अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 138/ मन्त्र 3
कण्वाः॒ इन्द्रं॒ यदक्र॑त॒ स्तोमै॑र्य॒ज्ञस्य॒ साध॑नम्। जा॒मि ब्रु॑वत॒ आयु॑धम् ॥
स्वर सहित पद पाठकण्वा॑: । इन्द्र॑म् । यत् । अक्र॑त् । स्तोमै॑: । य॒ज्ञस्य॑ । साध॑नम् ॥ जा॒मि । ब्रु॒व॒ते॒ । आयु॑धम् ॥१३८.३॥
स्वर रहित मन्त्र
कण्वाः इन्द्रं यदक्रत स्तोमैर्यज्ञस्य साधनम्। जामि ब्रुवत आयुधम् ॥
स्वर रहित पद पाठकण्वा: । इन्द्रम् । यत् । अक्रत् । स्तोमै: । यज्ञस्य । साधनम् ॥ जामि । ब्रुवते । आयुधम् ॥१३८.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(कण्वाः) बुद्धिमानों ने (यत्) जब (इन्द्रम्) इन्द्र [महाप्रतापी मनुष्य] को (स्तोमैः) उत्तम गुणों के व्याख्यानों से (यज्ञस्य) यज्ञ [देवपूजा, संगतिकरण और दान] का (साधनम्) सिद्ध करनेवाला (अकृत) बनाया है, [तभी उस को] (आयुधम्) मनुष्यों का पोषण करनेवाला (जामि) बन्धु (ब्रुवते) कहते हैं ॥३॥
भावार्थ
बुद्धिमान् लोग प्रतापी गुणी पुरुष को प्रधान बनाकर प्रजा को पालें ॥३॥
टिप्पणी
३−(कण्वाः) मेधाविनः-निघ० ३।१। (इन्द्रम्) महाप्रतापिनं मनुष्यम् (यत्) यदा (अकृत) करोतेर्लुङि रूपम्। अकृषत (स्तोमैः) स्तुत्यगुणानां व्याख्यानैः (यज्ञस्य) देवपूजासंगतिकरणदानव्यवहारस्य (साधनम्) साधयितारं निष्पादकम् (जामि) वसिवपियमि०। उ० ४।१२। जमु अदने-इञ्। जामिं बन्धुम् (ब्रुवते) कथयन्ति (आयुधम्) आयुधो मनुष्यनाम-निघ० २।३। मनुष्याणां पोषकम् ॥
विषय
प्रभु संरक्षण व आयुध-वैयर्थ्य
पदार्थ
१. (कण्वा:) = मेधावी पुरुष (यत्) = जब (इन्द्रम्) = सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले प्रभु को (स्तोमैः) = स्तुति-समूहों के द्वारा (यज्ञस्य साधनम्) = अपने सब उत्तम कर्मों का सिद्ध करनेवाला (अक्रत) = कर लेते हैं तब वे (आयुधम्) = इन बाह्य अस्त्र-शस्त्रों को (जामि ब्रुवते) = व्यर्थ ही कहते हैं। २. प्रभु जब रक्षक हैं तो इन अस्त्रों की बहुत उपयोगिता नहीं रह जाती। स्पेन ने आरमेडा द्वारा जब इंग्लैण्ड पर आक्रमण किया तो आँधी-तूफान के झोंको से उसके तितर-बितर हो जाने पर रानी एलिाबेथ ने ठीक ही कहा था कि 'प्रभु ने फूंक मारी और आरमेडा विनष्ट हो गया। प्रभु के रक्षण के प्रकार अद्भुत ही हैं। प्रभु-विश्वासी प्रयत्न में कमी नहीं रखता और प्रभु उसे अवश्य ही सफलता प्राप्त कराते हैं।
भावार्थ
प्रभु का संरक्षण होने पर सब बाह्य अस्त्र-शस्त्र व्यर्थ हो जाते हैं। यह प्रभु का भक्त प्लुतगतिवाला-आलस्यशून्य होने से 'शश' होता है और वासनाओं के विक्षेप से 'कर्ण' [कृ विक्षेपे] कहलाता है। इस 'शशकर्ण' ऋषि के ही अगले चार सूक्त हैं -
भाषार्थ
(कण्वाः) मेधावी उपासक, (यज्ञस्य) उपासना-यज्ञ के (साधनम्) साधक परमेश्वर को, (यत्) जब (स्तोमैः) स्तुतिगानों द्वारा, (अक्रत) अपना बना लेते हैं, तब वे (ब्रुवत) कहते हैं कि (आयुधम्) कामादि-शत्रुओं के विनाश के लिए अन्य उपाय (जामि) व्यर्थ हैं।
टिप्पणी
[कण्वाः=मेधाविनः (निघं০ ३.१५)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
When the wise sages with their adorations rise to Indra and surrender to him as their yajnic destination, they exclaim: Verily the lord of thunder is our brother, father, mother, sister, everything.
Translation
When the learned men with hymns make the king accomplisher of Yajna. They tell the weapon as useless (as their words are arms).
Translation
When the learned men with hymns make the king accomplisher of Yajna. They tell the weapon as useless (as their words are arms).
Translation
When the wise and the intelligent persons enable the powerful king to be a means of carrying out the state-affairs for the public good, there ishardly any necessity to keep or use weapons, (i.e., the administration becomes so efficient that all the people feel quite safe and well-protected and find arms unnecessary).
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(कण्वाः) मेधाविनः-निघ० ३।१। (इन्द्रम्) महाप्रतापिनं मनुष्यम् (यत्) यदा (अकृत) करोतेर्लुङि रूपम्। अकृषत (स्तोमैः) स्तुत्यगुणानां व्याख्यानैः (यज्ञस्य) देवपूजासंगतिकरणदानव्यवहारस्य (साधनम्) साधयितारं निष्पादकम् (जामि) वसिवपियमि०। उ० ४।१२। जमु अदने-इञ्। जामिं बन्धुम् (ब्रुवते) कथयन्ति (आयुधम्) आयुधो मनुष्यनाम-निघ० २।३। मनुष्याणां पोषकम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(কণ্বাঃ) বুদ্ধিমানগণ (যৎ) যখন (ইন্দ্রম্) ইন্দ্রকে [মহাপ্রতাপী মনুষ্যকে] (স্তোমৈঃ) উত্তম গুণসমূহের ব্যাখ্যা দ্বারা (যজ্ঞস্য) যজ্ঞের [দেবপূজা, সঙ্গতিকরণ এবং দানের] (সাধনম্) সিদ্ধিদাতা (অকৃত) করে, [তখনই তাঁকে] (আয়ুধম্) মানুষের পোষণকারী (জামি) বন্ধু (ব্রুবতে) বলা হয় ॥৩॥
भावार्थ
বুদ্ধিমানগণ প্রতাপী গুণী পুরুষকে প্রধান করে প্রজাদের লালন করুক ॥৩॥
भाषार्थ
(কণ্বাঃ) মেধাবী উপাসক, (যজ্ঞস্য) উপাসনা-যজ্ঞের (সাধনম্) সাধক পরমেশ্বরকে, (যৎ) যখন (স্তোমৈঃ) স্তুতিগান দ্বারা, (অক্রত) আপন করে নেয়, তখন সে (ব্রুবত) বলে, (আয়ুধম্) কামাদি-শত্রুদের বিনাশের জন্য অন্য উপায় (জামি) ব্যর্থ।
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