अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 92/ मन्त्र 7
आ यत्पत॑न्त्ये॒न्य: सु॒दुघा॒ अन॑पस्फुरः। अ॑प॒स्फुरं॑ गृभायत॒ सोम॒मिन्द्रा॑य॒ पात॑वे ॥
स्वर सहित पद पाठआ । यत् । पत॑न्ति । ए॒न्य॑: । सु॒ऽदुघा॑: । अन॑पऽस्फुर: ॥ अ॒प॒ऽस्फुर॑म् । गृ॒भा॒य॒त॒ । सोम॑म् । इन्द्रा॑य । पात॑वे ॥९२.७॥
स्वर रहित मन्त्र
आ यत्पतन्त्येन्य: सुदुघा अनपस्फुरः। अपस्फुरं गृभायत सोममिन्द्राय पातवे ॥
स्वर रहित पद पाठआ । यत् । पतन्ति । एन्य: । सुऽदुघा: । अनपऽस्फुर: ॥ अपऽस्फुरम् । गृभायत । सोमम् । इन्द्राय । पातवे ॥९२.७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
मन्त्र ४-२१ परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(यत्) जब (एन्यः) गतिवाली, (सुदुघाः) अच्छे प्रकार कामनाएँ पूरी करनेवाली, (अनपस्फुरः) निश्चल बुद्धियाँ (आ पतन्ति) आ जावें, [त्ब] (अपस्फुरम्) अत्यन्त बढ़े हुए (सोमम्) उत्पन्न करनेवाले परमात्मा को (इन्द्राय) बड़े ऐश्वर्य की (पातवे) रक्षा के लिये (गृभायत) तुम ग्रहण करो ॥७॥
भावार्थ
मनुष्य सबमें गतिवाली उत्तम बुद्धि को प्राप्त होकर परमेश्वर का आश्रय लेकर अपना ऐश्वर्य बढ़ावें ॥७॥
टिप्पणी
७−(आ पतन्ति) आगच्छन्ति (यत्) यदा (एन्यः) वीज्याज्वरिभ्यो निः। उ० ४।४८। इण् गतौ-निप्रत्ययः, ङीप्। एन्यो नदीनाम-निघ० १।१३। गतिशीलाः (सुदुघाः) सुष्ठु कामानां प्रपूरयित्र्यः (अनपस्फुरः) अन् अप+स्फुर संचलने-क्विप्। निश्चला बुद्धयः (अपस्फुरम्) अप+स्फुर संचलने वृद्धौ च क्विप्। अत्यन्तं प्रवृद्धम् (गृभायत) गृह्णीत (सोमम्) उत्पादकं परमात्मानम् (इन्द्राय) ऐश्वर्यम् (पातवे) पातुम्। रक्षितुम् ॥
विषय
सुखसंदोहा गौओं का दूध व हृदयरोग-चिकित्सा
पदार्थ
१. (यत्) = जब (अनपस्फुरः) = [not refusing to be milked]-न बिदकनेवाली (सुदुघाः) = सुखसंदोह्य (एन्य:) = शुभवर्ण की गौएँ (आपतन्ति) = समन्तात् गृहों की ओर आनेवाली होती है, उस समय (अपस्फुरम्) = हृदय-कम्पन को दूर करनेवाले [Throbbing, palpilation] (सोमम्) = सोम को-ताजे दूध को-(गभायत) = ग्रहण करो। यह दूध (इन्द्राय पातवे) = जितेन्द्रिय पुरुष के रक्षण के लिए होता है। २. गौवें 'सुदुघा' होनी चाहिएँ। ये अनपस्फुर होंगी तो इनके दूध में किसी प्रकार का विघ्न नहीं होगा। यह ताजा गोदुग्ध ही सोम है। यह हृदय की धड़कन को ठीक रखता है-हदय-सम्बद्ध सब रोगों से बचानेवाला है।
भावार्थ
हम सुखसंदोह्य गौओं के ताजे दूध का प्रयोग करें। यही 'सोम' है। यह जितेन्द्रिय पुरुष का रक्षण करता है-हृदय-कम्पन आदि रोगों से बचाता है।
भाषार्थ
(एन्यः) भिन्न-भिन्न वर्णोंवाली गौएँ (यत्) जब चरागाह से घर की ओर (आ पतन्ति) उछलती-कूदती हुई आती हैं, तब (अनपस्फुरः) एक स्थान में टिकी हुई होकर, (सुदुघाः) ये सुगमता से दुही जाने योग्य होती हैं इसी प्रकार हे उपासको! तुम (इन्द्राय पातवे) परमेश्वर के पान के लिए, निश्चल चित्तवृत्ति द्वारा (अपस्फुरम्) चञ्चलता से अपगत अर्थात् स्थिर (सोमम्) भक्तिरस को (गृभायत) प्राप्त किया करो।
टिप्पणी
[गौओं को भिन्न-भिन्न वर्णोंवाली, तथा वर की ओर उछल-कूद कर आनेवाली कहा है, परन्तु ये नाना वर्णोंवाली गौएँ तब सुगमता से दुही जा सकती हैं, जब दोहते समय ये एक स्थान में टिकी रहें। इसी प्रकार चित्तवृत्तियाँ भी नाना रूपोंवाली और चञ्चल हैं, अस्थिर हैं। जब चित्तवत्तियाँ चञ्चलता से रहित होकर स्थिर हो जाती हैं। तभी ये स्थिर अर्थात् निश्चल भक्तिरस देती हैं, जिसका कि पान परमेश्वर करता है। अस्थिर भक्तिरस को परमेश्वर स्वीकार नहीं करता। एन्यः=शद्घ of variegated colour (आप्टे)। एनीः=धेनवः (अथर्व০ १८.४.३३ तथा १८.१.३२)। अनपस्फुरः=अन्+अपस्फुरः। दोहनकाले गवां यद् अपस्फुरणं, दूषितं स्फुरणं, स्वस्थानात् विचलनम्, तद्रहिताः। अपस्फुरम्=अपगतस्फुरम्, स्फुरणरहितम्।]
इंग्लिश (4)
Subject
Brhaspati Devata
Meaning
When the dynamic senses of perception and volition, controlled, unagitating and calmly withdrawn, concentrate in the inner mind, then you receive the showers of soma nectar of spiritual ananda for Indra, the soul.
Translation
When the powers of firm intelligence which milk out all the desired ends and which possess all good activities, arrive at or develop grasp all-pervaing All-creating God for the guard and guidance of soul.
Translation
When the powers of firm intelligence which milk out all the desired ends and which possess all good activities, arrive at or develop grasp all-pervading All-creating God for the guard and guidance of soul.
Translation
Just as the cows low, while looking at the calf, similarly do the learned person, well versed in vedic lore and engrossed in deep meditation, sings his praises in every way. The soul drinks this nectar. The chief, learned person drinks it. All the learned person of sense-organ revel in it. The pious and the holy person certainly stay steady herein.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७−(आ पतन्ति) आगच्छन्ति (यत्) यदा (एन्यः) वीज्याज्वरिभ्यो निः। उ० ४।४८। इण् गतौ-निप्रत्ययः, ङीप्। एन्यो नदीनाम-निघ० १।१३। गतिशीलाः (सुदुघाः) सुष्ठु कामानां प्रपूरयित्र्यः (अनपस्फुरः) अन् अप+स्फुर संचलने-क्विप्। निश्चला बुद्धयः (अपस्फुरम्) अप+स्फुर संचलने वृद्धौ च क्विप्। अत्यन्तं प्रवृद्धम् (गृभायत) गृह्णीत (सोमम्) उत्पादकं परमात्मानम् (इन्द्राय) ऐश्वर्यम् (पातवे) पातुम्। रक्षितुम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
মন্ত্রাঃ-৪-২১ পরমাত্মগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(যৎ) যখন (এন্যঃ) গতিশীল, (সুদুঘাঃ) উৎকৃষ্ট কামনা পূরণকারী, (অনপস্ফুরঃ) নিশ্চল বুদ্ধি (আ পতন্তি) আসুক/আগমন করুক, [তখন] (অপস্ফুরম্) অত্যন্ত প্রবৃদ্ধ (সোমম্) উৎপাদয়িতা পরমাত্মাকে (ইন্দ্রায়) উত্তম ঐশ্বর্যের (পাতবে) রক্ষার জন্য (গৃভায়ত) তুমি গ্রহণ করো ॥৭॥
भावार्थ
মনুষ্য সকল বিষয় হতে গতিশীল/কার্যকরী উত্তম বুদ্ধি প্রাপ্ত করে পরমেশ্বরের আশ্রয় নিয়ে নিজের ঐশ্বর্য বৃদ্ধি করুক ॥৭॥
भाषार्थ
(এন্যঃ) ভিন্ন-ভিন্ন বর্ণযুক্ত গাভী (যৎ) যখন চারণভূমি থেকে ঘরের দিকে (আ পতন্তি) লাফিয়ে-লাফিয়ে আসে, তখন (অনপস্ফুরঃ) এক স্থানে স্থিত হয়ে, (সুদুঘাঃ) সুগমতাপূর্বক দোহন যোগ্য হয় এইভাবে হে উপাসকগণ! তোমরা (ইন্দ্রায় পাতবে) পরমেশ্বরের পান করার জন্য, নিশ্চল চিত্তবৃত্তি দ্বারা (অপস্ফুরম্) চঞ্চলতা থেকে অপগত অর্থাৎ স্থির (সোমম্) ভক্তিরস (গৃভায়ত) প্রাপ্ত করো।
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