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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 64 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 64/ मन्त्र 2
    ऋषिः - नृमेधः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् सूक्तम् - सूक्त-६४
    1

    अ॒भि हि स॑त्य सोमपा उ॒भे ब॒भूथ॒ रोद॑सी। इन्द्रासि॑ सुन्व॒तो वृ॒धः पति॑र्दि॒वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । हि । स॒त्य॒ । सो॒म॒ऽपा॒: । उ॒भे इति॑ । ब॒भूथ॑ । रोद॑सी॒ इति॑ ॥ इन्द्र॑ । असि॑ । सु॒न्व॒त: । वृ॒ध: । पति॑: । दि॒व: ॥६४.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि हि सत्य सोमपा उभे बभूथ रोदसी। इन्द्रासि सुन्वतो वृधः पतिर्दिवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । हि । सत्य । सोमऽपा: । उभे इति । बभूथ । रोदसी इति ॥ इन्द्र । असि । सुन्वत: । वृध: । पति: । दिव: ॥६४.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 64; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमात्मा के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (सत्य) हे सत्यस्वरूप ! (सोमपाः) हे ऐश्वर्यरक्षक ! (हि) निश्चय करके (उभे) दोनों (रोदसी) सूर्य और भूमि को (अभि बभूथ) तूने वश में किया है, (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवान् परमात्मन्] तू (सुन्वतः) तत्त्वरस निचोड़नेवाले पुरुष का (वृधः) बढ़ानेवाला, (दिवः) सुख का (पतिः) स्वामी (असि) है ॥२॥

    भावार्थ

    सूर्य और पृथिवी आदि लोकों के रचनेवाले परमात्मा की उपासना से हम तत्त्वज्ञान प्राप्त करके वृद्धि करें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(अभि बभूथ) अभिबभूविथ। अभिभूतवानसि (हि) निश्चयेन (सत्य) हे अविनाशिस्वरूप (सोमपाः) हे ऐश्वर्यरक्षक (उभे) द्वे (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (असि) भवसि (सुन्वतः) तत्त्वरसं संस्कुर्वतः पुरुषस्य (वृधः) वर्धयिता। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    सन्वतो वृधः

    पदार्थ

    १. हे (सत्य) = सत्यस्वरूप (सोमपा:) = सोम का रक्षण करनेवाले प्रभो! आप (हि) = निश्चय से (उभे रोदसी) = दोनों द्यावापृथिवी को (अभिबभूथ) = अभिभूत करते हो। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड आपके वश में है। २. हे (इन्द्रः) = परमैश्वर्यवान् प्रभो! आप (सुन्वतः) = यज्ञशील पुरुष के व सोम का सम्पादन करनेवाले के (वृधः असि) = बढ़ानेवाले हैं। दिवः स्वर्ग के-प्रकाश के पतिः स्वामी हैं। जो भी यज्ञशील बनता है अथवा अपने जीवन में सोम का सम्पादन करता है, उसे आप स्वर्ग व प्रकाश प्राप्त कराते हैं।

    भावार्थ

    प्रभु सारे ब्रह्माण्ड के शासक हैं। सोम का सम्पादन करनेवाले के रक्षक हैं। प्रकाश व सुख को प्राप्त करानेवाले हैं।

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    भाषार्थ

    (सत्य) हे सत्यस्वरूप! (हि) निश्चय है कि आप (सोमपाः) भक्तिरस का पान करते और उत्पन्न जगत् के रक्षक हैं। (उभे रोदसी) द्युलोक और भूलोक इन दोनों पर (अभिबभूथ) आपने विजय पाई हुई है। (इन्द्र) हे परमेश्वर! आप (सुन्वतः) भक्तिरसवाले उपासक को (वृधः असि) बढ़ाते हैं, (दिवः पतिः) आप द्युलोक के पति हैं, स्वामी हैं, रक्षक हैं। [बभूथ=बभूभिथ।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    Lord eternal and ever true, lover, protector and promoter of the beauty and joy of existence, you are higher and greater than both heaven and earth. Indra, omnipotent lord and master of the light of heaven, you are the inspirer and giver of advancement to the pursuer of the knowledge, beauty and power of the soma reality of life.

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    Translation

    O Almighty God, O truthful, you as the protector of universe control over heaven and earth both. You are the Strengthener of him who offers libation in the Yajna and the Lord of the heaven.

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    Translation

    O Almighty God, O truthful, you as the protector of universe control over heaven and earth both. You are the strengthener of him who offers libation in the Yajna and the Lord of the heaven.

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    Translation

    O Truth-incarnate, Protector of the Universe and Sustainer of all means of joy and happiness, Thou fully controlled both the worlds indeed. O Lord of fortunes. Thou art the nourisher of Thy devotee and the master of heavens.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(अभि बभूथ) अभिबभूविथ। अभिभूतवानसि (हि) निश्चयेन (सत्य) हे अविनाशिस्वरूप (सोमपाः) हे ऐश्वर्यरक्षक (उभे) द्वे (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (असि) भवसि (सुन्वतः) तत्त्वरसं संस्कुर्वतः पुरुषस्य (वृधः) वर्धयिता। अन्यद् गतम् ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমাত্মগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (সত্য) হে সত্যস্বরূপ ! (সোমপাঃ) হে ঐশ্বর্যরক্ষক ! (হি) নিশ্চিতরূপে (উভে) এই উভয় - (রোদসী) সূর্য এবং ভূমিকে (অভি বভূথ) আপনি নিজ নিয়ন্ত্রাধীন/বশীভূত করেছেন, (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [পরম ঐশ্বর্যবান্ পরমাত্মন্] আপনি (সুন্বতঃ) তত্ত্বরস নিষ্পাদনকারী পুরুষের (বৃধঃ) জ্ঞান বর্ধনকারী, (দিবঃ) সুখের (পতিঃ) স্বামী (অসি) হন ॥২॥

    भावार्थ

    সূর্য এবং পৃথিব্যাদি লোক সমূহের রচিয়তা পরমাত্মার উপাসনা দ্বারা আমরা তত্ত্বজ্ঞান প্রাপ্ত করে জ্ঞান-বিজ্ঞানে সমৃদ্ধ হব/হই ॥২॥

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    भाषार्थ

    (সত্য) হে সত্যস্বরূপ! (হি) নিশ্চিত আপনি (সোমপাঃ) ভক্তিরস পান করেন এবং উৎপন্ন জগতের রক্ষক। (উভে রোদসী) দ্যুলোক এবং ভূলোক এই উভয়েই (অভিবভূথ) আপনি বিজয় প্রাপ্ত। (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! আপনি (সুন্বতঃ) ভক্তিরস সম্পন্ন উপাসককে (বৃধঃ অসি) বর্ধিত করেন, (দিবঃ পতিঃ) আপনি দ্যুলোকের পতি, স্বামী, রক্ষক। [বভূথ=বভূভিথ।]

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