अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 39/ मन्त्र 2
ऋषिः - गोषूक्तिः, अश्वसूक्तिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
सूक्तम् - सूक्त-३९
2
व्यन्तरि॑क्षमतिर॒न्मदे॒ सोम॑स्य रोच॒ना। इन्द्रो॒ यदभि॑नद्व॒लम् ॥
स्वर सहित पद पाठवि । अ॒न्तरि॑क्षम् । अ॒ति॒र॒त् । मदे॑ । सोम॑स्य । रो॒च॒ना ॥ इन्द्र॑: । यत् । अभि॑नत् । व॒लम् ॥३९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
व्यन्तरिक्षमतिरन्मदे सोमस्य रोचना। इन्द्रो यदभिनद्वलम् ॥
स्वर रहित पद पाठवि । अन्तरिक्षम् । अतिरत् । मदे । सोमस्य । रोचना ॥ इन्द्र: । यत् । अभिनत् । वलम् ॥३९.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
परमेश्वर की उपासना का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] ने (सोमस्य) ऐश्वर्य के (मदे) आनन्द में (रोचना) प्रीति के साथ (अन्तरिक्षम्) आकाश को (वि अतिरत्) पार किया है, (यत्) जब कि उसने (वलम्) हिंसक [विघ्न] को (अभिनत्) तोड़ डाला ॥२॥
भावार्थ
सबसे महान् और पूजनीय परमात्मा की उपासना से सब मनुष्य उन्नति करें ॥२॥
टिप्पणी
मन्त्र २- आचुके हैं-अ०२०।२८।१-४॥२−मन्त्राः २- व्याख्याताः-अ०२०।२८।१-४॥
विषय
सोमस्य मदे
पदार्थ
१. (इन्द्रः) = एक जितेन्द्रिय पुरुष (सोमस्य मदे) = सोम-रक्षण से जनित उल्लास के होने पर (अन्तरक्षिम्) = हृदयान्तरिक्ष को (रोचना) = ज्ञानदीप्यों (व्यतिरत्) = बढ़ाता है। सुरक्षित सोम ज्ञानानि का ईधन बनता है और हृदय ज्ञान के प्रकाश से दीस हो उठता है। २. यह सब तब होता है (यत्) = जब (इन्द्र:) = वे शत्रुविद्रावक प्रभु (वलम्) = ज्ञान की आवरणभूत वासना को (अभिनत्) = विदीर्ण कर देते हैं।
भावार्थ
प्रभु-कृपा से हमारी वासना विनष्ट हो और हम सोम का रक्षण करते हुए हृदयान्तरिक्ष में ज्ञानदीप्ति का अनुभव करें।
भाषार्थ
(इन्द्रः) परमेश्वर ने (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष को (वि अतिरत्) विशेषरूप में फैलाया है, और द्युलोक में (रोचना) चमकते सूर्य, नक्षत्र, तारागणों को फैलाया है, तथा (सोमस्य मदे) भक्तिरस से प्रसन्न होकर (यत् वलम्) जो मेरा अज्ञानावरण था, उसका (अभिनत्) भेदन परमेश्वर ने किया है। [रोचना=रोचनानि।]
इंग्लिश (4)
Subject
lndra Devata
Meaning
When Indra, lord omnipotent and blissful, eliminates all obstructions and negativities from our paths of progress, then we see the entire space in existence shines with light and overflows with the joy of soma bliss.
Translation
When Almighty Divinity pierces the overcasting cloud spreads the mid region in the delight of Soma, vital vigour which shines throughout.
Translation
When Almighty Divinity pierces the overcastting cloud spreads the mid-region in the delight of Soma, vital vigor which shines throughout.
Translation
When the wind disperses the darkening cloud, the brilliant rays of light pervade the atmosphere in the very ecstasy of Soma.
Footnote
"Bala' is a cloud and not a 'demon' of that name as interpreted by Griffith.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
मन्त्र २- आचुके हैं-अ०२०।२८।१-४॥२−मन्त्राः २- व्याख्याताः-अ०२०।२८।१-४॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পরমেশ্বরোপাসনোপদেশঃ
भाषार्थ
(ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [পরম ঐশ্বর্যবান পরমাত্মা] (সোমস্য) ঐশ্বর্যের (মদে) আনন্দে (রোচনা) প্রীতিপূর্বক (অন্তরিক্ষম্) আকাশকে (বি অতিরৎ) অতিক্রম করেছেন, (যৎ) যখন তিনি (বলম্) হিংসককে [বিঘ্ন]কে (অভিনৎ) বিদারিত করেছেন ॥২॥
भावार्थ
মহান ও পূজনীয় পরমেশ্বরের উপাসনা দ্বারা সকল মনুষ্য উন্নতি করে/করুক ॥২॥ মন্ত্র আছে-২০।২৮।১-৪।
भाषार्थ
(ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর (অন্তরিক্ষম্) অন্তরিক্ষকে (বি অতিরৎ) বিশেষরূপে বিস্তারিত করেছেন, এবং দ্যুলোকে (রোচনা) জাজ্বল্যমান সূর্য, নক্ষত্র, তারাগণ বিস্তৃত করেছেন, তথা (সোমস্য মদে) ভক্তিরস দ্বারা প্রসন্ন হয়ে (যৎ বলম্) যা আমার অজ্ঞানাবরণ ছিল, উহার (অভিনৎ) ভেদন পরমেশ্বর করেছেন। [রোচনা=রোচনানি।]
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal