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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 92 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 92/ मन्त्र 17
    ऋषिः - पुरुहन्मा देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-९२
    1

    इन्द्रं॒ तं शु॑म्भ पुरुहन्म॒न्नव॑से॒ यस्य॑ द्वि॒ता वि॑ध॒र्तरि॑। हस्ता॑य॒ वज्रः॒ प्रति॑ धायि दर्श॒तो म॒हो दि॒वे न सूर्यः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म् । तम् । शु॒म्भ॒ । पु॒रु॒ऽह॒न्म॒न् । अव॑से । यस्य॑ । द्वि॒ता । वि॒ऽध॒र्तरि॑ ॥ हस्ता॑य । वज्र॑: । प्रति॑ । धा॒यि॒ । द॒र्शत: । म॒ह: । दि॒वे । न । सूर्य॑: ॥९२.१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रं तं शुम्भ पुरुहन्मन्नवसे यस्य द्विता विधर्तरि। हस्ताय वज्रः प्रति धायि दर्शतो महो दिवे न सूर्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम् । तम् । शुम्भ । पुरुऽहन्मन् । अवसे । यस्य । द्विता । विऽधर्तरि ॥ हस्ताय । वज्र: । प्रति । धायि । दर्शत: । मह: । दिवे । न । सूर्य: ॥९२.१७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 92; मन्त्र » 17
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मन्त्र ४-२१ परमात्मा के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (पुरुहन्मन्) हे बहुत ज्ञानी ऋषि ! (तम्) उस (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] का (शुम्भ) भाषण कर, (यस्य) जिसके (द्विता) दोनों धर्म [अनुग्रह और निग्रह गुण] (विधर्तरि) बुद्धिमान् जन पर (अवसे) रक्षा के लिये और [जिस का] (दर्शतः) दर्शनीय (महः) महान् (वज्रः) वज्र [दण्डसामर्थ्य] (हस्ताय) हाथ [अर्थात् हमारे बाहुबल] के लिये (प्रति) प्रत्यक्ष (धायि) धारण किया गया है, (न) जैसे (सूर्यः) सूर्य (दिवे) प्रकाश के लिये है ॥१७॥

    भावार्थ

    परमात्मा अति प्रत्यक्षरूप से दुष्टों को दण्ड देता है और धर्मात्माओं पर अनुग्रह करता है, ऐसा निश्चय करके विद्वान् लोग सदा ईश्वर की आज्ञा में रहकर सुखी होवें ॥१७॥

    टिप्पणी

    १७−(इन्द्रम्) परमेश्वरम् (तम्) (शुम्भ) शुम्भ हिंसाभाषणभासनेषु। भाषस्व। वर्णय (पुरुहन्मन्) सर्वधातुभ्यो मनिन्। उ० ४।१४। पुरु+हन हिंसागत्योः-मनिन्। पुरु बहु हन्ति गच्छति जानातीति पुरुहन्मा तत्सम्बुद्धौ। हे बहुज्ञानिन्। ऋषे (अवसे) रक्षणाय (यस्य) परमेश्वरस्य (द्विता) द्वित्वम्। निग्रहानुग्रहरूपं गुणद्वयम् (विधर्तरि) मेधाविनि जने-निघ० ३।१। (हस्ताय) अस्माकं बाहुबलाय (वज्रः) दण्डसामर्थ्यम् (प्रति) प्रत्यक्षम् (धायि) अधारि (दर्शतः) दर्शनीयः (महः) मह-अच्। महान् (दिवे) प्रकाशाय (न) यथा (सूर्यः) ॥

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    विषय

    वज्र+सूर्य

    पदार्थ

    १.हे (पुरुहन्मन्) = शत्रुओं का खूब ही हनन करनेवाले जीव । तू (तम्) = उस (इन्द्रम्) = शत्रुविद्रावक प्रभु को (अवसे) = रक्षण के लिए (शुम्भ) = अपने जीवन में अलंकृत कर । उस प्रभु को अलंकृत कर (यस्य) = जिसके (द्विता) = दोनों का विस्तार है-उसकी शक्ति भी अनन्त है और ज्ञान भी अनन्त है। प्रभु को अपने जीवन में अलंकृत करने पर हम भी ज्ञान व शक्ति को प्राप्त करेंगे। २. उस (विधर्तरि) = विशेषरूप से धारण करनेवाले प्रभु में हस्ताय [हन्ताय] शत्रुसंहार के लिए (दर्शत:) = दर्शनीय (महा) = महान् (वज्र:) = वज्र (प्रतिधायि) = धारण किया जाता है। हाथ में उसी प्रकार वज्र धारण किया जाता है, (न) = जैसेकि (दिवे) = प्रकाश के लिए (सूर्यम्) = सूर्य का धारण होता है।

    भावार्थ

    हम भी जीवन में वज्र और सूर्य को धारण करते हैं-हाथों में क्रियाशीलता को, मस्तिष्क में ज्ञानसूर्य को। एवं, यह प्रभु का धारण हमें शक्ति व प्रकाश प्रा कराएगा।

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    भाषार्थ

    (पुरुहन्मन्) हे पापों का अति हनन करनेवाले उपासक! (अवसे) पापों से आत्मरक्षार्थ, तू (तम्) उस (इन्द्रम्) परमेश्वर की (शुम्भ) स्तुतियों और कीर्तनों द्वारा शोभा बढ़ाया कर, (यस्य) जिस के कि (विधर्तरि) विशेष-धारण-सामर्थ्य पर (द्विता) दो प्रकार के—द्युलोक तथा भूलोक, इहलोक तथा परलोक स्थित हैं; तथा जिस परमेश्वर ने (हस्ताय) पापियों और पापों के हनन के लिए, (दर्शतः) दर्शनीय (वज्रः) ज्ञानरूपी वज्र (प्रतिधायि) धारण किया हुआ है, (न) जैसे कि उसने (दिवे) प्रकाश के लिए अर्थात् अन्धकार के हनन के लिए (महः सूर्यः) प्रकाशमय महा सूर्य धारण किया हुआ है।

    टिप्पणी

    [हस्ताय=हस्तः हन्तेः, प्राशुर्हनने (निरु০ १.३.७)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brhaspati Devata

    Meaning

    O man of universal devotion, exalt and glorify that omnipotent Indra for protection and progress in whom, as ruler and controller of the world, both justice and mercy abide simultaneously, who holds the thunderbolt of power in hand, and who is great and glorious like the sun in heaven.

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    Translation

    O man of ignorance-quelling quality, you for aid describe the qualities of that strong God whose two fold action, the mercy and dispensing of justice are manifest on the learned one, whose shining bolt is held by Him for the resistence (Hastaya) of obstructive forces as the sun is held for the light.

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    Translation

    O man of ignorance-quelling quality, you for aid describe the qualities of that strong God whose two fold action, the mercy and dispensing of justice are manifest on the learned one, whose shining bolt is held by Him for the resistance (Hastaya) of obstructive forces as the sun is held for the light.

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    Translation

    Either by deeds or by sacrifices, none can attain, the Position of the Great God, Who has produced the ever-increasing universe. Who is praised by all people, Beloved of the Intelligent, Invincible, Full of Overwhelming Energy and Splendor.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १७−(इन्द्रम्) परमेश्वरम् (तम्) (शुम्भ) शुम्भ हिंसाभाषणभासनेषु। भाषस्व। वर्णय (पुरुहन्मन्) सर्वधातुभ्यो मनिन्। उ० ४।१४। पुरु+हन हिंसागत्योः-मनिन्। पुरु बहु हन्ति गच्छति जानातीति पुरुहन्मा तत्सम्बुद्धौ। हे बहुज्ञानिन्। ऋषे (अवसे) रक्षणाय (यस्य) परमेश्वरस्य (द्विता) द्वित्वम्। निग्रहानुग्रहरूपं गुणद्वयम् (विधर्तरि) मेधाविनि जने-निघ० ३।१। (हस्ताय) अस्माकं बाहुबलाय (वज्रः) दण्डसामर्थ्यम् (प्रति) प्रत्यक्षम् (धायि) अधारि (दर्शतः) दर्शनीयः (महः) मह-अच्। महान् (दिवे) प्रकाशाय (न) यथा (सूर्यः) ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মন্ত্রাঃ-৪-২১ পরমাত্মগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (পুরুহন্মন্) হে বহু জ্ঞানী ঋষি ! (তম্) সেই (ইন্দ্রম্) ইন্দ্রের [পরম্ ঐশ্বর্যবান্ পরমাত্মার] (শুম্ভ) বর্ণনা করুন, (যস্য) যাঁর (দ্বিতা) উভয় ধর্ম [অনুগ্রহ ও নিগ্রহ গুণ] (বিধর্তরি) বুদ্ধিমানের (অবসে) রক্ষার জন্য এবং [যাঁর] (দর্শতঃ) দর্শনীয় (মহঃ) মহান্ (বজ্রঃ) বজ্র [দণ্ডসামর্থ্য] (হস্তায়) হস্তে [অর্থাৎ আমাদের বাহুবল]-এর জন্য (প্রতি) প্রত্যক্ষ (ধায়ি) ধারিত হয়েছে, (ন) যেমন (সূর্যঃ) সূর্য (দিবে) প্রকাশের জন্য ॥১৭॥

    भावार्थ

    পরমাত্মা অতি প্রত্যক্ষরূপে দুষ্টদের শাস্তি প্রদান করেন এবং ধর্মাত্মাদের প্রতি অনুগ্রহ প্রদান করেন, এমনটা নিশ্চিত করে বিদ্বানগণ সদা ঈশ্বরের আজ্ঞায় থেকে সুখী হয়/হোক॥১৭॥

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    भाषार्थ

    (পুরুহন্মন্) হে পাপের অতি হননকারী উপাসক! (অবসে) পাপ থেকে আত্মরক্ষার্থে, তুমি (তম্) সেই (ইন্দ্রম্) পরমেশ্বরের (শুম্ভ) স্তুতি এবং কীর্তন দ্বারা শোভা বৃদ্ধি করো, (যস্য) যার (বিধর্তরি) বিশেষ-ধারণ-সামর্থ্যে পর (দ্বিতা) দুই প্রকারের—দ্যুলোক তথা ভূলোক, ইহলোক তথা পরলোক স্থিত; তথা যে পরমেশ্বর (হস্তায়) পাপী এবং পাপের হননের জন্য, (দর্শতঃ) দর্শনীয় (বজ্রঃ) জ্ঞানরূপী বজ্র (প্রতিধায়ি) ধারণ করে রয়েছেন, (ন) যেমন তিনি (দিবে) প্রকাশের জন্য অর্থাৎ অন্ধকার হননের জন্য (মহঃ সূর্যঃ) প্রকাশময় মহা সূর্য ধারণ করে রয়েছেন।

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