अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 57/ मन्त्र 11
क ईं॑ वेद सु॒ते सचा॒ पिब॑न्तं॒ कद्वयो॑ दधे। अ॒यं यः पुरो॑ विभि॒नत्त्योज॑सा मन्दा॒नः शि॒प्र्यन्ध॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठक: । ई॒म् । वे॒द॒ । सु॒ते । सचा॑ । पिब॑न्तम् । कत् । वय॑: । द॒धे॒ ॥ अ॒यम् । य: । पुर॑: । वि॒ऽभि॒नत्ति॑ । ओज॑सा । म॒न्दा॒न: । शि॒प्री । अन्ध॑स: ॥५७.११॥
स्वर रहित मन्त्र
क ईं वेद सुते सचा पिबन्तं कद्वयो दधे। अयं यः पुरो विभिनत्त्योजसा मन्दानः शिप्र्यन्धसः ॥
स्वर रहित पद पाठक: । ईम् । वेद । सुते । सचा । पिबन्तम् । कत् । वय: । दधे ॥ अयम् । य: । पुर: । विऽभिनत्ति । ओजसा । मन्दान: । शिप्री । अन्धस: ॥५७.११॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
११-१३ सेनापति के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थ
(कः) कौन (सचा) नित्य मेल के साथ (सुते) तत्त्वरस (पिबन्तम्) पीते हुए (ईम्) प्राप्तियोग्य [सेनापति] को (वेद) जानता है ? (कत्) कितना (वयः) जीवनसामर्थ्य [पराक्रम] (दधे) वह रखता है ? (अयम्) यह (यः) जो (शिप्री) दृढ़ जबड़ेवाला, (अन्धसः) अब का (मन्दानः) आनन्द देनेवाला [वीर] (ओजसा) बल से (पुरः) दुर्गों को (विभिनत्ति) तोड़ देता है ॥११॥
भावार्थ
जिस पराक्रमी पुरुष के शरीर बल और बुद्धिबल की थाह सामान्य पुरुष नहीं जानते, वह नीतिज्ञ अन्न आदि पदार्थ एकत्र करके वैरियों को जीतता है ॥११॥
टिप्पणी
मन्त्र ११-१३ आचुके हैं-अ० २०।३।१-३ ॥ ११-१३ एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।३।१-३ ॥
विषय
देखो व्याख्या अथर्व० २०.५३.१-३
विषय
११-१३ सेनापति के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थ
(कः) कौन (सचा) नित्य मेल के साथ (सुते) तत्त्वरस (पिबन्तम्) पीते हुए (ईम्) प्राप्तियोग्य [सेनापति] को (वेद) जानता है ? (कत्) कितना (वयः) जीवनसामर्थ्य [पराक्रम] (दधे) वह रखता है ? (अयम्) यह (यः) जो (शिप्री) दृढ़ जबड़ेवाला, (अन्धसः) अब का (मन्दानः) आनन्द देनेवाला [वीर] (ओजसा) बल से (पुरः) दुर्गों को (विभिनत्ति) तोड़ देता है ॥११॥
भावार्थ
जिस पराक्रमी पुरुष के शरीर बल और बुद्धिबल की थाह सामान्य पुरुष नहीं जानते, वह नीतिज्ञ अन्न आदि पदार्थ एकत्र करके वैरियों को जीतता है ॥११॥
टिप्पणी
मन्त्र ११-१३ आचुके हैं-अ० २०।५३।१-३ ॥ ११-१३ एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।५३।१-३ ॥
भाषार्थ
देखो—२०.५३.१।
इंग्लिश (4)
Subject
Indra Devata
Meaning
Who would for certain know Indra in this created world of beauty and glory, how much power and force he wields while he rules and sustains it, Indra who wears the helmet and breaks down the strongholds of negativities with his lustrous might, the lord who shares and enjoys the soma of his own creation?
Translation
Who does know Almighty God protecting everything simultaneously in this world and what power, knowledge and support He does have. This is He who is the master of heaven and earth which resemble with two jaws and who desiring the night of dissolution demolishes the world.
Translation
Who does know Almighty God protecting everything simultaneously in this world and what power, knowledge and support He does have. This is He who is the master of heaven and earth which resemble with two jaws and who desiring the night of dissolution demolishes the world.
Translation
See Ath. 20.53.1
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
मन्त्र ११-१३ आचुके हैं-अ० २०।३।१-३ ॥ ११-१३ एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।३।१-३ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
১১-১৩ সেনানীলক্ষণোপদেশঃ
भाषार्थ
(কঃ) কে (সচা) নিত্য মেল-বন্ধনের সহিত (সুতে) তত্ত্ব রস (পিবন্তম্) পানকারী (ঈম্) প্রাপ্তিযোগ্য [সেনাপতি] কে (বেদ) জানে ? (কৎ) কতটুকু (বয়ঃ) জীবনসামর্থ্য [পরাক্রম] (দধে) তিনি ধারণ করেন ? (অয়ম্) এই (যঃ) যে (শিপ্রী) দৃঢ় চোয়ালযুক্ত, (অন্ধসঃ) অন্নের (মন্দানঃ) আনন্দ প্রদানকারী [বীর] (ওজসা) বল দ্বারা (পুরঃ) দূর্গ সমূহকে (বিভিনত্তি) চূর্ণ বিচূর্ণ করেন ॥১১॥
भावार्थ
যে পরাক্রমী পুরুষের শরীর বল এবং বুদ্ধিবল এর অভিপ্রায় সামান্য মনুষ্য জানে না, সেই নীতিজ্ঞ অন্নাদি পদার্থ একত্র করে শত্রুদের বিরুদ্ধে জয় লাভ করেন ॥১১।।
भाषार्थ
দেখো—২০.৫৩.১।
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