) = नाम है, अथवा शत्रुओं को झुकानेवाले [नम प्रालीभावे] तीन बल हैं। एक बल 'काम' का पराजय करता है, दूसरा 'क्रोध' का और तीसरा 'लोभ' का। इसप्रकार तीनों शत्रुओं को विनष्ट करके यह स्वर्गीय सुख का अनुभव करता है। २. प्रभु ने इति (अब्रवीत्) = ऐसा कहा कि (एके) = [same] ये सब सम [समान] हैं। ये बल अलग-अलग नहीं हैं। (हिरण्यम्) = [हिरण्यं वै ज्योतिः] ये बल हिरण्य, अर्थात् ज्योतिरूप है। ज्ञान ही वह बल है जिसमें ये सब शत्रु भस्म हो जाते हैं। ३. ये (शिशव:) = [शो तनूकरणे] जो अपनी बुद्धि को सूक्ष्म बनानेवाले हैं, वे कहते हैं कि ये बल (वा) = निश्चय से (द्वौ) = दो भागों में बटे हुए हैं-शरीर में इसका स्वरूप 'क्षत्र' है, मस्तिष्क में 'ब्रह्म'। ये ब्रह्म और क्षत्र मिलकर सब शत्रुओं को भस्म कर देते हैं।

    भावार्थ

    वासनाओं को दग्ध करनेवाला व्यक्ति तीन शत्रुओं को नमानेवाले बलों को प्राप्त करता है। ये सब बल समान रूप-'हिरण्य' [ज्योति] ही हैं। अथवा ये 'ब्रह्म व क्षत्र' के रूप में हैं।

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    भाषार्थ

    (उष्ट्रस्ट) सांसारिक-दाहों अर्थात् ताप-सन्तापों से त्राण करनेवाले, बचानेवाले परमेश्वर के (त्रीणि) तीन (नामानि) नाम हैं।

    टिप्पणी

    [उष्ट्र=उष् (दाहे)+त्र (त्राणकर्त्ता)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    Three are the names of the saviour from sufferings of body, mind and soul.

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    Translation

    There are three names of fire which possesses burning and heating power (Ushtra).

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    Translation

    There are three names of fire which possesses burning and heating power (Ushtra).

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    Translation

    “One is the splendorous souls” so says the learned person.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    पण्डित सेवकलाल कृष्णदास संशोधित पुस्तक में मन्त्र १३-१६ का पाठ इस प्रकार है ॥ त्रीण्युष्ट्र॑स्य॒ नामा॑नि ॥१३–॥ (उष्ट्रस्य) प्रतापी [परमात्मा] के (त्रीणि) तीन (नामानि) नाम हैं ॥१३॥१३−(त्रीणि) त्रिसंख्याकानि (उष्ट्रस्य) उषिखनिभ्यां कित्। उ० ४।१६२। उष दाहे वधे च-ष्ट्रन् कित्। प्रतापिनः परमेश्वरस्य (नामानि) संज्ञाः ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমাত্মগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (উষ্ট্রস্য) প্রতাপীর [পরমাত্মার] (ত্রীণি) তিন (নামানি) নাম ॥১৩২.১৩॥

    भावार्थ

    পরমাত্মার অনন্ত গুণ, কর্ম, স্বভাবের কারণে নাম দিয়ে গণনা করা যায় না, যে সব লোকেরা পরমেশ্বরের কেবল "হিরণ্য" আদি নাম বলে, তাঁরা শিশুর মতোই অল্প বুদ্ধিসম্পন্ন হয়॥১৩-১৬॥

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    भाषार्थ

    (উষ্ট্রস্ট) সাংসারিক-দাহ অর্থাৎ তাপ-সন্তাপ থেকে ত্রাণকারী, উদ্ধারকারী পরমেশ্বরের (ত্রীণি) তিন (নামানি) নাম আছে।

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