अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 36/ मन्त्र 6
अ॒या ह॒ त्यं मा॒यया॑ वावृधा॒नं म॑नो॒जुवा॑ स्वतवः॒ पर्व॑तेन। अच्यु॑ता चिद्वीडि॒ता स्वो॑जो रु॒जो वि दृ॒ढा धृ॑ष॒ता वि॑रप्शिन् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒या । ह॒ । त्यम् । मा॒यया॑ । व॒वृ॒धा॒नम् । म॒न॒:ऽजुवा॑ । स्व॒ऽत॒व॒: । पर्व॑तेन ॥ अच्यु॑ता । चि॒त् । वी॒लि॒ता । सु॒ऽओ॒ज॒: । रु॒ज: । वि । दृ॒ह्ला । धृ॒ष॒ता । वि॒र॒प्शि॒न् ॥३६.६॥
स्वर रहित मन्त्र
अया ह त्यं मायया वावृधानं मनोजुवा स्वतवः पर्वतेन। अच्युता चिद्वीडिता स्वोजो रुजो वि दृढा धृषता विरप्शिन् ॥
स्वर रहित पद पाठअया । ह । त्यम् । मायया । ववृधानम् । मन:ऽजुवा । स्वऽतव: । पर्वतेन ॥ अच्युता । चित् । वीलिता । सुऽओज: । रुज: । वि । दृह्ला । धृषता । विरप्शिन् ॥३६.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(स्वतवः) हे अपने बलवाले ! (स्वोजः) हे बड़े पराक्रमवाले ! (विरप्शिन्) हे महागुणी पुरुष ! (अया) इस (ह) ही (मायया) [अपनी] बुद्धि और (मनोजुवा) मन के समान वेग के साथ (पर्वतेन) पहाड़ [के तुल्य दृढ़ हथियार] से और (धृषता) ढीठपन से (त्यम्) उस (वावृधानम्) बढ़ते हुए [वैरी] को और (अच्युता) न हिलनेवाले, और (वीडिता) ठहराऊ और (दृढा) दृढ़ [पदार्थों] को (चित्) भी (वि रुजः) तूने चूर-चूर कर दिया है ॥६॥
भावार्थ
जो स्त्री पुरुष बड़े-बड़े विघ्नों और कष्टों को सह सकें, वे ही गृहस्थाश्रम आदि बड़े-बड़े काम चला सकते हैं ॥६॥
टिप्पणी
६−(अया) अनया (ह) एव (त्यम्) तम् (मायया) प्रज्ञया (वावृधानम्) वर्धमानम् (मनोजुवा) जु गतौ-क्विप्। मनोवद् वेगेन (स्वतवः) तवो-बलम्-निघ०२।९। हे स्वकीयबलयुक्त (पर्वतेन) शैलतुल्यदृढशस्त्रेण (अच्युता) च्युङ् गतौ-क्त। अचेष्टायमानानि (चित्) अपि (वीडिता) वीडयतिः संस्तम्भकर्मा-निरु०।१६। संस्तभितानि। स्थिराणि (स्वोजः) हे महापराक्रमिन् (रुजः) अरुजः। भग्नवानसि (वि) विशेषेण (दृढा) दृढानि वस्तूनि (धृषता) संश्चत्तृपद्वेहत्। उ०२।८। ञिधृषा प्रागल्भ्ये-अति प्रत्ययः। प्रागल्भ्येन (विरप्शिन्) अ०।२९।१३। हे महागुणिन् ॥
विषय
प्रभु-स्तवन व वनविनाश
पदार्थ
१. हे (स्वतव:) = स्वायत्तबल ! स्वाधीन बलवाले-किसी और से शक्ति को न प्राप्त करनेवाले प्रभो! आप (त्यम्) = उस (ह) = निश्चय से (अया मायया) = इस माया के द्वारा (वावृधानम्) = खूब बढ़ते हुए-संसार के आकर्षणों से वृद्धि को प्राप्त करते हुए वृत्र को-ज्ञान की आवरणभूत वासना को (मनोजुवा) = मन को प्रेरित करनेवाले (पर्वतेन) = [पर्व पूरणे] अपनी न्यूनताओं को दूर करने व पूरण के भाव से (विरूज:) = विनष्ट करते हो। जिस किसी के हृदय में अपने पूरण की भावना का विकास हो जाता है, वह फिर वासना का शिकार नहीं होता। २. हे (स्वोज:) = शोभन बलवाले (विरप्शिन्) = महान् प्रभो! आप (अच्युता चित्) = दूसरों से च्युत न करने योग्य (वीढिता) = बड़ी दृढ़, प्रबल दुढा-स्थिर भी शत्रुओं की पुरियों की (धृषता) = शत्रुधर्षक शक्ति से (विरुजः) = विदीर्ण कर देते हैं।
भावार्थ
प्रभु ही वस्तुत: हमारे मनों में पूरण की भावना को पैदा करके हमें संसारमाया में फँसने से बचाते हैं। प्रभु ही आसुरभावों को विनष्ट करते हैं। काम-क्रोध-लोभ' की नगरियों का विनाश प्रभु ही करते हैं।
भाषार्थ
(मनोजुवा) मनों में प्रेरणाएँ देनेवाली (अया मायया) इस प्रज्ञामयी वेदवाणी द्वारा, (त्यम्) उस प्रजाजन की (वावृधानम्) वृद्धि करते हुए, तथा (पर्वतेन) पर्वत के सदृश सुदृढ़ (स्वतवः) निज बल से सम्पन्न परमेश्वर के (पृछन्ती, मन्त्र ५) सम्बन्ध में प्रश्न करती हुई वेदवाणी कहती है कि (स्वोजः) हे निज ओजवाले! (विरप्शिन्) हे महान्! आपने (धृषता) अपने पराभवकारी पराक्रम द्वारा, (अच्युता) न च्युत होनेवाले (दृळ्हा चित्) सुदृढ़ लोक-लोकान्तरों को भी, (वीळिता) कम्पित कर दिया है, और (विरुजः) उनको मग्न कर दिया है [महा प्रलय में।]
टिप्पणी
[माया=प्रज्ञा (निघं০ ३.९)। तवः=बल (निघं০ २.९)। वीलिता=वि+इर् (गतौ; कम्पते)+इट्+क्त।]
इंग्लिश (4)
Subject
Indr a Devata
Meaning
O lord of your own essential strength and splendour, divine and exuberant, with this thunder force of yours fast as mind, imperishable and indomitable, pray shatter that stronghold of evil, growing by illusion firmly fixed and even reinforced by deceptive reason.
Translation
O self-powered and self-refulgent, moritorioys Almighty God, you through your direct skill and Parvata, the thunder-bold which is as swift mind, render into pieces the clouds which do not tend to pour, which are strong and firm.
Translation
O self-powered and self-refulgent, moritorioys Almighty God, you through your direct skill and Parvata, the thunder-bold which is as swift mind, render into pieces the clouds which do not tend to pour, which are strong and firm.
Translation
O mighty king, relying on your own power and valour completely crush the progressing foe with deadly weapons, moving swiftly with the speed of mind and with such dexterity, as shatters the unshakable and firm forces and fortifications of the enemy to smithereens with overwhelming power.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६−(अया) अनया (ह) एव (त्यम्) तम् (मायया) प्रज्ञया (वावृधानम्) वर्धमानम् (मनोजुवा) जु गतौ-क्विप्। मनोवद् वेगेन (स्वतवः) तवो-बलम्-निघ०२।९। हे स्वकीयबलयुक्त (पर्वतेन) शैलतुल्यदृढशस्त्रेण (अच्युता) च्युङ् गतौ-क्त। अचेष्टायमानानि (चित्) अपि (वीडिता) वीडयतिः संस्तम्भकर्मा-निरु०।१६। संस्तभितानि। स्थिराणि (स्वोजः) हे महापराक्रमिन् (रुजः) अरुजः। भग्नवानसि (वि) विशेषेण (दृढा) दृढानि वस्तूनि (धृषता) संश्चत्तृपद्वेहत्। उ०२।८। ञिधृषा प्रागल्भ्ये-अति प्रत्ययः। प्रागल्भ्येन (विरप्शिन्) अ०।२९।१३। हे महागुणिन् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(স্বতবঃ) হে নিজস্ব শক্তিযুক্ত ! (স্বোজঃ) হে পরাক্রমী/পরাক্রমশালী ! (বিরপ্শিন্) হে মহাগুণী পুরুষ! (অয়া) এই (হ) ই (মায়যা) [নিজের] বুদ্ধি ও (মনোজুবা) মন সমান বেগের সাথে (পর্বতেন) পহাড় [তুল্য দৃঢ় অস্ত্র] দ্বারা এবং (ধৃষতা) ধৃষ্টতা/প্রগল্ভতা দ্বারা (ত্যম্) সেই (বাবৃধানম্) বর্ধমান [শত্রুকে] এবং (অচ্যুতা) অচ্যুত, ও (বীডিতা) স্থির এবং (দৃঢা) দৃঢ় [পদার্থসমূহকে] (চিৎ) ও (বি রুজঃ) তুমি চূর্ণ বিচূর্ণ করেছো ॥৬॥
भावार्थ
যে স্ত্রী পুরুষ বড় বড় বিঘ্ন এবং কষ্টসমূহ সহ্য করতে পারে, তাঁরাই গৃহস্থাশ্রমআদি বড় বড় কর্ম সম্পাদন করতে পারে ॥৬॥
भाषार्थ
(মনোজুবা) মনের মধ্যে প্রেরণা প্রদানকারী (অয়া মায়যা) এই প্রজ্ঞাময়ী বেদবাণী দ্বারা, (ত্যম্) সেই প্রজাদের (বাবৃধানম্) বৃদ্ধি করে, তথা (পর্বতেন) পর্বতের সদৃশ সুদৃঢ় (স্বতবঃ) নিজ বল দ্বারা সম্পন্ন পরমেশ্বরের (পৃছন্তী, মন্ত্র ৫) সম্বন্ধে প্রশ্ন করে বেদবাণী বলে, (স্বোজঃ) হে নিজ তেজযুক্ত! (বিরপ্শিন্) হে মহান্! আপনি (ধৃষতা) নিজের পরাভবকারী পরাক্রম দ্বারা, (অচ্যুতা) অচ্যুত (দৃল়্হা চিৎ) সুদৃঢ় লোক-লোকান্তরকেও, (বীল়িতা) কম্পিত করেছেন, এবং (বিরুজঃ) সেগুলোকে মগ্ন করেছেন [মহা প্রলয়ে।]
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