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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 57 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 57/ मन्त्र 10
    ऋषिः - गृत्समदः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-५७
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    इ॑न्द्र॒ आशा॑भ्य॒स्परि॒ सर्वा॑भ्यो॒ अभ॑यं करत्। जेता॒ शत्रू॒न्विच॑र्षणिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑: । आशा॑भ्य: । परि॑ । सर्वा॑भ्य:। अभ॑यम् । क॒र॒त् ॥ जेता॑ । शत्रू॑न् । विच॑र्षणि: ॥५७.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्र आशाभ्यस्परि सर्वाभ्यो अभयं करत्। जेता शत्रून्विचर्षणिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र: । आशाभ्य: । परि । सर्वाभ्य:। अभयम् । करत् ॥ जेता । शत्रून् । विचर्षणि: ॥५७.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 57; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    १-१० मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाला राजा] (सर्वाभ्यः) सब (आशाभ्यः) आशाओं [गहरी इच्छाओं] के लिये (अभयम्) अभय (परि) सब ओर से (करत्) करे। वह (शत्रून् जेता) शत्रुओं को जीतनेवाला और (विचर्षणिः) विशेष देखनेवाला है ॥१०॥

    भावार्थ

    राजा अपने न्याययुक्त प्रबन्ध से विघ्नों को हटाकर प्रजा की उन्नति की गहरी इच्छाओं को पूरा करे ॥१०॥

    टिप्पणी

    ४-१०- एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २।२०।१-७ ॥

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    विषय

    देखो व्याख्या अथर्व० २०.२०.१-७

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    भाषार्थ

    (इन्द्रः) परमेश्वर (सर्वाभ्यः आशाभ्यः परि) सब दिशाओं से हमें (अभयं करत्) निर्भय कर देता है। वह (शत्रून्) सभी बाधाओं पर (जेता) विजय पाये हुए है। (विचर्षणिः) वह सब विविध जगत् का द्रष्टा है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    May Indra, lord omnipotent beyond all fear and violence, grant us freedom from all quarters of space. He watches all and he is the supreme victor over all enemies and contrarieties.

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    Translation

    The mighty ruler is the watch and ward of the subjects, let make us secure from all the regions as he is the subduer of foes.

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    Translation

    The mighty ruler is the watch and ward of the subjects, let make us secure from all the regions as he is the subduer of foes.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४-१०- एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २।२०।१-७ ॥

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    बंगाली (3)

    পদার্থ

    ইন্দ্র আশাভ্যস্পরি সর্বাভ্যো অভয়ং করৎ ৷

    জেতা শত্রূন্বিচর্ষণিঃ ।।৪।।

    (অথর্ব ২০।৫৭।১০)

    পদার্থঃ (ইন্দ্রঃ) হে পরমেশ্বর! তুমি (সর্বাভ্যঃ আশাভ্যঃ পরি) পূর্ব পশ্চিম সকল দিকে আমাদেরকে (অভয়ম্ করৎ) নির্ভয় করো। তুমি আমাদের (জেতা শত্রূন্) সকল শত্রুর বিজয়কারী আর (বিচর্ষণিঃ) বিশেষরূপে আমাদের দ্রষ্টা।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে সর্বজ্ঞ সর্বশক্তিমান জগদীশ্বর! যেসকল দিকে আমাদের ভয়ের শঙ্কা হয়, ওই সকল দিক থেকে আমাদের নির্ভয় করো। তোমার ভক্তগণের যে শত্রু আছে, তাদের সকলকে তুমি ভালো ভাবে জানো এবং তাদের উপর তোমার ভক্তদের বিজয় অর্জন করাও। এজন্য আমাদের ধর্ম ও মোক্ষ নষ্টকারী বাইরের আর বিশেষ করে ভেতরের কাম, ক্রোধ, লোভ, অহঙ্কারাদি শত্রুকে নাশ করো।।৪।।

     

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    मन्त्र विषय

    ১-১০ মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্রঃ) ইন্দ্র [ঐশ্বর্যবান্ রাজন্] (সর্বাভ্যঃ) সকল (আশাভ্যঃ) অভিলাষা/আশাসমূহ [গভীর ইচ্ছাসমূহ] এর জন্য (অভয়ম্) অভয় (পরি) সর্বত্র হতে (করৎ) করে/করুক। সে (শত্রূন্ জেতা) শত্রুদের উপর বিজয়ী ও (বিচর্ষণিঃ) বিশেষ দ্রষ্টা।।১০।।

    भावार्थ

    রাজা নিজের ন্যায়যুক্ত ব্যবস্থা দ্বারা বিঘ্নসমূহ দূর করে প্রজোন্নতির গভীর ইচ্ছা পূরণ করুক।।১০।।

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্রঃ) পরমেশ্বর (সর্বাভ্যঃ আশাভ্যঃ পরি) সব দিশা থেকে আমাদের (অভয়ং করৎ) নির্ভয় করেন। তিনি (শত্রূন্) সকল বাধার ওপর (জেতা) বিজয় প্রাপ্ত করেছেন। (বিচর্ষণিঃ) তিনি সকল বিবিধ জগতের দ্রষ্টা।

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