अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 87/ मन्त्र 5
प्रेन्द्र॑स्य वोचं प्रथ॒मा कृ॒तानि॒ प्र नूत॑ना म॒घवा॒ या च॒कार॑। य॒देददे॑वी॒रस॑हिष्ट मा॒या अथा॑भव॒त्केव॑लः॒ सोमो॑ अस्य ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । इन्द्र॑स्य । वो॒च॒म् । प्र॒थ॒मा । कृ॒तानि॑ । प्र । नूत॑ना । म॒घऽवा॑ । या । च॒कार॑ ॥ य॒दा । इत् । अदे॑वी: । अस॑हिष्ट । मा॒या: । अथ॑ । अ॒भ॒व॒त् । केव॑ल: । सोम॑: । अ॒स्य॒ ॥८७.५॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रेन्द्रस्य वोचं प्रथमा कृतानि प्र नूतना मघवा या चकार। यदेददेवीरसहिष्ट माया अथाभवत्केवलः सोमो अस्य ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । इन्द्रस्य । वोचम् । प्रथमा । कृतानि । प्र । नूतना । मघऽवा । या । चकार ॥ यदा । इत् । अदेवी: । असहिष्ट । माया: । अथ । अभवत् । केवल: । सोम: । अस्य ॥८७.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
पुरुषार्थी के लक्षण का उपदेश।
पदार्थ
(इन्द्रस्य) इन्द्र [महाप्रतापी वीर] के (प्रथमा) पहिले और (नूतना) नवीन (कृतानि) कर्मों को, (या) जो (मघवा) उस महाधनी ने (चकार) किये हैं, (प्र प्र) बहुच अच्छे प्रकार (वोचम्) मैं कहूँ। (यदा) जब (इत्) ही (अदेवीः) अदेवी [विद्वानों के विरुद्ध, आसुरी] (मायाः) मायाओं [छल-कपट क्रियाओं] को (असहिष्ट) उसने जीत लिया है, (अथ) तब ही (सोमः) सोम [अमृतरस अर्थात् मोक्ष सुख] (अस्य) उस [पुरुषार्थी] का (केवलः) सेवनीय (अभवत्) हुआ है ॥॥
भावार्थ
जब मनुष्य प्राचीन और नवीन विद्वानों के सिद्धान्तों को विचारकर दुष्कर्मों का नाश करता है, तब वह मोक्ष सुख पाता है ॥॥
टिप्पणी
−(प्र प्र) अतिप्रकर्षेण (इन्द्रस्य) महाप्रतापिनो वीरस्य (वोचम्) कथयानि (प्रथमा) प्रथमानि। पुरातनानि (कृतानि) कर्माणि (नूतना) नूतनानि। नवीनानि (मघवा) धनवान् (या) यानि कर्माणि (चकार) कृतवान् (यदा) (इत्) एव (अदेवीः) विदुषां विरुद्धाः। आसुरीः (असहिष्ट) अभ्यभूत् (मायाः) छलकपटक्रियाः (अथ) अनन्तरमेव (अभवत्) (केवलः) सेवनीयः (सोमः) अमृतरसः। मोक्षानन्दः (अस्य) वीरस्य ॥
विषय
प्रभु-कीर्तन से आसुरी माया का पराभव
पदार्थ
१. मैं (इन्द्रस्य) = बल के सब कर्मों को करनेवाले प्रभु के (प्रथमा) = अतिशयेन विस्तारवाले व मुख्य (कृतानि) = कर्मों का (प्रवोचम्) = प्रतिपादन करता हूँ। (या) = जिन (नूतना) = अतिशयेन स्तुत्य कर्मों को (मघवा) = यह ऐश्वर्यशाली प्रभु चकार करते हैं, उन कर्मों का मैं गायन करता हूँ। २. इस प्रभु-कीर्तन द्वारा (यदा इत्) = जब यह उपासक (अदेवी:) = आसुरी (माया:) = मायाओं को (असहिष्ट) = पराभूत करता है, (अथ) = तब वह (केवल:) = आनन्द में संचार करानेवाला (सोमः) = सोम (अस्य अभवत्) = इसका होता है। आसुरभावों को जीतकर यह सोम का रक्षण कर पाता है और सोम रक्षण से आनन्द को प्राप्त करता है।
भावार्थ
हम प्रभु के विशाल व प्रशस्त कर्मों का कीर्तन करें। यह कीर्तन हमें आसुरभावों से बचाएगा। आसुरभावों के विनाश से हम सोम का रक्षण कर पाएंगे। यह सोम-रक्षण हमारे उल्लास का कारण बनेगा।
भाषार्थ
मैं उपासक (इन्द्रस्य) परमेश्वर के (प्रथमा कृतानि) प्रथम कल्पों में किये श्रेष्ठ कर्मों का (प्र वोचम्) प्रवचन करता हूँ, तथा (नूतना) इस नए कल्प में किये नूतन कर्मों का भी मैं (प्र) प्रवचन करता हूँ, (या) जिन्हें कि (मघवा) ऐश्वर्यशाली परमेश्वर ने (चकार) किया है। (यदा इत्) जब ही परमेश्वर ने (अदेवीः माया) अदिव्य-माया-जाल का (असहिष्ट) पराभव कर दिया, (अथ) तभी से (सोमः) हमारा भक्तिरस, (केवलः) केवल (अस्य) इस परमेश्वर के प्रति ही (अभवत्) समर्पित हो गया है।
इंग्लिश (4)
Subject
India Devata
Meaning
Let me thus proclaim and celebrate the exploits of Indra, those accomplished earlier and the latest which the illustrious hero has achieved, when he challenged and frustrated the evil designs of the crafty enemies and became the sole winner of the soma of honour and fame.
Translation
I admire the previous done deed of mighty ruler and their recent ventures accomplished by him when he furstrates the deceitful tricks All-creating God becomes his lonly helper.
Translation
I admire the previous done deed of mighty ruler and their recent ventures accomplished by him, when he frustrates the deceitful tricks All-creating God becomes his lonely helper.
Translation
Let me thoroughly explain the deeds of the mighty Creator done in the previous creations. Let me also do so the new ones; which the Lord of Fortunes did in this creation. When He surely overpowers all the non-luminous bodies of the matter, then the whole universe becomes His alone.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
−(प्र प्र) अतिप्रकर्षेण (इन्द्रस्य) महाप्रतापिनो वीरस्य (वोचम्) कथयानि (प्रथमा) प्रथमानि। पुरातनानि (कृतानि) कर्माणि (नूतना) नूतनानि। नवीनानि (मघवा) धनवान् (या) यानि कर्माणि (चकार) कृतवान् (यदा) (इत्) एव (अदेवीः) विदुषां विरुद्धाः। आसुरीः (असहिष्ट) अभ्यभूत् (मायाः) छलकपटक्रियाः (अथ) अनन्तरमेव (अभवत्) (केवलः) सेवनीयः (सोमः) अमृतरसः। मोक्षानन्दः (अस्य) वीरस्य ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
পুরুষার্থিলক্ষণোপদেশঃ
भाषार्थ
(ইন্দ্রস্য) ইন্দ্রের [মহাপ্রতাপী বীরের] (প্রথমা) প্রাচীন ও (নূতনা) নবীন (কৃতানি) কৃতকর্ম সমূহ, (যা) যা (মঘবা) সেই মহাধনী (চকার) সম্পন্ন করেছে, (প্র প্র) অতি উত্তমরূপে তা (বোচম্) আমি বর্ণনা করছি/করি। (যদা) যখন (ইৎ) ই (অদেবীঃ) অদেবী [বিদ্বানের বিরুদ্ধ, আসুরিক] (মায়াঃ) মায়াকে [ছল-কপট ক্রিয়াকে] (অসহিষ্ট) জয় করেছে, (অথ) তখনই (সোমঃ) সোম [অমৃতরস অর্থাৎ মোক্ষ সুখ] (অস্য) সেই [পুরুষার্থীর] (কেবলঃ) সেবনীয় (অভবৎ) হয়েছে ॥৫॥
भावार्थ
যখন মনুষ্য প্রাচীন ও নবীন বিদ্বানদের সিদ্ধান্ত বিচারপূর্বক দুষ্কর্মের বিনাশ করে তখন মনুষ্য মোক্ষ সুখ লাভ করে ॥৫॥
भाषार्थ
আমি উপাসক (ইন্দ্রস্য) পরমেশ্বরের (প্রথমা কৃতানি) প্রথম কল্পে কৃত শ্রেষ্ঠ কর্ম-সমূহের (প্র বোচম্) প্রবচন করি, তথা (নূতনা) এই নতুন কল্পে কৃত নূতন কর্ম-সমূহেরও আমি (প্র) প্রবচন করি, (যা) যা (মঘবা) ঐশ্বর্যশালী পরমেশ্বর (চকার) করেছেন। (যদা ইৎ) যখনই পরমেশ্বর (অদেবীঃ মায়া) অদিব্য-মায়া-জালের (অসহিষ্ট) পরাভব করেছেন, (অথ) তখন থেকেই (সোমঃ) আমাদের ভক্তিরস, (কেবলঃ) কেবল (অস্য) এই পরমেশ্বরের প্রতিই (অভবৎ) সমর্পিত হয়েছে।
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